Tuesday, 25 June 2013

सपा की विभाजनकारी राजनीति के विरूद्ध उ0 प्र0 में हुआ दस दिवसीय

सपा की विभाजनकारी राजनीति के विरूद्ध उ0 प्र0 में हुआ दस दिवसीय अनशन और धरना
(रिपोर्ट)
‘हम देष के लिए भाजपा को एक बड़े खतरे के रूप में मानते है और इसके खिलाफ लड़ाई को भी सर्वोच्च स्थान देते है साथ ही भाजपा और कांग्रेस व सपा-बसपा जैसे दलों के बीच के फर्क को भी करते है लेकिन पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से उ0 प्र0 में जिस तरह से सपा सुप्रीमों के निर्देशन में चल रही अखिलेश की सरकार द्वारा पहले से ही विभाजन और अलगाव के दौर से गुजर रही प्रदेश की जनता को और भी विभाजित करके भाजपा को बढ़ने का मौका दिया गया उसके विरोध में मै दस दिन के उपवास पर रहा हूं। हमें खुषी है कि कांग्रेस-भाजपा, सपा-बसपा की कारपोरेटपरस्त, अमेरीकापरस्त राजनीति के विरूद्ध प्रदेष की सभी वाम-जनवादी आंदोलन की ताकतें एक साथ आयी है जो प्रदेष में जन राजनीति का केन्द्र बनेगा।‘ यह बातें लखनऊ में विधानसभा के सामने प्रदेश में जन अधिकार अभियान के तहत कानून के राज की स्थापना के लिए 10 जून से जारी दस दिवसीय अपने उपवास को खत्म करने के बाद आयोजित सभा में आल इण्डि़या पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहीं। 19 जून को का0 अखिलेन्द्र ने 1 बजे राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के सीपीआईएम राज्य सचिव का0 एस0 पी0 कश्यप, राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी, और सीपीआई राज्य सचिव का0 डा0 गिरीश के हाथों से जूस पीकर अपने दस दिवसीय उपवास को समाप्त किया। इस दिन सीपीआईएम, राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल, सीपीआई, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), आइपीएफ, राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय किसान यूनियन समेत सभी वाम-जनवादी दलों के हजारों लोग उपवासस्थल पर पहुंचे।
      गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष में सरकार बनने के बाद अखिलेश सरकार ने सबसे पहले पूरे समाज से दलितों को अलगाव में डाल दिया और उनकी इस कार्यवाही को दलितों में ध्रुवीकरण के लिए उनकी विरोधी बनने वाली मायावती ने भी मदद पहुंचाने का काम किया। सभी लोग जानते है कि आरक्षण के संदर्भ में नागराज के मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला था वह पिछड़ी जातियों के पिछड़ेपन के संदर्भ में था जिसकी चपेट में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग भी आ गए, इसे मात्र सुप्रीम कोर्ट में एक पुर्नविचार याचिका दायर कर ठीक कराया जा सकता था पर मायावती ने सत्ता में रहते हुए भी यह काम भी नहीं किया। परशुराम जयंती पर अभियान चलाने वाली सपा सरकार ने यह जानते हुए भी अति पिछड़ी जातियों को दलितों में संवैधानिक रूप से शामिल नहीं किया जा सकता क्योकि वह अछूत नहीं है, 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेजा है। ज्ञात्वय हो कि यही काम मायावती ने भी किया था। दरअसल प्रदेष में अति पिछड़ी जातियों को उनके सामाजिक न्याय के अधिकार से वंचित करने की कोशिश माया-मुलायम दोनों करते रहे है। मुलायम सिंह तो समाजवादी आंदोलन की पैदावार है और लोहिया, जय प्रकाष नारायण, कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते है, यदि उनकी राजनीति में ईमानदारी होती तो वह मण्ड़ल कमीषन के सदस्य एल0 आर0 नायक की संस्तुति और प्रदेष में बने छेदीलाल साथी कमीषन व कर्पूरी ठाकुर फार्मूला के आधार पर अति पिछड़ों का आरक्षण कोटा अन्य पिछड़ा वर्ग से अलग कर देते।
 सामाजिक न्याय के सवाल के साथ ही सपा सरकार प्रदेश में हिन्दू और मुस्लिमों के बीच की खाई को भी और बढ़ाने की राजनीति कर रही है। यह जानते हुए भी कि आतंकवाद के मुकदमें में फंसे लोगों का मुकदमा संवैधानिक रूप से सरकार वापस नहीं ले सकती महज मुसलमानों को शिकार बनाने के लिए इस सरकार ने मुकदमा वापसी की बड़ी-बड़ी धोषणाएं की। इससे हिन्दुओं को लगा कि महज वोट के लिए यह सरकार अपराधियों पर से मुकदमा वापस लेने का काम कर रही है और इससे मुसलमानों का भी भला नहीं हुआ वहीं प्रदेष में भाजपा को हिन्दु धुव्रीकरण के जरिए अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को बढ़ाने में मदद मिली। वास्तव में सरकार अपनी धोषणा के प्रति ईमानदार होती तो वह इस सम्बंध में बनी जस्टिस आर.डी. निमेष कमीशन की रिर्पोट को एक्शन टेकन रिर्पोट के साथ विधानसभा में रखने में इतना विलम्ब न करती। अभी भी सरकार ने खालिद की मौत और गिरफ्तारी के लिए दर्ज एफआईआर की विवेचना शुरू नहीं करायी और न ही इस पूरे मामले की सीबीआई जांच के लिए केन्द्र सरकार पर दबाब डाला। यदि सरकार चाहे तो आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद नौजवानों के मामलें में एक कमीशन बना दे जिसकी रिर्पोट के बाद प्रदेश की जनता यह देख लेती कि कौन आतंकवादी है और कौन निर्दोष। यहीं नहीं सरकार के एक वर्ष से ज्यादा के कार्यकाल में 27 दंगें हो चुके है जिनमें प्रषासन के संरक्षण में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए है, जिनमें से फैजाबाद-अयोध्या दंगें के लिए भारतीय प्रेस परिषद ने भी प्रशासन को जिम्मेदार माना है।
       यहीं हालत माओवादियों के मामले में भी है। मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली जनपद में जहां आदिवासी, गरीब समाज के लोग, जो व्यवस्था से अलगाव और विक्षोभ की वजह से माओवाद के प्रभाव में चले गए थे, उस क्षेत्र में लगातार चले लोकतांत्रिक आंदोलन की वजह से प्रभावित होकर राजनीति की मुख्यधारा में लौट आए हैं। फिर भी माओवाद से निपटने के नाम पर वहां गरीबों का दमन हो रहा है। एक तरफ समाजवादी पार्टी में शामिल पूर्व माओवादी बासमती कोल को सरकार महिला आयोग का सदस्य बनाती है वहीं माओवादी होने के नाते सैकड़ों लड़के और महिलाएं आज भी जेलों में बंद है इनके गैगस्टर व गुण्ड़ा एक्ट के मुकदमों की वापसी, जमानत और पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। यहीं नहीं आदिवासियों व वनाश्रित लोगों को उनकी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना अधिकार देने के लिए संसद द्वारा बने वनाधिकार
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कानून को सरकार ने विफल कर दिया है। इन तबकों द्वारा मालिकाना हक के लिए दाखिल लाखों दावों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया है, उन दावा फार्मो को तहसील में दीमक चाट रहे है। ग्रामस्तर की वनाधिकार समिति द्वारा स्वीकृत दावों को कानून में अधिकार न हाते हुए भी उपखण्ड़ स्तर की कमेटी द्वारा खारिज कर दिया गया। आदिवासियों को गैरकानूनी तरीके से जमीन से बेदखल किया जा रहा है, उन पर फर्जी मुकदमें कायम किए जा रहे है और लगातार उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। आदिवासियों व वनाश्रित लोगों को वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक दिलाने के लिए आइपीएफ ने माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की है। जिसें स्वीकार कर माननीय उच्च न्यायालय की दो सदस्यी खण्ड़पीठ ने केन्द्र और प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है। आदिवासियों के साथ अन्याय बदस्तूर जारी है, कोल को आदिवासी होने के बाबजूद आदिवासी का दर्जा नहीं दिया गया। गोड़, खरवार जैसी जिन आदिवासी जातियों को आदिवासी का दर्जा भी मिला, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी उनके लिए लोकसभा, विधानसभा से लेकर पंचायत तक सीट ही आरक्षित नहीं की गयी परिणामस्वरूप वह आरक्षित सीटों पर चुनाव ही नहीं लड़ पा रहे है।
 प्रदेश में बुदेलखण्ड़ से लेकर सोनभद्र तक सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए सिड़ीकेटों द्वारा अवैध खनन बदस्तूर जारी है। इस अवैध खनन के खिलाफ जो कुछ नौकरशाह कानूनसम्मत काम करने की कोशिश भी करते हैं तो उन्हें पदों से हटा दिया जाता है, उन पर हमले हो रहे है। इलाहाबाद में 4 करोड़ के अवैध सिलका सैण्ड़ के खनन के खिलाफ कार्रवाही करने के कारण एक ही दिन में इलाहाबाद के कमीश्नर को हटा दिया गया और सोनभद्र में अवैध खनन को चालू करने से इंकार करने वाले डीएम व वनविभाग अधिकारियों का एक साथ तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं यह सरकार अवैध खनन में लिप्त लोगों को बचाने में लगी है। मायावती राज में हुए 14 अरब से भी ज्यादा के स्मारक घोटालें, जिसमें मिर्जापुर में अवैध खनन प्रमाणित हुआ है, में लोकायुक्त द्वारा प्रकरण की विवेचना छः माह में सीबीआई या विशेष जांच दल से कराने की संस्तुतियों को आज तक सरकार ने स्वीकार नहीं किया और न ही इस घोटाले में शामिल सम्बंधित मंत्री समेत सभी लोगों के विरूद्ध तत्काल एफआईआर दर्ज करायी। प्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर आम नागरिकों के जीवन, पर्यावरण और पेयजल के लिए गहरा संकट पैदा करने वाले अवैध खनन की सीबीआई से जांच कराने के लिए आइपीएफ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है और यदि अखिलेश सरकार अवैध खनन पर रोक लगाकर इसकी सीबीआई जांच नहीं कराती तो इसका भी हाल कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार की तरह ही होगा।
       किसानों के बकाए के भुगतान और कर्ज को माफ करने की धोषणा के साथ सत्ता पर पहुंची सरकार में आज भी किसानों का करीब 6 हजार करोड़ बकाया है। इस सरकार में एक तो आमतौर पर फसलों की सरकारी खरीद हुई नहीं और जो कुछ थोड़ी बहुत सरकारी खरीद हुई उसका भी भुगतान नहीं किया गया। प्रदेश में इतनी शर्मनाक हालत थी कि किसानों की बात करने वाले मुलायम सिंह की पार्टी की सरकार में किसानों की फसल खरीदनें के लिए मुख्यमंत्री बोरा मांगने केन्द्र के पास जाते है और बोरे के अभाव में खरीद नहीं होती है। किसानों के पचास हजार तक के कर्जे को माफ करने के वायदे की हालत यह है कि अभी मात्र भूमि विकास बैंक के द्वारा ही लिए कर्जे के ब्याज की माफी के लिए सरकार जिलों से किसानों की सूची मंगवा रही है। वहीं गांव-गांव कर्ज वसूली के नाम पर किसानों का दमन हो रहा है। किसानों से आज तक लागत मूल्य का पचास प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने और किसान आयोग बनाने का वायदा पूरा नहीं किया गया। नेशनल हाईवे की मौजूदगी में हावड़ा-दिल्ली कारिडोर व लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे और गंगा एक्सप्रेस वे जैसी योजनाओं के लिए सरकार रात दिन एक किए हुए है जबकि इन सड़क योजनाओं का मकसद यातायात के सवाल को हल करना नहीं बल्कि किसानों की उपजाऊ भूमि को छीनकर बिल्डरों, पंूजी घरानों के हवाले करना है जिससे कि वे वहां टाउनशिप और फार्म हाउस बनाकर बेहिसाब मुनाफा कमाएं।
     पूरे प्रदेष में मनरेगा को विफल कर दिया गया है। कहीं भी ग्रामीण गरीबों को काम नहीं मिल रहा है और काम न देने की स्थिति में बेकारी भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। जिसके खिलाफ भी आइपीएफ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। आज प्रदेश में लगातार बिजली कटौती और बिजली दरों में वृद्धि का जो बिजली संकट पैदा हुआ है उसकी भी मूल वजह भ्रष्टाचार और बिजली विभाग में मची लूट है। प्रदेष की अनपरा और ओबरा जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की विद्युत उत्पादन करने वाली इकाइया कमीशनखोरी और ठेकेदारी प्रथा के कारण अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं कर पा रही है। बिजली विभाग में बीस-बीस साल से एक ही जगह काम करने वाले मजदूरों को संविदा श्रमिक के बतौर रखा गया है। इन मजदूरों के नियमितिकरण के लिए हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी न तो पूर्ववर्ती मायावती सरकार ने और न ही वर्तमान सरकार ने इन मजदूरों को नियमित किया। प्रदेश में बिजली दरों की बढ़ोत्तरी में भी घोटाला हुआ, बिजली दरों के निर्धारण में राज्य विद्युत नियामक आयोग और पावर कारपोरेशन ने एक ही सलाहकार की नियुक्ति कर बिजली दरों को बढ़ाकर जनता पर बोझ लाद दिया। पावर कारपोरेशन के घाटे की बात भी बेईमानी है क्योकि 25 हजार करोड़ का घाटा दिखाया जा रहा है जबकि 27 हजार करोड़ से भी ज्यादा बकाया है जिसमें से 9 हजार करोड़ सरकार के विभागों पर बकाया है यदि इसकी ही वसूली हो जाएं तो घाटा खत्म हो जायेगा। इतना ही नहीं आज की गयी बिजली दरों में वृद्धि से

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सरकार को मात्र 4 हजार करोड़ रूपए प्राप्त होगें और यदि सरकार अपने बकाए का आधा भी दे दें तो जनता पर लादे दर वृद्धि इस बोझ की कोई जरूरत नहीं रह जायेगी।
        यह वह स्थिति थी जिससे प्रदेश को बचाने के लिए और कानून के राज की स्थापना के लिए 18 सूत्री मांगों पर प्रदेष की वाम-जनवादी ताकतों ने जन अधिकार अभियान चलाने का फैसला किया, जिसकी शुरूवात इस दस दिवसीय उपवास से की गयी। इस अभियान की मांगों का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय अभियान समिति के अध्यक्ष व पूर्व वाणिज्य सचिव भारत सरकार श्री एस0 पी0 शुक्ला ने अपने पत्र में लिखा कि इस अभियान में जो सवाल उठाएं गए है वह न सिर्फ उ0 प्र0 के मौजूदा हालात में जरूरी है साथ ही यह देश में वैकल्पिक नीतियों का भी एजेण्ड़ा है। गांधी इंस्टिट्यूट, वाराणसी के निदेषक प्रो0 दीपक मलिक ने अपने संदेष में लिखा कि एक ऐसे समय में जब जन आंदोलन को गम्भीर चुनौती मिल रही है, जन समस्याओं को सुनने का माहौल नही है इस उपवास ने जन प्रतिरोध को एक बार फिर केन्द्र में ला दिया है और जन प्रतिरोध आंदोलन की संस्कृति और कार्रवाही को फिर से पुर्नजीवित किया है।
     उपवास के अंतिम दिन हुई सभा में बोलते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि कांग्रेस-भाजपा जिन जनविरोधी नीतियों पर चल रही है उसका विकल्प कोई तीसरा और चैथा मोर्चा नहीं हो सकता क्योंकि इनको बनाने वाले दल भी इन्हीं नीतियों पर अमल कर रहे है। मात्र सरकारों के बदलने से जनता की जिदंगी में बदलाव नहीं आ सकता आज जरूरत है नीतियों को बदलने की। जिन नीतियों से किसानों, मेहनतकशों और आम अवाम का भला हो सकंे। उन्होनें कहा कि यह काम मात्र वामपंथी, सोशलिस्ट और उलेमा कौसिंल जैसी जनपक्षधर आंदोलन की ताकतें ही कर सकती है जो प्रदेश में एक मंच पर आयी है और यह देष के लिए भी एक नजीर बनेगा। सीपीआई (एम) राज्य सचिव का0 एस0 पी0 कश्यप ने कहा कि जो सवाल हम अपने अभियान के माध्यम से उठाए है वह समाजवादी पार्टी द्वारा किए गए वायदों के दायरे में ही है इसलिए सरकार को अपने वायदें पूरे करने चाहिए और प्रदेश की जनता के हित में इन सवालों को हल करना चाहिए। आज देश को वाम जनवादी विकल्प की जरूरत है मात्र पार्टियों का मोर्चा नहीं हमें जनपक्षधर नीतियों पर जनता का मोर्चा बनाना होगा। राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी ने कहा कि प्रदेश में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, दलित आंदोलन और मुस्लिम समाज की जनपक्षधर ताकतों द्वारा शुरू हुआ यह अभियान नए जन विकल्प को पैदा करेगा। सीपीआई राज्य सचिव का0 डा0 गिरीश ने कहा कि उ0 प्र0 को मुलायम-माया की राजनीति से मुक्त करा वाम-जनवादी दिशा देने की जरूरत है और जो प्रयास प्रदेष में शुरू हुआ है उसमें हम पूरी ताकत से रहेगें। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश पाण्डेय ने कहा कि सपा सरकार का डा0 लोहिया की विचारधारा और समाजवाद से कोई वास्ता नहीं रह गया है। इस सरकार ने प्रदेश की जनता को अपने एक वर्ष से ज्यादा के कार्यकाल में मात्र धोखा देने का ही काम किया है। राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव व पूर्वमंत्री का0 कौशल किशोर ने कहा कि प्रदेश में कानूनव्यवस्था ध्वस्त है और गुण्ड़ा-माफिया-पुलिस राज है। प्रदेश में दलितों, अल्पसंख्यकों समेत समाज के गरीब तबकों पर लगातार हमले हो रहे है। उपवास के छठवें दिन भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ऋषिपाल अम्बावता के नेतृत्व में सैकड़ों किसान विधानसभा के सामने उपवासस्थल पर पहुंचे इसके साथ ही प्रत्येक दिन उपवासस्थल पर सैकड़ों की संख्या में लोगों के आने का सिलसिला जारी रहा और हर दिन प्रदेष के विभिन्न ज्वंलत सवालों पर राजनीतिक प्रस्ताव ग्रहण किए गए।
    इन सभाओं को पूर्व सासंद इलियास आजमी, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संदीप पाण्डेय, महामंत्री ओकांर सिंह, सीपीएम राज्य कमेटी सदस्य का0 राधेश्याम वर्मा, सीपीएम राज्य सचिव मण्ड़ल सदस्य का0 प्रेमनाथ राय, पूर्व आईजी व आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी, राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के महासचिव मौलाना ताहिर मदनी, मुस्लिम महिला पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद् के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ की अध्यक्ष डा0 किरन सिंह, राष्ट्रीय बहुजन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बनारसी दास, राज्य कर्मचारी महासंध के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह, गांधी संस्थान की रजिस्ट्रार मुनीजा रफीक खान, मुस्लिम फोरम के अध्यक्ष एम के शेरवानी, भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाण्ड़ेय समाजसेवी सुदंरलाल सुमन, वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह, पूर्व अध्यक्ष इ0वि0वि0 लाल बहादुर सिंह ने सम्बोधित किया। सभाओं का संचालन राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के प्रदेश अध्यक्ष परवेज आफताब, आइपीएफ प्रदेश सहसंयोजक गुलाब चंद गोड़ व अजीत सिंह यादव ने किया।

दिनकर कपूर
संगठन प्रभारी, आइपीएफ
4, माल एवेन्यू, लखनऊ

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