Sunday, 5 October 2014

वन भूमि पर मालिकाना अधिकार के लिए!

वन भूमि पर मालिकाना अधिकार के लिए!
जमीन अधिकार आंदोलन के तहत चकिया में सीपीएम व आइपीएफ का विशाल धरना
तत्काल वनाधिकार कानून में खारिज दावों पर पुनर्विचार प्रक्रिया शुरू कराने, ग्रामस्तर से लेकर जिलास्तर तक पुनः वनाधिकार समिति का गठन करने, ग्रामस्तर की वनाधिकार समिति द्वारा स्वीकृत दावों को स्वीकार कराने, दावा दाखिल करने से छूट गए दावेदारों के दावे दाखिल करने और वन विभाग द्वारा लादे गए मुकदमों को तत्काल वापस लेने की मांगांे पर आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) और सीपीआईएम की तरफ से 30 सितम्बर को चकिया तहसील मुख्यालय पर एक दिवसीय चेतावनी धरना देकर जमीन अधिकार आंदोलन की शुरूवात की गयी। धरने में नौगढ़, शिकारगंज और चकिया से सैकड़ों की संख्या में दलित- आदिवासी जुटे। धरने के पूर्व ब्लाक से गांधी पार्क तक विशाल जुलूस निकाला गया। धरने के बाद उपजिलाधिकारी को मांगपत्र सौंपा गया और प्रतिनिधिमण्ड़ल ने वार्ता भी की।
धरनास्थल पर हुई सभा को सम्बोधित करते हुए वक्ताओं ने कहा कि लम्बे संघर्षो और कुर्बानियों के बदौलत हासिल वनाधिकार कानून के तहत जनपद में दाखिल 14088 दावों में से 13998 दावों को मनमाने ढ़ग से सपा और बसपा सरकार और उसके प्रशासन ने खारिज कर दिया जबकि इनमें से अधिकांश ग्रामस्तर की समितियों द्वारा स्वीकृत थे। इन दावों पर पुनर्विचार के लिए आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) की जनहित याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने आदेश दिया और साथ ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इसी तरह का आदेश दिया। इस आदेश से एक बार पुनः यह अवसर मिला कि वनाधिकार कानून के तहत हासिल अपने अधिकार को प्राप्त करें और अपनी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना हक हासिल कर सकें। इन आदेशों को लागू कराने के लिए बार-बार उ0 प्र0 शासन, जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी को पत्रक दिए परन्तु कोई भी इन्हें लागू करने के लिए तैयार नहीं है। यदि धरने के बाद भी प्रशासन नहीं चेता तो एक बड़ा आंदोलन चलाया जायेगा। धरने को सीपीएम के बच्चन सिंह, जिला सचिव श्रीप्रसाद, लालमुनि विश्वकर्मा, अजय राय, रामनारायन, रामेश्वर प्रसाद, नंदलाल यादव, मार्कण्डेय आदि ने सम्बोधित किया।

Thursday, 3 July 2014

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) (आइपीएफ) का संविधान और नीति

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल)
आइपीएफ(आर)
संविधान और नीति लक्ष्य
भूमिका
राष्ट्रीय अभियान समिति (एन0सी0सी0) की बैठक 22-23 नवम्बर 2012 को हुई थी। इसमें ताजा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक हालात का जायजा लेते हुए राजनीतिक परिस्थितियों की समीक्षा की गयी। समिति में यह सहमति बनी कि राजनीतिक चुनौती का मुकाबला राजनीतिक ढंग से किया जाना चाहिए और इस उद्देश्य के लिए एक भिन्न राजनीतिक संगठन की स्थापना होनी चाहिए। बैठक
में निम्नलिखित फैसला लिया गया:
‘‘एन0सी0सी0 अपने मौजूदा स्वरूप में बनी रहेगी और अपने सभी सदस्यों के साथ काम करती रहेगी। एनसीसी से इतर एक नयी राजनीतिक संरचना स्वरूप ग्रहण करेगी। यह उन तमाम इकाइयों/संरचनाओं को एक साझी पहचान और राजनीतिक जमीन देगी जो अलग-अलग राजनीतिक संरचना के रूप में काम कर रहे हैं जैसे कि जन संघर्ष मोर्चा, क्रांतिकारी समता पार्टी, जन संग्राम परिषद जो एनसीसी से जुड़े हंै और इसके घटक हैं। एनसीसी के सदस्यों को नए राजनीतिक संगठन में शामिल होने के बारे में स्वयं फैसला करना होगा।‘‘
इस फैसले के बाद ‘‘आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल): आइपीएफ (आर)’’ नाम से राजनीतिक संगठन को चुनाव आयोग में पंजीकृत कराने और इसका संविधान बनाने के लिए कदम उठाए गए। अब यह चुनाव आयोग में पंजीकृत संगठन है। बाद में 30 सितम्बर 2013 को सम्पन्न बैठक में मसौदा संविधान पर विचार हुआ। यह सर्वसम्मत से फैसला हुआ कि संविधान में सांगठनिक ढांचे, शक्तियों तथा कार्यप्रणाली के अतिरिक्त एक संक्षिप्त प्रस्तावना तथा चुनाव आयोग द्वारा वांछित उद्घोषणा होनी चाहिए। यह भी तय किया गया कि एक अलग नीति लक्ष्यका अनुच्छेद होना चाहिए जो संविधान का अभिन्न अंग होगा। मसौदे को विचार-विमर्श तथा सदस्यों एवं शुभचिंतकों के प्राप्त सुझावों के आधार पर तथा सभी सम्बंधित लोगों की सहमति से अंतिम रूप देते हुए बैठक में मौजूद आइपीएफ (आर) प्रतिनिधियों द्वारा स्वीकृत किया गया। आइपीएफ (आर) के ‘‘संविधान तथा नीति लक्ष्य‘‘ को प्रस्तुत किया जा रहा है।
दिनांकः 21.11.2013
अखिलेन्द्र प्रताप सिंह
राष्ट्रीय संयोजक
आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल)

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) का संविधान
प्रस्तावना

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) - आइपीएफ (आर) एक जन राजनीतिक मंच है जो शोषण और हृदयहीनता से मुक्त एक मानवीय समाज के लिए समर्पित है। यह वर्तमान शोषणमूलक और अन्यायपूर्ण सामाजिक-आर्थिक ढांचे के अंत के लिए प्रतिबद्ध है। इसकी संकल्पना एक ऐसी सामाजिक एवं आर्थिक संरचना की स्थापना है जो जनआधारित तथा पर्यावरणपक्षीय है। यह समानता तथा एकजुटता के सिद्धांतों से प्रेरित है और इसका लक्ष्य सबके लिए गरिमामय जीवन की गारण्टी करना है।कारपोरेट पूंजी और सट्टेबाज वित्तीय पूंजी के अंतर्राष्ट्रीय गिरोह तथा भारतीय शासक वर्ग का हित एक हो गया है। वह इन
वैश्विक ताकतों के साथ अधिकाधिक गहरे और वृहत्तर रिश्तों में आंख मूंदकर बंधता जा रहा है। हालांकि नवउदारवादी आर्थिक ढांचा स्वयं वैश्विक पूंजी के अपने केन्द्र में ही सबसे गहरे संकट का सामना कर रहा है।
आइपीएफ (आर) का मत है कि मौजूदा दौर ने, जिसमें इन विनाशकारी ताकतों ने गठजोड़ कायम कर लिया है, इस लक्ष्य को प्राप्त करना और भी जरूरी बना दिया है।व्यापक जनसमुदाय पर दो दशकों की नवउदारवादी नीतियों के विनाशकारी प्रभाव ने समाज में लम्बे समय से मौजूद दरिद्रता और असमानता को और भी तीखा कर दिया है। छोटे और सीमांत किसान, खेत मजदूर, दस्तकार, संगठित, असंगठित तथा
अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर, महिला श्रमिक और कथित स्वरोजगार में लगे लोग इसके बदतरीन शिकार हुए हैं जबकि ऊपरी तबके के एक छोटे से हिस्से ने अभूतपूर्व पैमाने पर संपत्ति और आय अर्जित की है। नवउदारवादी नीतियों पर मुग्ध रहे मध्यवर्ग का अब इससे अधिकाधिक मोहभंग होता जा रहा है और जल्द ही परिस्थितियां उसे यह तय करने के लिए बाध्य कर देंगी कि वह शासक वर्ग या मेहनतकश तबके के पक्ष में खड़ा हो। जनता के समक्ष मौजूद चुनौतियों से ध्यान हटाने के लिए शासक वर्ग द्वारा आम जनता के बीच फूट और विभाजन पैदा करने यहां तक कि लड़ाने के योजनाबद्ध ढंग से प्रयास किए जा रहे हैं। इस सनकभरी परियोजना का ही एक पहलू महत्वपूर्ण पड़ोसी देशों के खिलाफ अंधराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद भड़काने की कोशिश है। उनकी यह कार्रवाई वैश्विक महाशक्ति, जो अंतर्राष्ट्रीय पूंजी का केन्द्र भी है, की रणनीतिक योजना से मेल खाती है। साथ ही, कानून व्यवस्था के नाम पर लोकतांत्रिक असहमति तथा जनगोलबंदी के दायरे में जबर्दस्त कटौती की जा रही है। इससे भी बुरी बात यह कि ‘‘विकास‘‘ और ‘‘सुशासन‘‘ के अनालोचनात्मक और सतही नारों की आड़ में कारपोरेट पूंजी के प्रोत्साहन व समर्थन से तानाशाही की प्रवृत्तियां उभर रही हैं जो राज्य मशीनरी पर पूरी तौर पर कब्जा करने पर आमादा हैं। आइपीएफ (आर) का मानना है कि आज समय की मांग है कि एक रेडिकल और समावेशी राजनीति के लिए एक व्यापक
लोकतांत्रिक मंच का निर्माण किया जाए। एक ऐसी राजनीति जो राज व समाज के जनतंत्रीकरण को गहरा करे, जो समानता,धर्मनिरपेक्षता (Secularisum), एकजुटता के आधुनिक मूल्यों को सुदृढ़ करे तथा जो सबके लिए स्वतंत्रता और गरिमा की गारंटी करे। राजनीति जो सामाजिक असमानता तथा अन्याय के सदियों से चले आ रहे अभिशाप का अंत करे। राजनीति जो नवउदारवाद की चुनौती का मुंहतोड़ जवाब दे तथा शासक वर्ग के नापाक मंसूबे को शिकस्त दे। राजनीति जो भारत की उस संकल्पना की पुनः तलाश करेगी जिसे हमने उपनिवेशवादविरोधी दीर्घ संघर्ष से विरासत में हासिल किया है। एक शब्द में नियति के साथ अपने साक्षात्कार को हमें पुनर्जीवित करना है। आइपीएफ (आर) इस कार्यभार के प्रति समर्पित है और इस लक्ष्य की दिशा में संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए सभी समान विचार वाले राजनैतिक संगठनों, समूहों, एक्टिविस्टों और व्यक्तियों के साथ हाथ मिलाने का इच्छुक है।
संवैधानिक उद्घोषणा
आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति तथा समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगा तथा भारत की प्रभुता, एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा।
धाराएं
(1) नाम: राजनीतिक पार्टी का नाम है: आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल): आइपीएफ (आर)।
(2) झन्डा: आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के झंडे में लाल, पीले, हरे रंग की तीन समान क्षैतिज पट्टियां इसी क्रम में होंगी। झंडे का आकार 3: 2 की लम्बाई चैड़ाई के अनुपात के साथ आयाताकार होगा।
(3) सदस्यता: कोई भी वयस्क भारतीय नागरिक जो आइपीएफ (आर) के संविधान को स्वीकार करता है तथा इसके नीति लक्ष्य, नीतियों एवं कार्यक्रम का अनुमोदन करता है, इसका सदस्य बन सकता है।
(4) घटक संगठन:
(अ) आइपीएफ (आर) के संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित लक्ष्य और प्रस्ताव तथा इसकी संवैधानिक उद्घोषणा और नीति लक्ष्यों से सहमत संगठन घटक संगठन के बतौर विभिन्न स्तरों पर सीधे आइपीएफ (आर) में शामिल हो सकते हैं। आइपीएफ (आर) उनकी स्वतंत्र कार्यवाही में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
(ब) घटक संगठन द्वारा नामित एक उच्चस्तरीय पदाधिकारी आइपीएफ (आर) की राष्ट्रीय तथा राज्यस्तरीय कमेटियों का पदेन सदस्य होगा।
(स) दूसरे समान विचार वाले संगठनों के सदस्य आइपीएफ (आर) के सदस्य बन सकते हैं बशर्ते वे धारा 3 में उल्लिखित मानक को पूरा करते हों तथा उनके मूल संगठन की सदस्यता उन्हेें ऐसी गतिविधियों में लिप्त होने को प्रेरित न करती हो जो आइपीएफ (आर) के उद्देश्य और लक्ष्य के साथ संगत न हो अथवा उसकी दिशा और नीतियों के प्रतिकूल हो।
(5) कार्यप्रणाली और कार्यक्षेत्र: अपने विकास और निर्माण प्रक्रिया, ढांचे और दर्शन के मद्देनजर आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) जहां तक सम्भव होगा, सर्वसम्मति से काम करेगा तथा आपसी विचार-विमर्श के आधार पर फैसले लेगा। जहां सर्वानुमति न बन सके वहां फैसला उपस्थित तथा वोट डालने वाले सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिया जाएगा। यदि संविधान की किसी धारा में बहुमत सुस्पष्ट ढंग से परिभाषित नहीं है तो वहां बहुमत का अर्थ सामान्य बहुमत माना जाएगा। आइपीएफ (आर) का कार्यक्षेत्र पूरा भारत होगा और यह राष्ट्रीय, राज्य, जिला, ब्लाक, शहर और स्थानीय स्तर पर अपना सांगठनिक ढांचा खड़ा करेगा।
(6) सांगठनिक ढांचा:
आइपीएफ (आर) के सांगठनिक ढांचे में ग्राम/वार्ड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कुल पांच स्तर होंगे।
अ - ग्राम/वार्ड फ्रंट कमेटी
ब - (1) ब्लाक/शहर फ्रंट कमेटी - (2) ब्लाक/शहर वर्किंग कमेटी
स -(1) जिला फ्रंट कमेटी - (2) जिला वर्किंग कमेटी
द - (1) प्रदेश फ्रंट कमेटी - (2) प्रदेश वर्किंग कमेटी
- (1) आल इण्डिया फ्रंट कमेटी - (2) केन्द्रीय वर्किंग कमेटी
आल इण्डिया फ्रंट कमेटी राष्ट्रीय मुद्दों पर आइपीएफ (आर) की सामान्य नीतियों को तय करेगी तथा राष्ट्रीय पहल और सांगठनिक अभियानों की दिशा निर्धारित करेगी। केन्द्रीय वर्किंग कमेटी विशिष्ट राष्ट्रीय मुद्दों पर आइपीएफ (आर) की समझ व रुख को सूत्रबद्ध करेगी और इसकी नीतियों तथा कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होगी। राष्ट्रीय स्तर की कमेटियों द्वारा तय नीतियों, कार्यक्रमों और पहलकदमियों के ढांचे में प्रदेश फ्रंट कमेटी तथा प्रदेश वर्किंग कमेटी अपने राज्य में वैसी ही भूमिका निभाएगी। जिला/ब्लाक/शहर फ्रंट व वर्किंग तथा ग्राम/वार्ड फ्रंट कमेटियां न केवल विभिन्न राष्ट्रीय तथा राज्यस्तरीय कार्यक्रमों एवं पहलकदमियों को अपने इलाके में लागू करेंगी वरन इससे भी महत्वपूर्ण यह कि वे सुसंगत जमीनी कामकाज के जीवंत केन्द्र के बतौर काम करेंगी ताकि आइपीएफ (आर) की नीतियों और उनके पीछे की भावना स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप व्यावहारिक शक्ल ग्रहण कर सके।राष्ट्रीय स्तर को छोड़कर अन्य स्तरों पर उच्चतर कमेटियों की सहमति से तदर्थ कमेटियां बनायी जा सकती हैं, जहां पूर्ण कमेटी बनाने की शर्तें न पूरी होती हों।
(7) राष्ट्रीय अधिवेशन: तीन वर्ष में एक बार फ्रंट का राष्ट्रीय अधिवेशन होगा। वर्किंग कमेटी जरूरत के अनुरूप इस अवधि में अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी की सहमति से परिवर्तन कर सकती है। सभी प्रदेश कमेटियों के सदस्य, जिला कमेटियों के अध्यक्ष व सचिव तथा ब्लाक कमेटियों के अध्यक्ष राष्ट्रीय अधिवेशन के प्रतिनिधि होंगे। अध्यक्ष, केन्द्रीय वर्किंग कमेटी की सलाह से पदेन प्रतिनिधियों से इतर राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए प्रतिनिधियों को मनोनीत कर सकता है। इन मनोनीत प्रतिनिधियों की संख्या पदेन प्रतिनिधियो के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। राष्ट्रीय अधिवेशन अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी का चुनाव करेगा।
(8) केन्द्रीय वर्किंग कमेटी (CWC): केन्द्रीय वर्किंग कमेटी (CWC) का चुनाव अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी करेगी।
(9) राष्ट्रीय अध्यक्ष: राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी द्वारा किया जाएगा। अध्यक्ष राष्ट्रीय बैठकों की अध्यक्षता करेगा। राष्ट्रीय राजनीतिक कार्यों के संचालन के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय संयोजक और सहसंयोजक को आवश्यकतानुसार मनोनीत कर सकता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय संयोजक और सहसंयोजक केन्द्रीय वर्किंग कमेटी के पदेन सदस्य होंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय वर्किंग
कमेटी के कुछ सदस्य मनोनीत कर सकता हैै। इन मनोनीत सदस्यों की संख्या निर्वाचित केन्द्रीय वर्किंग कमेटी सदस्यों की संख्या के 10 प्रतिशत से किसी भी हाल में अधिक नहीं होगी।
(10) उपाध्यक्ष: केन्द्रीय वर्किंग कमेटी उपाध्यक्षों का चुनाव करेगी। अध्यक्ष उपाध्यक्षों के बीच से वरिष्ठ उपाध्यक्ष को नामित करेगा। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में वरिष्ठ उपाध्यक्ष राष्ट्रीय स्तर की बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
(11) महासचिव एवं सचिव: महासचिवों एवं सचिवों का चयन केन्द्रीय वर्किंग कमेटी की बैठक में होगा। केन्द्रीय वर्किंग कमेटी महासचिवों के बीच से सांगठनिक महासचिव का चुनाव करेगी। सांगठनिक महासचिव राष्ट्रीय स्तर की बैठकों को बुलायेगा व संचालित करेगा, दस्तावेज तैयार करेगा और बैठकों का जरूरी रेकार्ड रखेगा। सचिव महासचिवों के काम में मदद करेंगे। सांगठनिक महासचिव आइपीएफ
(आर) के नाम पर कानूनी तथा वित्तीय मामलों को देखने के लिए केन्द्रीय वर्किंग कमेटी द्वारा अधिकृत किया जा सकता है।
(12) कार्यालय सचिव का चयन अध्यक्ष करेगा जो कार्यालय सम्बंधी कार्य सम्पादित करेगा। वह आइपीएफ(आर) की ओर से कानूनी जरूरतों तथा दायित्वों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होगा।
(13) कोषाध्यक्ष: केन्द्रीय वर्किंग कमेटी के सदस्यों के बीच से अध्यक्ष कोषाध्यक्ष को मनोनीत करेगा। वह पार्टी के आय-व्यय का हिसाब रखेगा व आर्थिक मामलों की देखभाल करेगा। वह सूचीबद्ध बैंक में आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के नाम पर खाता खोलेगा। खाते का संचालन कोषाध्यक्ष तथा अध्यक्ष द्वारा नामित एक अन्य उच्च पदाधिकारी, के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा।
कोषाध्यक्ष आइपीएफ (आर) के वित्तीय कार्यकलाप के संदर्भ में देश के कानून के हिसाब से जरूरी दायित्वों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होगा मसलन आडिट, आयकर, सेवाकर आदि।
(14) राष्ट्रीय से इतर कमेटियों के पदाधिकारी: राष्ट्रीय से इतर कमेटियां अपने पदाधिकारियों का चुनाव अपनी द्विवार्षिक बैठक में करेंगी। ग्राम/वार्ड कमेटियां अपनी वार्षिक बैठक में पदाधिकारी चुनेंगी।
(15) सलाहकार परिषद: अध्यक्ष राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर आवश्यकतानुसार सलाहकार परिषद का गठन कर सकते हैं। सलाहकार परिषद के सदस्य तथा पदाधिकारी आइपीएफ (आर) के सदस्य भी हो सकते हैं। सलाहकार परिषद आइपीएफ (आर) की नीतियों, कार्यक्रमों तथा गतिविधियों को सूत्रबद्ध करने में महत्वपूर्ण परामर्शदायी भूमिका निभाएगी। सलाहकार परिषद के सदस्यों को अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी और प्रांतीय फ्रंट कमेटी की बैठकों में अध्यक्ष आमंत्रित कर सकते हैं। सलाहकार परिषद के ऐसे सदस्य जो आइपीएफ (आर) के सदस्य नहीं हैं, वे मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे।
(16) संसदीय बोर्ड: अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी और प्रान्तीय फ्रंट कमेटी के सदस्यों के बीच से राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रांतीय अध्यक्ष क्रमशः राष्ट्रीय व प्रांतीय संसदीय बोर्डों की नियुक्ति करेंगे। प्रत्याशियों तथा अन्य चुनाव सम्बन्धी महत्वपूर्ण विषयों पर प्रान्तीय संसदीय बोर्डों के फैसलों पर केन्द्रीय वर्किंग कमेटी का अनुमोदन वांछित होगा। घटक संगठनों के सदस्य संसदीय बोर्ड के लिए उच्चस्तरीय पदाधिकारी को
नामित करेंगे।
(17) प्रान्तीय/जिला/ब्लाक/शहर व प्राथमिक स्तरीय सम्मेलन: ये सम्मेलन द्विवार्षिक होंगे। सम्बंधित प्रान्तीय/जिला/ब्लाक/शहर स्तरीय वर्किंग कमेटियां समय और स्थान तय करेंगी। ग्राम/वार्ड स्तरीय कमेटियों की सालाना बैठक होगी, सम्बंधित अध्यक्ष समय व स्थान तय करेंगे। इन सम्मेलनों के प्रतिनिधियों का चुनाव/चयन अथवा मनोनयन राष्ट्रीय स्तर की कमेटियों की तरह ही होगा, किन्तु चयन का दायरा सम्बंधित कमेटी के कार्यक्षेत्र तक सीमित होगा। ये सम्मेलन सम्बंधित स्तर की फ्रंट कमेटियों का चुनाव करेंगे। राज्य
स्तर से नीचे महासचिव का पद नहीं होगा। इन सम्मेलनों को सम्बंधित उच्चतर कमेटी द्वारा अनुमोदन लेना अनिवार्य होगा।
(18) ग्राम/वार्ड फ्रंट कमेटी: यह फ्रंट की बुनियादी इकाई है, जिसमें ग्राम/वार्ड स्तर के सभी आइपीएफ (आर) सदस्य शामिल होंगे। यह अपने अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियों का चुनाव करेगी। इसका कार्यकाल एक वर्ष का होगा।
(19) विशेष प्रावधान: सभी कमेटियों तथा पदाधिकारियों में महिला, दलित, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, अन्य पिछड़ा वर्ग, सर्वाधिक एवं अति पिछड़े वर्ग से निश्चित संख्या में प्रतिनिधि अवश्य होंगे। इस हेतु सम्बंधित कमेटियों के अध्यक्ष के पास मनोनयन का अधिकार होगा।
(20) संविधान संशोधन: संविधान में संशोधन का प्रस्ताव केन्द्रीय वर्किंग कमेटी में पेश किया जाएगा जो इस पर सावधानीपूर्वक विचार करेगी और उपस्थित तथा वोट डालने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के आधार पर इसका अनुमोदन करेगी और इसकी आल इण्डिया फ्रंट कमेटी से संस्तुति करेगी। आल इण्डिया फ्रंट कमेटी अन्य बदलावों के साथ जिन्हें वह उचित समझती हो, अपने उपस्थित तथा वोट डालने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के आधार पर इसका अनुमोदन कर सकती है। संशोधन तत्काल बाद प्रभावी हो
जाएगा।
(21) विशेष सत्र: अध्यक्ष किसी जरूरी मुद्दे/मुद्दों पर विचार के लिए केन्द्रीय वर्किंग कमेटी का विशेष सत्र बुला सकता है। केन्द्रीय वर्किंग कमेटी किसी महत्वपूर्ण एवं जरूरी मुद्दे/मुद्दों पर विचार के लिए आल इण्डिया फ्रंट कमेटी का विशेष सत्र आयोजित कर सकती है।
(22) अनुशासनात्मक कार्रवाई: फ्रंट के हितों के विरुद्ध कार्य करने वाले सदस्यों के विरुद्ध सम्बंधित फ्रंट कमेटी अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी, जिसके तहत उसे चेतावनी देना, निलम्बित करना व निष्कासित करना शामिल है। सम्बंधित सदस्य के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से पहले उसे समुचित नोटिस तथा अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा और अनुशासनात्मक कार्रवाई के हर फैसले का उच्चतर कमेटी द्वारा अनुमोदन कराना अनिवार्य है। समाज विरोधी गतिविधियों में लगे किसी भी सदस्य को निष्कासित करने का अधिकार सम्बंधित फ्रंट कमेटी के अध्यक्ष के पास रहेगा, पर अपने इस निर्णय का अनुमोदन उसे सम्बंधित फ्रंट कमेटी से कराना होगा। आपात स्थितियों में राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी कमेटी को भंग कर सकता है या किसी सदस्य व पदाधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है, पर उसे इस निर्णय का अनुमोदन केन्द्रीय वर्किंग कमेटी से यथाशीघ्र कराना होगा। किसी कमेटी के अनुशासनात्मक कार्रवाई के विरुद्ध उच्चतर कमेटी के समक्ष अपील करने का अधिकार सदस्य को होगा और यदि यह फैसला सर्वोच्च कमेटी अर्थात आल इण्डिया फ्रंट कमेटी द्वारा लिया गया है तो सम्बंधित सदस्य को उसके पास पुनर्समीक्षा, पुनर्विचार के लिए भेजने का अधिकार होगा। मामले पर पुनर्विचार के बाद अपीलीय पुनर्समीक्षा निकाय द्वारा दिया गया निर्णय अन्तिम और मान्य होगा।
(23) वित्तीय प्रावधान: फ्रंट प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के 60 दिनों के भीतर आयोग को वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करेगा। पार्टी का लेखा परीक्षण (ब्।ळ) में मउचंदमससमक आडिटर से कराया जायेगा। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) का फंड राजनीतिक कार्यों के लिए ही इस्तेमाल किया जायेगा। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) अपने वित्तीय लेखों के रख-रखाव में आयोग द्वारा समय-समय पर जारी अनुदेशों का पालन करेगा।
(23) (क) आइपीएफ (आर) अपने संसाधन सदस्यता शुल्क व सदस्यों, शुभचिंतकों, समान विचार वाले व्यक्तियों तथा संगठनों द्वारा दिए गए अनुदान से विकसित करेगा। यह किसी भी विदेशी स्रोत से कोई धन स्वीकार नहीं करेगा। इस तरह एकत्र धन आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के नाम पर सूचीबद्ध बैंक में खोले गए खाते में रखा जाएगा।
(24) विलय व विघटन: किसी दूसरे राजनैतिक संगठन में विलय व विघटन का निर्णय केन्द्रीय वर्किंग कमेटी की बैठक में भाग ले रहे तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत के आधार पर होगा। यह फैसला आल इण्डिया फ्रंट कमेटी की बैठक में उपस्थित तथा मतदान में हिस्सा लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदन के बाद ही अंतिम रूप ग्रहण करेगा।
(25) विविध:
अ - विभिन्न निकायों की बैठक बुलाए जाने पर सभी सम्बंधित सदस्यों को बैठक की समुचित सूचना दी जाएगी।
ब - सदस्यता शुल्क का फैसला केन्द्रीय वर्किंग कमेटी द्वारा किया जाएगा।
स - जहां संविधान में कोई विशिष्ट प्रावधान उपलब्ध न हो और तत्काल फैसला लेना जरूरी हो, केन्द्रीय वर्किंग कमेटी अपने उपस्थित तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के अनुमोदन के साथ आवश्यकतानुसार समुचित फैसला लेने के लिए अधिकृत होगी। इस फैसले का आल इण्डिया फ्रंट कमेटी की बैठक में उपस्थित तथा मतदान में हिस्सा लेने वाले सदस्यों के सामान्य बहुमत से अनुमोदन आवश्यक होगा। ऐसे फैसले को संविधान की प्रस्तावना, संवैधानिक उद्घोषणा तथा वर्तमान प्रावधानों एवं संविधान
की अन्तर्निहित भावना के साथ सुसंगत होना चाहिए।

नीति लक्ष्य
नीति लक्ष्य की प्राथमिकता सूची
* जनवादी अधिकारों और स्वतंत्रता पर हमले को शिकस्त देना और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून समेत सभी विशेष कानूनों का, जो संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक दायरे को सीमित करते हैं और राज्य को बल प्रयोग के एकाधिकार का दुरुपयोग करने में सक्षम बनाते हैं, खत्म करने के लिए संघर्ष।
* कृषि पर कार्पोरेट कब्जे को विफल करना। भूमि, जल, बीज, जंगल, खनिजों के निगमीकरण () का प्रतिरोध करना, सहकारिता (Corporatisation) को प्रोत्साहन देना तथा इन मूलभूत संसाधनों के मालिकाने तथा कामकाज के समाजीकरण की ओर बढ़ना।
* सामुदायिक स्थलों, विशेषकर वन तथा आदिवासी आबादी व जमीन पर कारपोरेट अतिक्रमण व कब्जे को शिकस्त देना, आदिवासी सामुदायिक अधिकारों तथा आजीविका की हिफाजत करना, वन संसाधनों के सामुदायिक मालिकाने तथा प्रबंधन की रक्षा करना।
* उन नीतियों को शिकस्त देना जो खनिज संसाधनों की कारपोरेट लूट को मदद पहुंचाती है तथा आदिवासियों के जीवन, आजीविका तथा रिहायशी आबादी का विनाश करती है।
* विश्व व्यापार संगठन (वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन) के अंतर्गत ‘‘कृषि विषयक समझौता‘‘ (एग्रीमेंट आन एग्रीकल्चर) को शिकस्त देना, कृषि उत्पादन और व्यापार में दक्षिण देशों के सहयोग के माध्यम से किसान केन्द्रित विकल्प के लिए संघर्ष।
* विकास की वैकल्पिक नीतियों के लिए संघर्ष जो न केवल मुख्यधारा की ‘‘भूमण्डलीकृत विकास’’ की रणनीति को नकारती हैं बल्कि आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती हंै, शैक्षिणिक व सामाजिक रूप से उन्नत वर्गों की तुलना में पिछड़े वर्गों, व्यक्तियों व विभिन्न अंचलों की समता और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करती है। इस विकास नीति के अमल से औद्योगीकरण की पद्धति और दिशा बदलेगी, इसका मतलब यह होगा कि ‘‘वैश्विक दृष्टि से प्रतिस्पर्धीउद्योगों की मोहग्रस्तता से मुक्ति मिलेगी और रोजगारपरक
तकनीकी पर आधारित व जनोपयोगी दिशा वाले उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।
* स्वास्थ्य एवं शिक्षा के व्यापारीकरण की प्रक्रिया का अन्त करना। भोजन व अन्य जरूरी चीजों तक जनता की सीमित पहुंच वाली तथा भेदभावपूर्ण महंगी मौजूदा व्यवस्था की जगह स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और अन्य जरूरी चीजों के प्रावधान के लिए सर्वांगीण समतापरक, सुलभ सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना।
* एक राष्ट्रीय वेतन और आय नीति जो विभिन्न क्षेत्रों व वर्गों के बीच असमानता में भारी कमी करे।
* रोजगार का अधिकार तथा शालीन जीवन स्तर के लिए कानूनी उपायों तथा उपयुक्त आर्थिक नीतियों की पहल लेना।
* सामाजिक रूप से वंचित वर्गों व समुदायों के लिए निजी और सरकारी क्षेत्रों में शिक्षा व रोजगार में विशेष अवसरों की कानूनी गारंटी।
* भारी पैमाने पर व्याप्त धनबल व बाहुबल के खात्में के लिए, आनुपतिक प्रतिनिधित्व के लिए, जनतंत्रीकरण की प्रक्रिया को स्वच्छ और गहरा करने के लिए एक मुकम्मल चुनाव सुधार।
* प्रशासनिक ढांचे पर जन-नियंत्रण तथा निगरानी, खासतौर पर आम लोगों के रोजमर्रे के कामों के निस्तारण के लिए।
* उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद विरोधी लम्बे संघर्ष से हासिल भारत की मूल संकल्पना को ही चुनौती देने वाली साम्प्रदायिक फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ना तथा शिकस्त देना।
* धर्म जिसका स्वाभाविक क्षेत्र (डोमेन) निजी क्षेत्र है उसमें उसे बनाए रखना और उसका राज्य तथा राजनीति से पूर्ण अलगाव करना।
* ऐतिहासिक तौर पर उभरी अपनी सांस्कृतिक तथा राजनीतिक पहचान सुनिश्चित करने के लिए उपराष्ट्रीयताओं तथा सीमावर्ती राज्यों के संघर्षों का समर्थन एवं भारतीय राज्य के अधीन पूर्णतर स्वायत्ता की आकांक्षा का समर्थन।
* भारतीय वित्तीय व्यवस्था की स्वायत्तता को मजबूत करना तथा इसे वैश्विक पंूजी की दुर्बलता और लालच से बचाना, आंचलिक वित्तीय सहयोग जैसे क्षेत्रीय मौद्रिक संघ के लिए काम करना।
* अमरीकी रणनीतिक संश्रय से निर्णायक अलगाव और अमरीकी सैन्यवाद का विरोध, विशेषकर पश्चिम एशिया में अमरीकी-इजराइली सैन्यवाद और अमेरीका-इजराइल प्रायोजित इस्लामोफोबिया का पर्दाफाश करना और उसे शिकस्त देना।
* महत्वपूर्ण पड़ोसी देशों विशेषकर चीन तथा पाकिस्तान के प्रति अंधराष्ट्रवादी तथा युद्धोन्मादी नीतियों व पैंतरेबाजी के खिलाफ लड़ना और इसे शिकस्त देना एवं भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया व सम्पूर्ण विश्व में शांति और सहयोग के लिए प्रयास करना।
* एक नवीन ऊर्जा नीति जो हमारे रणनीतिक, कृषि व औद्योगिक नीतियों की नयी दिशा के अनुरूप हो। तेल, गैस से समृद्ध पश्चिम एशिया व मध्य एशिया के देशों के साथ चुनिंदा रणनीतिक सहयोग, शंघाई सहयोग संगठन के साथ घनिष्ठ सहयोग।

एस.आर. दारापुरी आईपीएस (से.नि.)
राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
ई मेल:srdarapuri@gmail.com, aipfr.org@gmail.com
Mob: 9415164845, 9451061595
www.aipfr.org


Saturday, 21 June 2014

* आइपीएफ ने फूंका मोदी सरकार का पुतला * जनविरोधी रेल भाड़ा वापस ले सरकार

* आइपीएफ ने फूंका मोदी सरकार का पुतला
* जनविरोधी रेल भाड़ा वापस ले सरकार

लखनऊ, 21 जून 2014, आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) ने मोदी सरकार
द्वारा रेल यात्री किराए में 14.2 प्रतिशत और माल भाड़ा में 6.5 प्रतिशत की
वृद्धि करने के अलोकतांत्रिक व जनविरोधी
फैसले के खिलाफ पूरे देश में मोदी सरकार का पुतला फूंका। लखनऊ में आइपीएफ
के प्रदेश संगठन प्रभारी दिनकर कपूर और अन्य कार्यकर्ताओं ने विधानसभा के
सामने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के साथ मिलकर पुतला जलाया।
इसके अलावा उ0 प्र0 के सोनभद्र के अनपरा, ओबरा औद्योगिक क्षेत्रों और ब्लाक
मुख्यालयों, चंदौली, वाराणसी, बदायंू, सम्भल, गोण्ड़ा, बस्ती, मिर्जापुर,
गाजीपुर आदि जनपदों, बिहार के जहानाबाद, अरवल और हरियाणा के फरीदाबाद समेत
देश के तमाम केन्द्रों पर मोदी सरकार का पुतला जलाकर सरकार से तत्काल इस
मूल्यवृद्धि को वापस लेने की मांग की है। यह जानकारी आल इण्डिया पीपुल्स
फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने आज प्रेस को
जारी अपनी विज्ञप्ति में दी।
अखिलेन्द्र ने बताया कि मोदी सरकार
मनमोहन सरकार की सच्ची वारिस है और उसी की तरह जनता को कड़वी दवा के नाम पर
जहर देकर मार डालना चाहती है। कारपोरेट मुनाफे के लिए यह सरकार भी जनता के
विरुद्ध युद्ध में उतरी हुई है। रेल किराए में वृद्धि का यह फैसला महंगाई
की मार से पहले से ही कराह रही जनता पर और बोझ बढायंेगा। उन्होंने कहा कि
अभी संसद में बजट और रेल बजट आना ही था उससे पहले ही अलोकतांत्रिक तरीके से
रेल के किराए में वृद्धि कर कारपोरेट के अच्छे दिनों के लिए यह सरकार
पूर्ववर्ती सरकार की तरह ही संसदीय लोकतंत्र का मखौल उड़ा रही है। बेशर्मी
की हद यह है कि जिस महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी पैदा करने वाली
नीतियों के खिलाफ पैदा हुए गुस्से के कारण यह सरकार सत्ता में आयी आज उसी
जनादेश का अपमान करते हुए भाजपाई कह रहे कि हम तो पिछली सरकार के फैसले को
लागू कर रहे हैं। उन्होंने सरकार से तत्काल अपने इस जनविरोधी फैसले को वापस
लेने की मांग की।

दिनकर कपूर
संगठन प्रभारी
आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) उ0 प्र0।

Wednesday, 4 June 2014

महिलायों पर बलात्कार और पुलिस - एस.आर.दारापुरी



महिलायों पर बलात्कार और पुलिस
एस.आर.दारापुरी, आई.पी.एस (से.नि.)   
हाल में बदायूं में दो दलित लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में पुलिस की कार्रवाही न केवल अपने कर्तव्य के प्रति लापरवाही बल्कि अपराध में उनकी संलिप्तता को भी दर्शाती है. उपलब्ध जानकारी के अनुसार दोनों लड़कियों के ग़ायब होने की सूचना पुलिस को रात में ही प्राप्त हो गयी थी. यदि पुलिस ने उस पर तुरंत कार्रवाही शुरू कर दी होती तो शायद दोनों लकड़ियों की जान बच जाती. परन्तु पुलिस की लापरवाही और मिली भगत की परिणति दो मासूम लड़कियों का बलात्कार और हत्या में हुयी.
यह भी सर्वविदित है कि पुलिस अपराधों की प्रथम सूचना दर्ज करने में हद दर्जे की हीलाहवाली करती है जिस के गंभीर परिणाम होते हैं जैसा कि बदायूं वाली घटना में हुआ. पुलिस ऐसा कई कारणों से करती है. पुलिस के इस आचरण के लिए केवल थाना स्तर के कर्मचारी ही नहीं बल्कि  उच्च अधिकारी जहाँ तक कि मुख्य मंत्री तक भी जिम्मेवार होते हैं. ऐसा इसी लिए होता है कि राजनीतिक कारणों से हरेक मुख्य मंत्री अपने शासनकाल में पूर्व सरकार की अपेक्षा अपराध के आंकड़े कम करके दिखाने की कोशिश करता है. अधिकतर पुलिस से  सरकार की यह अपेक्षा गुप्त होती है परन्तु होती ज़रूर है.  
वर्तमान में पुलिस की कार्यकुशलता का मूल्यांकन अपराध के आंकड़ों के आधार पर होता है न कि क्षेत्र में वास्तविक अपराध नियंतरण एवं शांति व्यवस्था के आधार पर. इसी लिए पुलिस का सारा ध्यान आंकड़ों को फिट रखने में ही लगा रहता है. इस का सब से आसान तरीका अपराधों का दर्ज न करना होता है. यह भी सर्वविदित है कि विभिन्न कारणों से अपराध का ग्राफ हमेशा ऊपर की ओर बढ़ता है न कि नीचे की ओर. हाँ इतना ज़रूर है कि सक्रिय एवं दक्ष पुलिस अपराध को कुछ हद तक नियंतरण में रख सकती है परन्तु इस में बहुत बड़ी कमी लाना बहुत मुश्किल है. इसी लिए अपराध के सरकारी आंकड़े कुल घटित अपराध का बहुत छोटा हिस्सा ही होते हैं. अपराध के आंकड़े कम रखने में पुलिस का भी निहित स्वार्थ है. इस से एक तो उनका काम हल्का हो जाता है. दूसरे इस में भ्रष्टाचार का स्कोप भी बढ़ जाता है.
आम जनता की पुलिस से यह अपेक्षा रहती है कि उन की रिपोर्ट तत्परता से लिखी जानी चाहिए और उस पर त्वरित कार्रवाही हो. ऐसा तभी संभव है जब सरकार द्वारा थाने पर स्वतंत्रता से अपराध दर्ज करने की छूट दी जाये. आज कल तो सत्ताधारी लोग थाने पर रिपोर्ट लिखने अथवा न लिखने में भी भारी दखल रखते हैं. जिस मामले में सरकार चाहती है रिपोर्ट दर्ज होती है जिस में नहीं चाहती वह दर्ज नहीं होती है. इसी कारण से जिन मामलों में पुलिस वाले रिपोर्ट दर्ज न करने के दोषी भी पाए जाते हैं जैसा कि बदायूं वाले मामले में भी है उन में भी पुलिस वालों के खिलाफ कोई कार्रवाही नहीं होती. दलित और कमज़ोर वर्ग के मामलों में तो यह पक्षपात और लापरवाही खुले तौर पर होती है.
महिलायों के मामलों में थाने पर पुलिस का व्यवहार शिकायत करता को हतोउत्साहित करने एवं टालने वाला होता है. यदि कोई व्यक्ति थाने पर अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट करने जाता है तो पुलिस रिपोर्ट न लिख कर उस के घर वालों को उसकी तलाश करने की हिदायत दे कर चलता कर देती है.  इसी प्रकार बलात्कार के मामलों में तुरंत मुकदमा दर्ज न करके पुलिस दोषी पक्ष को बुला कर वादी से समझौता करने के लिए दबाव डालती है. इस प्रक्रिया में कई बार मुकदमा दर्ज होने और डाक्टरी होने में काफी विलम्ब  हो जाता है जिस से डाक्टरी जांच का परिणाम भी कुप्रभावित हो जाता है. पुलिस के कार्यकलाप में जातिभेद भी काफी हद तक हावी रहता है. आम लोगों का कहना है कि थाने पर वादी और दोषी की जात देख कर कार्रवाही होती है. वर्तमान में पुलिस बल का जातिकरण और राजनीतिकरण इस आरोप को काफी बल देता है.
अतः महिलायों पर बलात्कार एवं अन्य अपराधों के त्वरित पंजीकरण एवं प्रभावी कार्रवाही हेतु सब से पहले ज़रूरी है कि थाने पर अपराधों का स्वतंत्र रूप से पंजीकरण हो जिस के लिए सरकार द्वारा पुलिस को पूरी छूट दी जानी चाहिए. इस के लिए अपराध पंजीकरण हेतु एक अलग शाखा बनाने पर भी विचार किया जा सकता है. दूसरे अपराध छुपाने और दर्ज न करने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाही होनी चाहिए. तीसरे पुलिस कर्चारियों को महिलायों, बच्चों, दलितों और समाज के कमज़ोर वर्गों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु निरंतर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इन सब से बढ़ कर ज़रूरत है सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित किये गए पुलिस सुधार को लागू करने की ताकि पुलिस को कार्य स्वतंत्रता मिल सके और वह सत्ताधारियों की बजाये जनता के प्रति जवाबदेह बन सके. तभी वर्तमान की शासक वर्ग की पुलिस को जनता की पुलिस में रूपांतरित करना संभव हो सकेगा.   
      

महिलाओं पर बलातकार और जाति - एस आर दारापुरी



 महिलाओं पर बलातकार और जाति
एस आर दारापुरी
हाल में उत्तर प्रदेश के बदायूं जनपद में अति पिछड़ी जाति की दो नाबालिग बच्चियों के साथ बलातकार और हत्या की घटना ने कई सवाल खड़े किये हैं. इस में एक तो पुलिस की लापरवाही और संलिप्तता और दूसरे अधिकतर बलात्कारों में दलित और समाज के कमज़ोर तबकों की महिलायों और लकड़ियों को ही शिकार बनाया जाना है. इस में एक ओर जहाँ पुलिस की भूमिका पर प्रशन उठ रहे हैं वहीँ दूसरी ओर ऐसे अपराधों में हमारे समाज की जाति संरचना भी काफी हद तक जिम्मेवार दिखाई देती है.
इस घटना में पुलिस की लापरवाही और संलिप्तता के साथ साथ पुलिस का जाति विशेष के प्रति पूर्वाग्रह भी दिखाई देता है. इसके लिए पुलिस का जातिकरण और राजनीतिकरण भी काफी हद तक जिम्मेवार है. जैसा कि अब तक उभर कर आया है कि जब मृतक लड़की का पिता पुलिस के पास लड़कियों को अगवा किये जाने की शिकायत लेकर गया तो सब से पहले पुलिस वालों ने उसकी जात पूछी. जब उस ने अपनी जाति बताई तो पुलिस वालों ने उस का अपमान किया और उसका मज़ाक उड़ाया तथा उस की शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की जिस का नतीजा यह हुआ कि दोनों लड़कियों का बलात्कार करके उन्हें पेड़ पर लटका दिया गया.
पुलिस के इस व्यवहार से यह उभर कर आया है कि थाने पर पुलिस का व्यवहार समाज के सभी वर्गों के प्रति समान नहीं है. वहां पर भी समाज के कमज़ोर तबकों के साथ जातिभेद किया जाता है. काफी लोगों का कहना है कि थाने पर जाति देख कर कार्रवाई की जाती है. इस का मुख्य कारण यह है कि हमारी पुलिस की संरचना भी जाति तथा सम्प्रदाय निरपेक्ष नहीं है. इस के इलावा पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों के व्यक्तिगत जाति तथा सम्प्रदाय के पूराग्रह भी काफी हद तक उनकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करते हैं. अतः यह ज़रूरी है कि एक तो पुलिस में सभी जातियों और सम्प्रदायों का उचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए और दूसरे पुलिस कर्मचारियों को इन वर्गों और महिलायों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाने के लिए प्रभावी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. इस सम्बन्ध में जानबूझकर गलती करने वालों को अनुकरणीय दंड दिया जाना चाहिए. इस के अतिरिक्त पुलिस को बाहरी दबावों से मुक्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित पुलिस सुधार लागू करने के लिए जन दबाव पैदा किया जाना चाहिए.
दलित और कमज़ोर वर्गों की महिलायों पर सब से अधिक बलात्कार ग्रामीण क्षेत्र में होते हैं. यह इस लिए है कि हमारी ग्रामीण समाज व्यवस्था आज भी सामंती और जाति आधारित है. ग्रामीण क्षेत्र में आज़ादी के बाद पुराने सामंतों की जगह नए सामंत पैदा हो गए हैं जो न केवल आर्थिक तौर पर मज़बूत हैं बल्कि उन्हें राजनैतिक और प्रशासनिक सत्ता का भी पूरा सहयोग रहता है. गाँव में यह सामंत पूरी तरह स्वेच्छाचारी आचरण करने के लिए स्वतन्त्र हैं. इसी लिए वे दलित और कमज़ोर वर्ग की औरतों और लड़कियों का निडर हो कर यौन शोषण करते हैं क्योंकि इन वर्गों की शिकायतों की पर थाने पर अथवा अन्यत्र वैसी सुनवाई नहीं होती जैसी कि कानून के अनुसार अपेक्षित है. दलित और अन्य कमज़ोर वर्ग के लोग इन सामंतों की ज्यादितियों का उचित प्रतिरोध इसी लिए भी नहीं कर पाते क्योंकि वे सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक तौर पर कमज़ोर हैं और उन्ही सामंतों पर काफी हद तक आश्रित भी हैं.
गाँव में होने वाले बलात्कार के मामलों के विश्लेषण से यह भी पाया गया है कि ऐसी घटनाएँ अधिकतर उस समय होती हैं जब महिलाएं शाम/रात को शौच निवृति के लिए जाती हैं. यह बहुत शर्म की बात है कि हमारे देश में लगभग 50% घरों में शौचालय ही नहीं हैं जिस के लिए औरतों को घर के बाहर जाना पड़ता है जहाँ पर इस प्रकार की घटनाओं की अधिक सम्भावना रहती है. अतः अगर हम अपने आप को एक सभ्य देश कहलाना चाहते हैं तो हमें हरेक घर में शौचालय की व्यवस्था करनी चाहिए. मेरे विचार में नयी सरकार को इस काम को राष्ट्रीय अभियान के तौर पर चलाना चाहिए और आगामी बजट में इस के लिए विशेष प्रावधान करना चाहिए.
अतः दलित और समाज के कमज़ोर तबकों की महिलायों का यौन शोषण और उन पर होने वाले  अत्याचारों को रोकने के लिए यह ज़रूरी है कि इन वर्गों को उचित कानूनी संरक्षण मिले. पुलिस को सामंतों और राजनेताओं की तरफदारी करने की बजाये जनता के प्रति उत्तरदायी बनाया जाये जिस के लिए पुलिस सुधारों का लागू होना बहुत ज़रूरी है. इस के साथ साथ दलित और समाज के अन्य कमज़ोर तबकों का सशक्तिकरण किया जाये ताकि उन की सामंतों पर निर्भरता ख़तम हो सके. इस के लिए भूमि सुधारों का लागू होना बहुत ज़रूरी है. इस के लिए हमें डॉ. आंबेडकर के “जातिविहीन एवं वर्गविहीन समाज की स्थापना” के लक्ष्य को साकार करना होगा.