Tuesday, 9 July 2013

बोधगया में बम विस्फोट और साम्प्रदायिक राजनीति



बोधगया में बम विस्फोट और साम्प्रदायिक राजनीति
एस. आर. दारापुरी
बोधगया में महाबोधि बौद्ध मंदिर परिसर में 7 जुलाई को प्रातः 9 बम विस्फोट हुए हैं जिन्हें सरकार ने आतंकी घटना माना है. यह देश में किसी बौद्ध स्थल पर पहली आतंकी घटना है. इस से आतंकी घटनाओं  का एक नया क्षेत्र सामने आया है. इस में दो बौद्ध भिक्षुओं को चोटें आई हैं जिन में  से एक की चोटें काफी गंभीर हैं परन्तु वह खतरे से बाहर है.  
इस घटना की जांच एनआईए (राष्ट्रीय जाँच एजंसी) द्वारा शुरू की गयी है. अब तक की विवेचना से कोई खास सुराग नहीं मिले हैं. पुलिस ने अब तक विनोद मिस्त्री नाम के एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है जिस से पूछताछ चल रही है. घटना स्थल से उसका एक बैग भी बरामद हुआ है जिस में एक भिक्षु वाला चीवर, एक कागज़ पर कुछ टेलीफोन नंबर, दवाई का पर्चा और विनोद का वोटर पहचान पत्र बरामद हुआ है.
यद्यपि विवेचना से अभी तक इस आतंकी घटना को अंजाम देने वाले व्यक्तियों के बारे में कोई भी  ठोस सुराग नहीं मिला है फिर भी हमेशा की तरह शक की सुई इंडियन मुजाहिदीन की ओर मोड़ दी गयी है. मीडिया और कुछ  राजनीतिक पार्टियों ने बर्मा में बौद्धों और रोहंगीय मुसलमानों के बीच चल रहे साम्प्रदायिक झगडे से जोड़ कर मुस्लिम आतंकियों द्वारा किये जाने का संदेह व्यक्त करना शुरू कर दिया है. केन्द्रीय सरकार ने यह भी कहा है कि बौद्ध स्थलों पर मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा संभावित हमले के बारे में आई बी द्वारा बिहार पुलिस को पहले ही सूचना दी गयी थी. यह भी कहा जा रहा है कि इस  मामले में सुरक्षा व्यवस्था में चूक हुयी है. यद्यपि मौके पर लगे सी सी टी वी कैमरों से कुछ तस्वीरें मिली हैं परन्तु वे स्पष्ट नहीं हैं.
अब अगर देखा जाये तो जहाँ तक आई बी द्वारा दी गयी सूचना का सम्बन्ध है वर्तमान में उस की विश्वसनीयता संदिग्ध कही जा रही है क्योंकि इस से पहले गुजरात में बम्ब विस्फोटों के मामले में उस की साम्प्रदायिक भूमिका और फर्जी मुठभेड़ों की साजिश में उस की संलिप्तता से उस की साख को काफी बट्टा लग चुका है. अब तक यह भी सिद्ध हो चुका है कि किस प्रकार आई बी के कुछ अधिकारियों ने सम्प्रदायिक भूमिका निभाते हुए बेक़सूर मुस्लिम नौजवानों को बम विस्फोट के मामलों में फंसवाया था जब कि बाद में उन घटनाओं के लिए हिन्दुत्ववादी संघठन के लोग जिम्मेवार गए थे. अतः इस मामले में भी आई बी द्वारा मुस्लिम संघटनों के शामिल होने के बारे में दी गयी सूचना को भी इस के प्रत्यक्ष मूल्य पर स्वीकार नहीं किया जा सकता.
 अब तक यह भी स्पष्ट हो चुका है कि आई बी के इजराइल की खुफिया एजंसी मौसाद से बहुत निकट  के सम्बन्ध हैं और वह भारत की पुलिस और आई बी के अधिकारियों को प्रशिक्षित भी कर चुकी है. इतना ही नहीं मौसाद कश्मीर में भारतीय सेना को भी प्रशिक्षित कर चुकी है. केंद्र में एनडीए सरकार के दौरान भाजपा  के इजराइल से बहुत अच्छे संबंध रहे हैं और वर्तमान कांग्रेस सरकार के  भी बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं.  उस से उत्तर प्रदेश में वर्तमान  सपा सरकार के भी बहुत अच्छे सम्बन्ध है. इस सरकार के मंत्री शिवपाल सिंह यादव कुछ समय पहले ही इजराइल की सरकारी यात्रा भी करके आये हैं. भारत में इजराइल की मुख्य दिलचस्पी अपने हथियार बेचने की है और अब तक उसने भारी मात्रा में पुलिस के लिए छोटे और स्वचालित हथियार बेचे भी हैं.  अब तक की विवेचना से मौसाद के हिन्दुत्ववादी संगठन “अभिनव भारत’ से बहुत निकट के सम्बन्ध होने की बात भी सिद्ध हो चुकीं है. अतः बोधगया की घटना में मौसाद की दिलचस्पी से भी इनकार नहीं किया जा सकता. भारत में आतंकी घटनायों से बिगड़े माहौल से ही तो इजराइल के हथियारों की मांग बढ़ेगी.
जहाँ तक बर्मा में बौद्धों और रोहंगिया मुसलमानों के बीच साम्प्रदायिक झगडे का सम्बन्ध है उस के बारे में भारत के मुसलमानों में कोई खास प्रतिक्रिया नहीं देखी गयी है सिवाय तब के जब इंटरनेट पर इस सम्बन्ध में कुछ झूठी और भड़कायू तस्वीरें डाल दी गयी थीं. इस को लेकर लखनऊ में कुछ मुसलमानों द्वारा  बुद्धा पार्क में बुद्ध की मूर्ति को लेकर जो हरकत की गयी थी उसकी स्वयं मुस्लिम संघठनों द्वारा कड़ी निंदा की गयी थी. इस पर भारत के बौद्धों जिन में अधिकतर दलित हैं ने भी कोई खास प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की थी. बौद्ध गया की वर्तमान घटना पर भी भारत के बौद्धों ने इस की निंदा तो ज़रूर कि है और गहराई से जाँच की मांग की है परन्तु मुसलमानों के प्रति किसी प्रकार का आक्रोश नहीं व्यक्त किया है. दलाई लामा और अन्य बौद्ध धम्म गुरुयों ने भी शांति बनाये रखने का ही सन्देश दिया है.
अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि इस घटना से सीधा लाभ किस को मिल सकता है. यह भाजपा और अन्य हिन्दुत्ववादी संघठनों द्वारा पूरे देश में अपने साम्प्रदायिक एजंडे के अंतर्गत मुसलमानों को निशाना बना कर वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीती की कोशिश भीहो सकती है. इस घटना के पीछे अब तक सौहार्दपूर्ण ढंग से रह रहे दलित, बौद्ध और मुसलमानों को  आपस में लड़ाने की कोशिश भी हो सकती है.  एक अन्य महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है कि इस समय गुजरात में इशरत जहाँ के मामले को लेकर मोदी और भाजपा के अन्य नेता बुरी तरह से घिरे हुए हैं. बोधगया की घटना से उस मुद्दे से फ़िलहाल ध्यान दूसरी ओर मुड़ गया है और भाजपा को नितीश और केन्द्रीय सरकार को सुरक्षा में ढिलाई के नाम पर घेरने का मौका  भी मिल गया है.
अतः बोधगया की घटना के बारे में वर्तमान में भाजपा द्वारा साम्प्रदायिक राजनीती को भड़काने का जो प्रयास किया जा रहा है उस से सभी खास करके दलितों और नव बौद्धों को सावधान रहने की ज़रुरत है. उन्हें इस से उत्तेजित नहीं होना चाहिए. राष्ट्रीय  जांच एजंसी इस की गहराई से जांच कर रही है और उम्मीद की जानी चाहिए कि वह जल्दी ही असली दोषी व्यक्तियों को पकड़ने में कामयाब होगी. साथ ही केन्द्रीय सरकार को भी इस सम्बन्ध में स्पष्ट बात करनी चाहिए. बीच बीच में वह भी बिना किसी सबूत के इंडियन मुजाहिदीन आदि की लिप्तता की बात करने लगती है जिस से भाजपा और हिन्दुत्ववादी  मीडिया के दुष्प्रचार को बल मिलता है. हमें इस मामले में धैर्यपूर्वक जांच के परिणाम की प्रतीक्षा करनी चाहिए और अगले चुनाव में साम्प्रदायिकता की राजनीती को नहीं पनपने देना चाहिए.      

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