Thursday, 20 February 2014

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) आइपीएफ(आर) का संविधान और नीति

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल)
आइपीएफ(आर) का
संविधान और नीति
  भूमिका
राष्ट्रीय अभियान समिति (एन0सी0सी0) की बैठक 22-23 नवम्बर 2012 को हुई थी। इसमें ताजा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक हालात का जायजा लेते हुए राजनीतिक परिस्थितियों की समीक्षा की गयी। समिति में यह सहमति बनी कि राजनीतिक चुनौती का मुकाबला राजनीतिक ढंग से किया जाना चाहिए और इस उद्देश्य के लिए एक भिन्न राजनीतिक संगठन की स्थापना होनी चाहिए। बैठक में निम्नलिखित फैसला लिया गया:                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                
‘‘एन0सी0सी0 अपने मौजूदा स्वरूप में बनी रहेगी और अपने सभी सदस्यों के साथ काम करती रहेगी। एनसीसी से इतर एक नयी राजनीतिक संरचना स्वरूप ग्रहण करेगी। यह उन तमाम इकाइयों/संरचनाओं को एक साझी पहचान और राजनीतिक जमीन देगी जो अलग-अलग राजनीतिक संरचना के रूप में काम कर रहे हैं जैसे कि जन संघर्ष मोर्चा, क्रांतिकारी समता पार्टी, जन संग्राम परिषद जो एनसीसी से जुड़े हंै और इसके घटक हैं। एनसीसी के सदस्यों को नए राजनीतिक संगठन में शामिल होने के बारे में स्वयं फैसला करना होगा।‘‘
इस फैसले के बाद ‘‘आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल): आइपीएफ (आर)’’ नाम से राजनीतिक संगठन को चुनाव आयोग में पंजीकृत कराने और इसका संविधान बनाने के लिए कदम उठाए गए। अब यह चुनाव आयोग में पंजीकृत संगठन है।
बाद में 30 सितम्बर 2013 को सम्पन्न बैठक में मसौदा संविधान पर विचार हुआ। यह सर्वसम्मत से फैसला हुआ कि संविधान में सांगठनिक ढांचे, शक्तियों तथा कार्यप्रणाली के अतिरिक्त एक संक्षिप्त प्रस्तावना तथा चुनाव आयोग द्वारा वांछित उद्घोषणा होनी चाहिए। यह भी तय किया गया कि एक अलग ‘नीति लक्ष्य’ का अनुच्छेद होना चाहिए जो संविधान का अभिन्न अंग होगा। मसौदे को विचार-विमर्श तथा सदस्यों एवं शुभचिंतकों के प्राप्त सुझावों के आधार पर तथा सभी सम्बंधित लोगों की सहमति से अंतिम रूप देते हुए बैठक में मौजूद आइपीएफ (आर) प्रतिनिधियों द्वारा स्वीकृत किया गया।
आइपीएफ (आर) के ‘‘संविधान तथा नीति लक्ष्य‘‘ को प्रस्तुत किया जा रहा है।
दिनांकः 21.11.2013

अखिलेन्द्र प्रताप सिंह
राष्ट्रीय संयोजक
आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल)

         आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) का संविधान
प्रस्तावना

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) - आइपीएफ (आर) एक जन राजनीतिक मंच है जो शोषण और हृदयहीनता से मुक्त एक मानवीय समाज के लिए समर्पित है। यह वर्तमान शोषणमूलक और अन्यायपूर्ण सामाजिक-आर्थिक ढांचे के अंत के लिए प्रतिबद्ध है। इसकी संकल्पना एक ऐसी सामाजिक एवं आर्थिक संरचना की स्थापना है जो जनआधारित तथा पर्यावरणपक्षीय है। यह समानता तथा एकजुटता के सिद्धांतों से प्रेरित है और इसका लक्ष्य सबके लिए गरिमामय जीवन की गारण्टी करना है।
       कारपोरेट पूंजी और सट्टेबाज वित्तीय पूंजी के अंतर्राष्ट्रीय गिरोह तथा भारतीय शासक वर्ग का हित एक हो गया है। वह इन वैश्विक ताकतों के साथ अधिकाधिक गहरे और वृहत्तर रिश्तों में आंख मूंदकर बंधता जा रहा है। हालांकि नवउदारवादी आर्थिक ढांचा स्वयं वैश्विक पूंजी के अपने केन्द्र मेें ही सबसे गहरे संकट का सामना कर रहा है।     
       आइपीएफ (आर) का मत है कि मौजूदा दौर ने, जिसमें इन विनाशकारी ताकतों ने गठजोड़ कायम कर लिया है, इस लक्ष्य को प्राप्त करना और भी जरूरी बना दिया है।
       व्यापक जनसमुदाय पर दो दशकों की नवउदारवादी नीतियों के विनाशकारी प्रभाव ने समाज में लम्बे समय से मौजूद दरिद्रता और असमानता को और भी तीखा कर दिया है। छोटे और सीमांत किसान, खेत मजदूर, दस्तकार, संगठित, असंगठित तथा अनौपचारिक क्षेत्र के मजदूर, महिला श्रमिक और कथित स्वरोजगार में लगे लोग इसके बदतरीन शिकार हुए हैं जबकि ऊपरी तबके के एक छोटे से हिस्से ने अभूतपूर्व पैमाने पर संपत्ति और आय अर्जित की है। नवउदारवादी नीतियों पर मुग्ध रहे मध्यवर्ग का अब इससे अधिकाधिक मोहभंग होता जा रहा है और जल्द ही परिस्थितियां उसे यह तय करने के लिए बाध्य कर देंगी कि वह शासक वर्ग या मेहनतकश तबके के पक्ष में खड़ा हो।
      जनता के समक्ष मौजूद चुनौतियों से ध्यान हटाने के लिए शासक वर्ग द्वारा आम जनता के बीच फूट और विभाजन पैदा करने यहां तक कि लड़ाने के योजनाबद्ध ढंग से प्रयास किए जा रहे हैं। इस सनकभरी परियोजना का ही एक पहलू महत्वपूर्ण पड़ोसी देशों के खिलाफ अंधराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद भड़काने की कोशिश है। उनकी यह कार्रवाई वैश्विक महाशक्ति, जो अंतर्राष्ट्रीय पूंजी का केन्द्र भी है, की रणनीतिक योजना से मेल खाती है। 
       साथ ही, कानून व्यवस्था के नाम पर लोकतांत्रिक असहमति तथा जनगोलबंदी के दायरे में जबर्दस्त कटौती की जा रही है। इससे भी बुरी बात यह कि ‘‘विकास‘‘ और ‘‘सुशासन‘‘ के अनालोचनात्मक और सतही नारों की आड़ में कारपोरेट पूंजी के प्रोत्साहन व समर्थन से तानाशाही की प्रवृत्तियां उभर रही हैं जो राज्य मशीनरी पर पूरी तौर पर कब्जा करने पर आमादा हैं।
       आइपीएफ (आर) का मानना है कि आज समय की मांग है कि एक रेडिकल और समावेशी राजनीति के लिए एक व्यापक लोकतांत्रिक मंच का निर्माण किया जाए। एक ऐसी राजनीति जो राज व समाज के जनतंत्रीकरण को गहरा करे, जो समानता, धर्मनिरपेक्षता (ैमबनसंतपेउ), एकजुटता के आधुनिक मूल्यों को सुदृढ़ करे तथा जो सबके लिए स्वतंत्रता और गरिमा की गारंटी करे। राजनीति जो सामाजिक असमानता तथा अन्याय के सदियों से चले आ रहे अभिशाप का अंत करे। राजनीति जो नवउदारवाद की चुनौती का मुंहतोड़ जवाब दे तथा शासक वर्ग के नापाक मंसूबे को शिकस्त दे। राजनीति जो भारत की उस संकल्पना की पुनः तलाश करेगी जिसे हमने उपनिवेशवादविरोधी दीर्घ संघर्ष से विरासत में हासिल किया है।
      एक शब्द में नियति के साथ अपने साक्षात्कार को हमें पुनर्जीवित करना है।      
      आइपीएफ (आर) इस कार्यभार के प्रति समर्पित है और इस लक्ष्य की दिशा में संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए सभी समान विचार वाले राजनैतिक संगठनों, समूहों, एक्टिविस्टों और व्यक्तियों के साथ हाथ मिलाने का इच्छुक है। 

संवैधानिक उद्घोषणा
     आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति तथा समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगा तथा भारत की प्रभुता, एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखेगा।
धाराएं

(1) नाम: राजनीतिक पार्टी का नाम है: आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल): आइपीएफ (आर)।
(2) झन्डा: आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के झंडे में लाल, पीले, हरे रंग की तीन समान क्षैतिज पट्टियां इसी क्रम में होंगी। झंडे का आकार 3: 2 की लम्बाई चैड़ाई के अनुपात के साथ आयाताकार होगा।
      (3) सदस्यता: कोई भी वयस्क भारतीय नागरिक जो आइपीएफ (आर) के संविधान को स्वीकार करता है तथा इसके नीति लक्ष्य, नीतियों एवं कार्यक्रम का अनुमोदन करता है, इसका सदस्य बन सकता है।    
       (4)घटक संगठन: 
     (अ) आइपीएफ (आर) के संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित लक्ष्य और प्रस्ताव तथा इसकी संवैधानिक उद्घोषणा और नीति लक्ष्यों से सहमत संगठन घटक संगठन के बतौर विभिन्न स्तरों पर सीधे आइपीएफ (आर) में शामिल हो सकते हैं। आइपीएफ (आर) उनकी स्वतंत्र कार्यवाही में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
     (ब)  घटक संगठन द्वारा नामित एक उच्चस्तरीय पदाधिकारी आइपीएफ (आर) की राष्ट्रीय तथा राज्यस्तरीय कमेटियों का पदेन सदस्य होगा।
     (स)  दूसरे समान विचार वाले संगठनों के सदस्य आइपीएफ (आर) के सदस्य बन सकते हैं बशर्ते वे धारा 3 में उल्लिखित मानक को पूरा करते हों तथा उनके मूल संगठन की सदस्यता उन्हेें ऐसी गतिविधियों में लिप्त होने को प्रेरित न करती हो जो आइपीएफ (आर) के उद्देश्य और लक्ष्य के साथ संगत न हो अथवा उसकी दिशा और नीतियों के प्रतिकूल हो। 
(5) कार्यप्रणाली और कार्यक्षेत्र:  अपने विकास और निर्माण प्रक्रिया, ढांचे और दर्शन के मद्देनजर आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) जहां तक सम्भव होगा, सर्वसम्मति से काम करेगा तथा आपसी विचार-विमर्श के आधार पर फैसले लेगा। जहां सर्वानुमति न बन सके वहां फैसला उपस्थित तथा वोट डालने वाले सदस्यों के बहुमत के आधार पर लिया जाएगा। यदि संविधान की किसी धारा में बहुमत सुस्पष्ट ढंग से परिभाषित नहीं है तो वहां बहुमत का अर्थ सामान्य बहुमत माना जाएगा।
आइपीएफ (आर) का कार्यक्षेत्र पूरा भारत होगा और यह राष्ट्रीय, राज्य, जिला, ब्लाक, शहर और स्थानीय स्तर पर अपना सांगठनिक ढांचा खड़ा करेगा।
(6) सांगठनिक ढांचा:
आइपीएफ (आर) के सांगठनिक ढांचे में ग्राम/वार्ड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कुल पांच स्तर होंगे।
अ - ग्राम/वार्ड फ्रंट कमेटी
ब - (1) ब्लाक/शहर फ्रंट कमेटी
  - (2) ब्लाक/शहर वर्किंग कमेटी
स -(1) जिला फ्रंट कमेटी
   - (2) जिला वर्किंग कमेटी
द - (1) प्रदेश फ्रंट कमेटी
   - (2) प्रदेश वर्किंग कमेटी
व  - (1) आल इण्डिया फ्रंट कमेटी
   - (2) केन्द्रीय वर्किंग कमेटी
   आल इण्डिया फ्रंट कमेटी राष्ट्रीय मुद्दों पर आइपीएफ (आर) की सामान्य नीतियों को तय करेगी तथा राष्ट्रीय पहल और सांगठनिक अभियानों की दिशा निर्धारित करेगी। केन्द्रीय वर्किंग कमेटी विशिष्ट राष्ट्रीय मुद्दों पर आइपीएफ (आर) की समझ व रुख को सूत्रबद्ध करेगी और इसकी नीतियों तथा कार्यक्रमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होगी।
राष्ट्रीय स्तर की कमेटियों द्वारा तय नीतियों, कार्यक्रमों और पहलकदमियों के ढांचे में प्रदेश फ्रंट कमेटी तथा प्रदेश वर्किंग कमेटी अपने राज्य में वैसी ही भूमिका निभाएगी।
जिला/ब्लाक/शहर फ्रंट व वर्किंग तथा ग्राम/वार्ड फ्रंट कमेटियां न केवल विभिन्न राष्ट्रीय तथा राज्यस्तरीय कार्यक्रमों एवं पहलकदमियों को अपने इलाके में लागू करेंगी वरन इससे भी महत्वपूर्ण यह कि वे सुसंगत जमीनी कामकाज के जीवंत केन्द्र के बतौर काम करेंगी ताकि आइपीएफ (आर) की नीतियों और उनके पीछे की भावना स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप व्यावहारिक शक्ल ग्रहण कर सके।
   राष्ट्रीय स्तर को छोड़कर अन्य स्तरों पर उच्चतर कमेटियों की सहमति से तदर्थ कमेटियां बनायी जा  सकती हैं, जहां पूर्ण कमेटी बनाने की शर्तें न पूरी होती हों। 
 (7) राष्ट्रीय अधिवेशन:  तीन वर्ष में एक बार फ्रंट का राष्ट्रीय अधिवेशन होगा। वर्किंग कमेटी जरूरत के अनुरूप इस अवधि में अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी की सहमति से परिवर्तन कर सकती है। सभी प्रदेश कमेटियों के सदस्य, जिला कमेटियों के अध्यक्ष व सचिव तथा ब्लाक कमेटियों के अध्यक्ष राष्ट्रीय अधिवेशन के प्रतिनिधि होंगे। अध्यक्ष, केन्द्रीय वर्किंग कमेटी की सलाह से पदेन प्रतिनिधियों से इतर राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए प्रतिनिधियों को मनोनीत कर सकता है। इन मनोनीत प्रतिनिधियों की संख्या पदेन प्रतिनिधियो के 5 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। राष्ट्रीय अधिवेशन अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी का चुनाव करेगा।
(8) केन्द्रीय वर्किंग कमेटी (ब्ण्ॅण्ब्ण्): केन्द्रीय वर्किंग कमेटी (ब्ण्ॅण्ब्ण्) का चुनाव अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी करेगी।
(9) राष्ट्रीय अध्यक्ष: राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी द्वारा किया जाएगा। अध्यक्ष राष्ट्रीय बैठकों की अध्यक्षता करेगा। राष्ट्रीय राजनीतिक कार्यों के संचालन के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय संयोजक और सहसंयोजक को आवश्यकतानुसार मनोनीत कर सकता है। राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्रीय संयोजक और सहसंयोजक केन्द्रीय वर्किंग कमेटी के पदेन सदस्य होंगे। राष्ट्रीय अध्यक्ष केन्द्रीय वर्किंग कमेटी के कुछ सदस्य मनोनीत कर सकता हैै। इन मनोनीत सदस्यों की संख्या निर्वाचित केन्द्रीय वर्किंग कमेटी सदस्यों की संख्या के 10 प्रतिशत से किसी भी हाल में अधिक नहीं होगी।
(10) उपाध्यक्ष: केन्द्रीय वर्किंग कमेटी उपाध्यक्षों का चुनाव करेगी। अध्यक्ष उपाध्यक्षों के बीच से वरिष्ठ उपाध्यक्ष को नामित करेगा। अध्यक्ष की अनुपस्थिति में वरिष्ठ उपाध्यक्ष राष्ट्रीय स्तर की बैठकों की अध्यक्षता करेगा।
(11) महासचिव एवं सचिव: महासचिवों एवं सचिवों का चयन केन्द्रीय वर्किंग कमेटी की बैठक में होगा। केन्द्रीय वर्किंग कमेटी महासचिवों के बीच से सांगठनिक महासचिव का चुनाव करेगी। सांगठनिक महासचिव राष्ट्रीय स्तर की बैठकों को बुलायेगा व संचालित करेगा, दस्तावेज तैयार करेगा और बैठकों का जरूरी रेकार्ड रखेगा। सचिव महासचिवों के काम में मदद करेंगे। सांगठनिक महासचिव आइपीएफ (आर) के नाम पर कानूनी तथा वित्तीय मामलों को देखने के लिए केन्द्रीय वर्किंग कमेटी द्वारा अधिकृत किया जा सकता है। 
(12) कार्यालय सचिव का चयन अध्यक्ष करेगा जो कार्यालय सम्बंधी कार्य सम्पादित करेगा। वह आइपीएफ(आर) की ओर से कानूनी जरूरतों तथा दायित्वों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होगा।
       (13) कोषाध्यक्ष: केन्द्रीय वर्किंग कमेटी के सदस्यों के बीच से अध्यक्ष कोषाध्यक्ष को मनोनीत करेगा। वह पार्टी के आय-व्यय का हिसाब रखेगा व आर्थिक मामलों की देखभाल करेगा। वह सूचीबद्ध बैंक में आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के नाम पर खाता खोेलेगा। खाते का संचालन कोषाध्यक्ष तथा अध्यक्ष द्वारा नामित एक अन्य उच्च पदाधिकारी, के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा। कोषाध्यक्ष आइपीएफ (आर) के वित्तीय कार्यकलाप के संदर्भ में देश के कानून के हिसाब से जरूरी दायित्वों को पूरा करने के लिए जिम्मेदार होगा मसलन आडिट, आयकर, सेवाकर आदि।
       (14) राष्ट्रीय से इतर कमेटियों के पदाधिकारी: राष्ट्रीय से इतर कमेटियां अपने पदाधिकारियों का चुनाव अपनी द्विवार्षिक बैठक में करेंगी। ग्राम/वार्ड कमेटियां अपनी वार्षिक बैठक में पदाधिकारी चुनेंगी।
(15)  सलाहकार परिषद: अध्यक्ष राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर आवश्यकतानुसार सलाहकार परिषद का गठन कर सकते हैं। सलाहकार परिषद के सदस्य तथा पदाधिकारी आइपीएफ (आर) के सदस्य भी हो सकते हैं। सलाहकार परिषद आइपीएफ (आर) की नीतियों, कार्यक्रमों तथा गतिविधियों को सूत्रबद्ध करने में महत्वपूर्ण परामर्शदायी भूमिका निभाएगी। सलाहकार परिषद के सदस्यों को अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी और प्रांतीय फ्रंट कमेटी की बैठकों में अध्यक्ष आमंत्रित कर सकते हैं। सलाहकार परिषद के ऐसे सदस्य जो आइपीएफ (आर) के सदस्य नहीं हैं, वे मतदान में हिस्सा नहीं लेंगे।
(16) संसदीय बोर्ड: अखिल भारतीय फ्रंट कमेटी और प्रान्तीय फ्रंट कमेटी के सदस्यों के बीच से राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रांतीय अध्यक्ष क्रमशः राष्ट्रीय व प्रांतीय संसदीय बोर्डों की नियुक्ति करेंगे। प्रत्याशियों तथा अन्य चुनाव सम्बन्धी महत्वपूर्ण विषयों पर प्रान्तीय संसदीय बोर्डों के फैसलों पर केन्द्रीय वर्किंग कमेटी का अनुमोदन वांछित होगा। घटक संगठनों के सदस्य संसदीय बोर्ड के लिए उच्चस्तरीय पदाधिकारी को नामित करेंगे।
       (17) प्रान्तीय/जिला/ब्लाक/शहर व प्राथमिक स्तरीय सम्मेलन: ये सम्मेलन द्विवार्षिक होंगे। सम्बंधित प्रान्तीय/जिला/ब्लाक/शहर स्तरीय वर्किंग कमेटियां समय और स्थान तय करेंगी। ग्राम/वार्ड स्तरीय कमेटियों की सालाना बैठक होगी, सम्बंधित अध्यक्ष समय व स्थान तय करेंगे। इन सम्मेलनों के प्रतिनिधियों का चुनाव/चयन अथवा मनोनयन राष्ट्रीय स्तर की कमेटियों की तरह ही होगा, किन्तु चयन का दायरा सम्बंधित कमेटी के कार्यक्षेत्र तक सीमित होगा। ये सम्मेलन सम्बंधित स्तर की फ्रंट कमेटियों का चुनाव करेंगे। राज्य स्तर से नीचे महासचिव का पद नहीं होगा। इन सम्मेलनों को सम्बंधित उच्चतर कमेटी द्वारा अनुमोदन लेना अनिवार्य होगा।
(18) ग्राम/वार्ड फ्रंट कमेटी: यह फ्रंट की बुनियादी इकाई है, जिसमें ग्राम/वार्ड स्तर के सभी आइपीएफ (आर) सदस्य शामिल होंगे। यह अपने अध्यक्ष व अन्य पदाधिकारियोें का चुनाव करेगी। इसका कार्यकाल एक वर्ष का होगा।
(19) विशेष प्रावधान: सभी कमेटियों तथा पदाधिकारियों में महिला, दलित, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, अन्य पिछड़ा वर्ग, सर्वाधिक एवं अति पिछड़े वर्ग से निश्चित संख्या में प्रतिनिधि अवश्य होंगे। इस हेतु सम्बंधित कमेटियों के अध्यक्ष के पास मनोनयन का अधिकार होगा।
       (20) संविधान संशोधन: संविधान में संशोधन का प्रस्ताव केन्द्रीय वर्किंग कमेटी में पेश किया जाएगा जो इस पर सावधानीपूर्वक विचार करेगी और उपस्थित तथा वोट डालने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के आधार पर इसका अनुमोदन करेगी और इसकी आल इण्डिया फ्रंट कमेटी से संस्तुति करेगी। आल इण्डिया फ्रंट कमेटी अन्य बदलावों के साथ जिन्हें वह उचित समझती हो, अपने उपस्थित तथा वोट डालने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के आधार पर इसका अनुमोदन कर सकती है। संशोधन तत्काल बाद प्रभावी हो जाएगा।
       (21) विशेष सत्र: अध्यक्ष किसी जरूरी मुद्दे/मुद्दों पर विचार के लिए केन्द्रीय वर्किंग कमेटी का विशेष सत्र बुला सकता है। केन्द्रीय वर्किंग कमेटी किसी महत्वपूर्ण एवं जरूरी मुद्दे/मुद्दों पर विचार के लिए आल इण्डिया फ्रंट कमेटी का विशेष सत्र आयोजित कर सकती है। 
       (22) अनुशासनात्मक कार्रवाई: फ्रंट के हितों के विरुद्ध कार्य करने वाले सदस्यों के विरुद्ध सम्बंधित फ्रंट कमेटी अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी, जिसके तहत उसे चेतावनी देना, निलम्बित करना व निष्कासित करना शामिल है। सम्बंधित सदस्य के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई करने से पहले उसे समुचित नोटिस तथा अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाएगा और अनुशासनात्मक कार्रवाई के हर फैसले का उच्चतर कमेटी द्वारा अनुमोदन कराना अनिवार्य है। समाज विरोधी गतिविधियों में लगे किसी भी सदस्य को निष्कासित करने का अधिकार सम्बंधित फ्रंट कमेटी के अध्यक्ष के पास रहेगा, पर अपने इस निर्णय का अनुमोदन उसे सम्बंधित फ्रंट कमेटी से कराना होगा। आपात स्थितियों में राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी कमेटी को भंग कर सकता है या किसी सदस्य व पदाधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकता है, पर उसे इस निर्णय का अनुमोदन केन्द्रीय वर्किंग कमेटी से यथाशीघ्र कराना होगा। किसी कमेटी के अनुशासनात्मक कार्रवाई के विरुद्ध उच्चतर कमेटी के समक्ष अपील करने का अधिकार सदस्य को होगा और यदि यह फैसला सर्वोच्च कमेटी अर्थात आल इण्डिया फ्रंट कमेटी द्वारा लिया गया है तो सम्बंधित सदस्य को उसके पास पुनर्समीक्षा, पुनर्विचार के लिए भेजने का अधिकार होगा। मामले पर पुनर्विचार के बाद अपीलीय पुनर्समीक्षा निकाय द्वारा दिया गया निर्णय अन्तिम और मान्य होगा।
        (23) वित्तीय प्रावधान: फ्रंट प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के 60 दिनों के भीतर आयोग को वार्षिक वित्तीय विवरण प्रस्तुत करेगा। पार्टी का लेखा परीक्षण (ब्।ळ) में मउचंदमससमक आडिटर से कराया जायेगा। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) का फंड राजनीतिक कार्यों के लिए ही इस्तेमाल किया जायेगा। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) अपने वित्तीय लेखों के रख-रखाव में आयोग द्वारा समय-समय पर जारी अनुदेशों का पालन करेगा।
        (23) (क) आइपीएफ (आर) अपने संसाधन सदस्यता शुल्क व सदस्यों, शुभचिंतकों, समान विचार वाले व्यक्तियों तथा संगठनों द्वारा दिए गए अनुदान से विकसित करेगा। यह किसी भी विदेशी स्रोत से कोई धन स्वीकार नहीं करेगा। इस तरह एकत्र धन आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (रेडिकल) के नाम पर सूचीबद्ध बैंक में खोले गए खाते में रखा जाएगा।
         (24) विलय व विघटन: किसी दूसरे राजनैतिक संगठन में विलय व विघटन का निर्णय केन्द्रीय वर्किंग कमेटी की बैठक में भाग ले रहे तथा मतदान करने वाले सदस्यों के 2/3 बहुमत के आधार पर होगा। यह फैसला आल इण्डिया फ्रंट कमेटी की बैठक में उपस्थित तथा मतदान में हिस्सा लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से अनुमोदन के बाद ही अंतिम रूप ग्रहण करेगा।
        (25) विविध:
       अ - विभिन्न निकायों की बैठक बुलाए जाने पर सभी सम्बंधित सदस्यों को बैठक की समुचित सूचना दी जाएगी।
        ब - सदस्यता शुल्क का फैसला केन्द्रीय वर्किंग कमेटी द्वारा किया जाएगा।
        स - जहां संविधान में कोई विशिष्ट प्रावधान उपलब्ध न हो और तत्काल फैसला लेना जरूरी हो, केन्द्रीय वर्किंग कमेटी अपने उपस्थित तथा मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत के अनुमोदन के साथ आवश्यकतानुसार समुचित फैसला लेने के लिए अधिकृत होगी। इस फैसले का आल इण्डिया फ्रंट कमेटी की बैठक में उपस्थित तथा मतदान में हिस्सा लेने वाले सदस्यों के सामान्य बहुमत से अनुमोदन आवश्यक होगा। ऐसे फैसले को संविधान की प्रस्तावना, संवैधानिक उद्घोषणा तथा वर्तमान प्रावधानों एवं संविधान की अन्तर्निहित भावना के साथ सुसंगत होना चाहिए।
   





नीति लक्ष्य
नीति लक्ष्य की प्राथमिकता सूची
ऽ    जनवादी अधिकारों और स्वतंत्रता पर हमले को शिकस्त देना और सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून समेत सभी विशेष कानूनों का, जो संविधान प्रदत्त लोकतांत्रिक दायरे को सीमित करते हैं और राज्य को बल प्रयोग के एकाधिकार का दुरुपयोग करने में सक्षम बनाते हैं, खत्म करने के लिए संघर्ष।
ऽ    कृषि पर कार्पोरेट कब्जे को विफल करना। भूमि, जल, बीज, जंगल, खनिजों के निगमीकरण ब्वतचवतंजपेंजपवद का प्रतिरोध करना, सहकारिता को प्रोत्साहन देना तथा इन मूलभूत संसाधनों के मालिकाने तथा कामकाज के समाजीकरण की ओर बढ़ना।
ऽ    सामुदायिक स्थलों, विशेषकर वन तथा आदिवासी आबादी व जमीन पर कारपोरेट अतिक्रमण व कब्जे को शिकस्त देना, आदिवासी सामुदायिक अधिकारों तथा आजीविका की हिफाजत करना, वन संसाधनों के सामुदायिक मालिकाने तथा प्रबंधन की रक्षा करना।
ऽ    उन नीतियों को शिकस्त देना जो खनिज संसाधनों की कारपोरेट लूट को मदद पहुंचाती है तथा आदिवासियों के जीवन, आजीविका तथा रिहायशी आबादी का विनाश करती हंै।
ऽ    विश्व व्यापार संगठन (वल्र्ड टेªड आर्गनाइजेशन) के अंतर्गत ‘‘कृषि विषयक समझौता‘‘ (एग्रीमेंट आन एग्रीकल्चर) को शिकस्त देना, कृषि उत्पादन और व्यापार में दक्षिण देशों के सहयोग के माध्यम से किसान केन्द्रित विकल्प के लिए संघर्ष।
ऽ    विकास की वैकल्पिक नीतियों के लिए संघर्ष जो न केवल मुख्यधारा की ‘‘भूमण्डलीकृत विकास’’ की रणनीति को नकारती हैं बल्कि आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देती हंै, शैक्षिणिक व सामाजिक रूप से उन्नत वर्गों की तुलना में पिछड़े वर्गों, व्यक्तियों व विभिन्न अंचलों की समता और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करती है। इस विकास नीति के अमल से औद्योगीकरण की पद्धति और दिशा बदलेगी, इसका मतलब यह होगा कि ‘‘वैश्विक दृष्टि से प्रतिस्पर्धी” उद्योगों की मोहग्रस्तता से मुक्ति मिलेगी और रोजगारपरक तकनीकी पर आधारित व जनोपयोगी दिशा वाले उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।
ऽ    स्वास्थ्य एवं शिक्षा के व्यापारीकरण की प्रक्रिया का अन्त करना। भोजन व अन्य जरूरी चीजों तक जनता की सीमित पहुंच वाली तथा भेदभावपूर्ण महंगी मौजूदा व्यवस्था की जगह स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और अन्य जरूरी चीजों के प्रावधान के लिए सर्वांगीण समतापरक, सुलभ सार्वजनिक वितरण प्रणाली की स्थापना।
ऽ    एक राष्ट्रीय वेतन और आय नीति जो विभिन्न क्षेत्रों व वर्गों के बीच असमानता में भारी कमी करे।
ऽ    रोजगार का अधिकार तथा शालीन जीवन स्तर के लिए कानूनी उपायों तथा उपयुक्त आर्थिक नीतियों की पहल लेना।
ऽ    सामाजिक रूप से वंचित वर्गों व समुदायों के लिए निजी और सरकारी क्षेत्रों में शिक्षा व रोजगार में विशेष अवसरों की कानूनी गारंटी।
ऽ    भारी पैमाने पर व्याप्त धनबल व बाहुबल के खात्में के लिए, आनुपतिक प्रतिनिधित्व के लिए, जनतंत्रीकरण की प्रक्रिया को स्वच्छ और गहरा करने के लिए एक मुकम्मल चुनाव सुधार। 
ऽ    प्रशासनिक ढांचे पर जन-नियंत्रण तथा निगरानी, खासतौर पर आम लोगों के रोजमर्रे के कामों के निस्तारण के लिए।
ऽ    उपनिवेशवाद तथा साम्राज्यवाद विरोधी लम्बे संघर्ष से हासिल भारत की मूल संकल्पना को ही चुनौती देने वाली साम्प्रदायिक फासीवादी ताकतों के खिलाफ लड़ना तथा शिकस्त देना।
ऽ    धर्म जिसका स्वाभाविक क्षेत्र (डोमेन) निजी क्षेत्र है उसमें उसे बनाए रखना और उसका राज्य तथा राजनीति से पूर्ण अलगाव करना।
ऽ    ऐतिहासिक तौर पर उभरी अपनी सांस्कृतिक तथा राजनीतिक पहचान सुनिश्चित करने के लिए उपराष्ट्रीयताओं तथा सीमावर्ती राज्यों के संघर्षों का समर्थन एवं भारतीय राज्य के अधीन पूर्णतर स्वायत्ता की आकांक्षा का समर्थन।
ऽ    भारतीय वित्तीय व्यवस्था की स्वायत्तता को मजबूत करना तथा इसे वैश्विक पंूजी की दुर्बलता और लालच से बचाना, आंचलिक वित्तीय सहयोग जैसे क्षेत्रीय मौद्रिक संघ के लिए काम करना।
ऽ    अमरीकी रणनीतिक संश्रय से निर्णायक अलगाव और अमरीकी सैन्यवाद का विरोध, विशेषकर पश्चिम एशिया में अमरीकी-इजराइली सैन्यवाद और अमेरीका-इजराइल प्रायोजित इस्लामोफोबिया का पर्दाफाश करना और उसे शिकस्त देना।
ऽ    महत्वपूर्ण पड़ोसी देशों विशेषकर चीन तथा पाकिस्तान के प्रति अंधराष्ट्रवादी तथा युद्धोन्मादी नीतियों व पैंतरेबाजी के खिलाफ लड़ना और इसे शिकस्त देना एवं भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया व सम्पूर्ण विश्व में शांति और सहयोग के लिए प्रयास करना।
ऽ    एक नवीन ऊर्जा नीति जो हमारे रणनीतिक, कृषि व औद्योगिक नीतियों की नयी दिशा के अनुरूप हो। तेल, गैस से समृद्ध पश्चिम एशिया व मध्य एशिया के देशों के साथ चुनिंदा रणनीतिक सहयोग, शंघाई सहयोग संगठन के साथ घनिष्ठ सहयोग।

कार्यालयः       18 बी. पी., 40 फीट रोड,
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Tuesday, 18 February 2014

All India Peoples Front demands Judicial inquiry into false implication of innocent Muslims in terror cases by police.



All India Peoples Front demands Judicial inquiry into false implication of innocent Muslims in terror cases by police. Reproduced below is the memorandum submitted to the Union Home Minister on 14/02/2014 at New Delhi during 10 days Fast and Dharna at Jantar Mantar, New Delhi from 7th Feb. to 16th February.
*****************************************************
To,
The Home Minister,
Ministry of Home Affairs,
Govt. Of India,
New Delhi.
Sir,
Reproduced below is the resolution passed on 12.02.2014 during All India People Front (R) National Convenor, Akhlendar Partap Singh’s 10 day’s Fast and Dharna from 7th February to 16th February, 2014 at Jantar Mantar, New Delhi. Attached herewith are also two documents titled “The Conspiracy after the Terror” and “The People of the Abyss” downloaded from www.gulail.com. which contain evidence of innocence of the Muslims falsely implicated by police in terror cases. A copy of the Criminal Appeal filed in Bombay High Court by Ashish Khetan, a renowned Journalist is also enclosed herewith for information and necessary action. A similar Criminal Appeal is also proposed to be filed in Allahabd High Court.
It is, therefore, requested that a Judicial Commission may be constituted to enquire into the false implication of innocent Muslims in terror cases of U.P. and Maharashtra to ensure justice and fair play.
S.R.Darapuri
Ex- I.G.Police & National Spokesman,
All India Peoples Front (R)
******
Resolution regarding constituting a Judicial Commission to enquire into false implication of innocent Muslims in Terror Cases of U.P. and Maharashtra passed on 12.02.2014 during All India People Front (R) (AIPF) National Convenor, Akhlendar Partap Singh’s 10 days Fast and Dharna at Jantar Mantar, New Delhi from 7th February to 16th February, 2014
1. Different State police services have arrested people, mostly belonging to Muslim families, some of them abjectly poor, for having participated in the act and conspiracy for conducting bomb blasts at various locations in Maharashtra and Uttar Pradesh. It is now clear from documents that are available on record with these investigative agencies that they are aware, as of this date, that all these persons are innocent, or at the very least, that there is competing evidence in the form of confessions and parallel investigations that somebody else committed these offences. The same set of confessions/fresh evidence also reveals that the Gujarat police had deliberately expanded the ambit of the 2008 Ahmadabad Blasts Conspiracy to implicate around 50 Muslim youth who had nothing to do with the blasts.
2. The most obvious and well known example of conflicting evidence in terror investigations is the 2006 Malegaon mosque blasts. Explosives were shown to be recovered from some persons, and the ATS said that these were used in Malegaon and the Mumbai train blasts. The ATS even had an approver in the Malegaon case. It has now been found by the NIA that it was a Hindutva group behind Malegaon blasts for which around a dozen poor Muslims picked up had spent many years in jail. The Maharashtra ATS had managed to procure ‘confessions’ from these men and had also managed to put up approvers and accomplices before the Court. There is no other conclusion to be drawn from this apart from the fact that it was a manufactured case.
3. The research conducted by Ashish Khetan, a noted journalist and released publicly has shown that at least in three cases prosecuted by Maharashtra police, namely the Mumbai local train blasts on 11.07.2006, the 2006 Malegaon Blasts and the Pune German Bakery case of February 2010, Maharashtra police has deliberately created bogus evidence, extracted false confessions by subjecting the accused to most inhuman forms of torture, planted explosives in the houses of the accused and thus implicated innocent Muslim youth.
4.. It is pertinent to mention here that a man named Sadiq Sheikh, a member of the Indian Mujahideen, was arrested in September, 2008. Agencies like Mumbai Crime Branch have themselves claimed (both in court and in public) that Sadiq’s interrogation led to the arrest of over 70 terror suspects by UP ATS, Hyderabad CIC, Ahmedabad Crime Branch, Rajasthan ATS and Delhi Special Cell. Some of the content of these reports, and ‘confessions’ etc is part of the charge-sheets filed by different agencies. But curiously Sadiq and his accomplices were charge-sheeted in only those blast cases in which the investigation was still not completed. Hyderabad Blasts (Gokul Chat and Lumbini Park) of 2007, Ahmedabad and Surat (aborted) Blasts of 2008, Delhi Blasts of 2008 were some of the cases in which the alleged Indian Mujahideen members including Sadiq Shaikh were charges-sheeted.
5. Similar evidence of false arrests and false prosecutions is available on record about seven terror cases in Uttar Pradesh. The internal records that are now available suggest that an entirely different set of accused than those who had been originally arrested and charge sheeted in these seven cases are believed by other terror investigation agencies to be involved in these cases. Investigation agencies like the Maharashtra ATS, Gujarat Police and UP ATS have a version of the UP terror cases, which are completely at variance with what is lead before the courts in UP. A set of terror suspects were arrested much after the arrest of the original accused. What is extremely significant is that in the interrogation reports prepared by different agencies (including UP ATS) these terror suspects had neither suggested nor claimed of having any even remote linkage or connection with those accused who had been originally arrested for these blasts by the different arms of the UP Police.Internal records also indicate that interrogation reports of several terror suspects recorded by different anti-terror agencies of the country narrate an entirely contradictory story of at least seven terror cases related to the state of Uttar Pradesh than that told by the UP police to the courts currently trying these cases. Shockingly, some of these interrogation reports have been prepared by the agencies like Anti-terrorist Squad of the Uttar Pradesh police itself—the very same police that is behind the arrests and investigations of some of these cases.
6. In such a situation, it is clear that wherever investigations are looked into one finds many stories of false investigations and arrests. Some of these false prosecutions and arrests may have been actuated by malice and some simply to avoid loss of face in light of the contradictory evidence which shows the original prosecution story to be false. In either case, it is clear that in these, and possibly in other cases, those false cases have been foisted on innocent people because they were vulnerable and because the police did not show results. In such a situation, there is an urgent need for impartial review from an impartial agency to make sure that terror cases are continued only when they are actually made out.
7. No quarter should be given to those who indulge in terror crimes. What happens when the innocent are prosecuted is that the guilty escape and get emboldened. The IRs (Interrogation Reports) collected by Ashish Khetan suggest that crime after crime was committed by a set of entirely different persons while the police and security agencies wantonly pursued false cases. Had serious leads been followed to start with, many crimes may have been prevented.
8. The new evidence available with the NIA and other Central Agencies show that in many major terror cases the State Police in order to show quick results have implicated innocent Muslims on the basis of fabricated evidence. The new body of evidence which completely contradicts investigations done by Maharashtra ATS, UP Police and Gujarat Police needs to be judiciously and independently examined and the existing trials and cases like 7/11 Mumbai Train Blasts, Pune German Bakery Blast, UP Court Blasts, etc. need to be reviewed. There is an urgent need to form a judicial commission or a high-level inquiry committee for the purpose. While innocent accused need to be released and rehabilitated, those culpable for such heinous crimes should be tried and given exemplary punishment.

Wednesday, 29 January 2014

Akhlendar Partap Singh's 10 days fast at New Delhi



*For Bringing  Corporate Houses under Lokpal
*For checking price-rise
*For Rule of Law
*For Safety and Security, Justice and Democracy


Delhi March
10-day long dharna and fast
From February 7, 2014 at Jantar- Mantar
Friends,
Once again, in the country, peoples faith in transformative politics is on the rise. People have started identifying the forces responsible for their misery. In coming days people will be still more conscious about such forces. Lokpal Act was passed. Who does not know that corporate houses i.e.the big business has corrupted the entire political system, acquiring contracts, tenders in government projects as well as PPP projects, they have looted the natural resources-the public property at throwaway prices. They have ruined the country for their profit. But corporate is not brought under Lokpal. Frequently, petrol-diesel- gas prices are being hiked to benefit oil companies as well as to meet government extravaganza. Even in food items and vegetables, speculation is going on resulting in rising prices but it is not being prohibited. Prime Minister himself admitted that he could not check inflation but he is not telling as to why he could not ban speculation which is the reason behind rising prices. PM admits his failure in providing jobs. Gentleman, when you were busy promoting jobless growth oriented policies handing over our agriculture and industries to foreign companies as well as domestic corporates, how could it produce jobs? When the country got freedom, Gandhiji was a devastated man because of partition. Right to work was not incorporated in Fundamental Rights. It was only after Gandhiji`s pressure that it was included in the Directive Principles . When VP Singh came to power, President and Prime minister both declared that right to work will be incorporated in Fundamental Rights but it is not done even till date. Your policies, Mr Prime Minister, whose adherents range from Modi to Mulayam, have ruined not only youth but our vast peasantry as well as those engaged in cottage industries. Lakhs of peasants and the poor have committed suicides and no statistics is actually available for suicides taking place everyday. One can imagine the situation when there is not even procurement from the peasants or payment for what has been procured, let alone providing them remunerative prices. The law and order situation is so bad that women are subjected to humiliation and oppression despite all protests. The oppressed sections of society are victims of all-round attack. Even those who are forced out of their homes by rioters and have taken shelters in graveyards, their shelter-homes are being bulldozed.
Friends,
As long as there is corporate rule in the name of democracy, misery, ruin and riots will continue in the country. So, decisive battle for peoples rule against corporate rule is need of the hour. There will be dharna and fast at Jantar-Mantar from February 7 for vital issues like incorporating right to work in Fundamental Rights, for passage of anti-communal violence bill in the Parliament, for bringing corporate under Lokpal and steeper taxes on them, for formulating national wage policy, for increasing public expenditure on peoples welfare including education-health-agriculture, for checking price-rise, for safety-security, justice, democracy as well as establishing rule of law. We appeal to you to participate in this programme and contribute in all possible manners.

Agenda and Demand Charter

Regarding Employment
1-Right to work must be included in Fundamental Rights of the Constitution instead of Directive Principles. Unemployment allowance must be provided to all those who are unemployed.
2- Wealth tax from big business i.e.corporate houses should be made much steeper and more comprehensive in scope by removing exemptions and loophloes. Estate duty/ Inheritance tax should be introduced .
3-National wage policy must be formulated to reduce drastically the inter-regional and inter-class disparity.
4- Daily-wage and contract workers engaged in jobs of permanent nature must be regularized.
5- All scheme workers including Anganbadi, Asha, Shiksha Mitras must be incorporated as government employees.
6-Minimum wages must be fixed at Rs. 10000 per month.
7-All vacancies in public sector, government services and all levels of educational institutions must be filled.
8-Under MNREGA, 100-days work must be ensured, failing which unemployment allowance must be provided. Unpaid wages must be repaid promptly. MNREGA-like schemes must be implemented in cities also.
In the interest of peasantry
1- Stop direct and indirect initiatives for corporatisation of agriculture and give financial and administrative support to cooperative farming instead.
2- Agricultural Costs and Prices Commission must be accorded Constitutional status .
 3- Entrust closed / closing down private sector sugar mills  to cooperatives of sugarcane farmers with full financial support from the state government.
4-Acquisition of agricultural, fertile land must stop. Land acquisition and land use policy favouring peasants and landless workers should be formulated.
5-Forest Rights Act must be implemented.
6-Fertilizer, seed, diesel, electricity at cheaper rates must be ensured for the peasants
7-Contract farming and use of genetic seeds must stop.
Against Corruption and Price-rise
1-Government contracts and tenders as well as PPP projects involving corporate houses must be brought under Lokpal.
2-In order to check price-rise, stringent action should be taken against speculation, black-marketing and hoarding. Also the futures trading must be banned.
3- Control the role of the cartels of middlemen in supply chains of basic commodities and strengthhen and expand public distribution system so as to reign in inflation
4-Loot of natural resources and illegal mining must stop immediately.CBI inquiry must be ordered into illegal mining in UP.
For Industry and Workers
1-Power tariff hike must stop. Privatisation of power sector must stop and public sector units must function with optimum efficiency. CBI inquiry must be ordered into power sector corruption.
2-Loan waiver should be declared for weavers and they should be provided all BPL category facilities. Free power should be ensured for small and cottage industries including weavers.
3-Social Security Act 2008 meant for unorganized workers including weavers, domestic workers maids etc. must be implemented.
Against Communalism
1-With necessary amendments, the anti-communal violence bill must be passed without further delay.
2- Trial of cases related with communal discords must be expedited through Fast Track Courts.
3-In order to check the victimization of civilians by police, military and para-military forces, anti-victimisation law should be inacted.
4-Police reforms should be implemented in order to give police operational freedom and making it accountable to the people.
5. Judicial probe should be ordered into communal riots during Akhilesh regime in UP including Muzaffarnagar riot and leaders, police and administrative officers responsible for them must be brought to book.
6. Special Courts should be constituted to look into the cases of innocent minority youth arrested in the name of terror and the innocents among them should be released at the earliest possible. Those who have been freed by courts must be rehabilitated and duly compensated.
7.-Minority Commission should be constituted in Uttar Pradesh.
For Social Justice
1-Separate quota for backward Muslims should be carved out of the OBC quota. Amending Article 341, dalit Muslims and dalit Christians should be included in Scheduled Caste (SC) category. Recommendations of Sachhar Committee and Ranganath Mishra Commission must be implemented.
2-Separate quota for Extremely Backward Castes should be carved out of the OBC quota.
3-All vacancies in government services under SC/St quota must be filled.
4- Introduce reservation in private sector in favour of SCs, STs, OBCs, Most Backward and Extremely backward classes
5-Kol like communities in UP should be accorded ST status.
For peoples Welfare
1-Public expenditure must be increased for peoples welfare including agriculture, employment, education and health.
2- Stop commercialization of health and education; introduce compulsory neighbourhood school system;  expand the network of public   health care
For Women
1-Pass the women reservation bill in Parliament.
2-Safety and security of the women must be guaranteed at every cost and the police should be made responsible for violence against women. FIRs must be promptly registered in cases of violence against women. Trial of sensitive cases like rape  and violence against women must be expedited through fast-track courts.
3-Equal wage policy for women and men should be implemented strictly.
4-Women Cells as per guidelines of the Supreme Court must be constituted in all departments.


Akhilendra Pratap Singh,  Convener
All India Peoples Front, AIPF
ED-17, Diomand Dairy Colony
                            Udaiganj, Lucknow
                            Phone: 09451061595

Tuesday, 28 January 2014

वनाधिकार के लिए अखिलेन्द्र करेंगें संसद पर उपवास

सोनभद्र, चंदौली, मिर्जापुर के लिए विकास पैकेज की उठेगी मांग

आइपीएफ की जिला कमेटी की हुई बैठक

सोनभद्र, 29 जनवरी 2014, सोनभद्र, चंदौली और मिर्जापुर के विकास के लिए विशेष पैकेज, वनाधिकार कानून के तहत जंगल की जमीनों पर बसे लोगों के मालिकाना अधिकार, ठेका मजदूरों के नियमितिकरण, हर मजदूर को दस हजार रूपए न्यूनतम मजदूरी, कोल को आदिवासी के दर्जे, अवैध खनन की सीबीआई जांच के लिए आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह आगामी 7 फरवरी से संसद के सम्मुख दस दिवसीय उपवास करेंगे। इस कार्यक्रम की तैयारी के लिए आज आइपीएफ की जिला संयोजन समिति की बैठक हुई।

बैठक में लिए राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि उ0 प्र0 सरकार के खजाने में सबसे ज्यादा राजस्व देने और प्राकृतिक संसाधनों, कल कारखानों से समृद्ध होने के बाबजूद यह क्षेत्र बेहद पिछड़ा हुआ है। यहां की खेती तबाह है किसानों के खेतों को पानी नहीं मिल रहा है और धान से लेकर गेहूं तक की सरकारी खरीद नहीं हो रही और जो थोड़ा बहुत खरीदा गया उसके पैसे का भी भुगतान नहीं किया गया। मधुपुर से लेकर राजगढ तक पैदा होने वाला किसानों का टमाटर बिना संरक्षण के खेतों में ही सड़ जाता है। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि वनाधिकार कानून के तहत गांवों से स्वीकृत दावों को स्वीकार कर जंगल की जमीन पर मालिकाना अधिकार दिया जाए, जिसे भी लागू नहीं किया गया। आदिवासी होने के बाबजूद कोल को आदिवासी का दर्जा नहीं मिला। जिस इलाके की पैदा की हुई बिजली से दिल्ली और लखनऊ जगमगाता है उसके गांवों में बिजली नहीं है। अनपरा और ओबरा की बिजली पैदा करने वाली परियोजनाएं भ्रष्टाचार और ठेकेदारी प्रथा के कारण अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रही है। हाई कोर्ट के आदेश के बाबजूद यहां दसियों वर्षो से कार्यरत ठेका मजदूरों को नियमित नहीं किया गया। लाखों की संख्या में काम करने वाले ठेका मजदूरों के ईपीएफ, मजदूरी और बोनस तक को लूट लिया गया है और कमरतोड़ महंगाई में भी 10000 रू0 न्यूनतम मजदूरी देने की मांग पूरा करने को सरकार तैयार नहीं है। गांव में मनरेगा में काम नहीं मिल रहा परिणामतः मजदूरों को पलायन करना पड़ रहा है। हालत इतनी बुरी है कि आज भी लोग बरसाती कुओं, कच्चे कुओं से पानी पीने और चकवड़ का साग और गेठी कंदा जैसी जहरीली जड़ खाने के लिए मजबूर है। अवैध खनन कर इस क्षेत्र की नदी, पहाड़, जंगल, जमीन को माफियाओं द्वारा लूट लिया गया और पर्यावरण के लिए गहरा खतरा पैदा कर दिया गया है। इसलिए इस क्षेत्र के आम नागरिकों की जिदंगी के लिए जरूरी सवालों को केन्द्र सरकार के सामने उठाने और इसे देश का राजनीतिक सवाल बनाने के लिए अखिलेन्द्र द्वारा किए जा रहे उपवास में बड़ी संख्या में हिस्सेदारी का निर्णय बैठक में लिया गया।

बैठक को प्रदेश संगठन प्रभारी दिनकर कपूर, राजेश सचान, प्रमोद चैबे, सुरेन्द्र पाल, रमेश खरवार, शाबिर हुसैन, रामदेव गोड़, श्रीकांत सिंह, अनंत बैगा, श्यामाचरण कोल, रामदुलारे खरवार, मणिशंकर पाठक, नागेन्द्र पनिका, विनोद बैगा, महेन्द्र प्रताप सिंह, राजेन्द्र गोंड़, इंद्रदेव खरवार, देवकुमार विश्वकर्मा, मनोज भारती, महेन्द्र कुशवाहा एडवोकेट आदि ने सम्बोधित किया और संचालन आइपीएफ जिला संयोजक शम्भूनाथ गौतम ने किया।

शम्भूनाथ गौतम

जिला संयोजक

आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ)

Monday, 27 January 2014

चंदौली-सोनभद्र-मिर्जापुर को पिछड़ा क्षेत्र धोषित कर विशेष पैकेज के लिए!
इंसाफ और सामाजिक न्याय के लिए!
जंगल की जमीनों पर बसे लोगों के मालिकाना अधिकार के लिए!
ठेका मजदूरों के नियमितिकरण के लिए!
कोल को आदिवासी के दर्जे के लिए!
दिल्ली चलो!

का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह, राष्ट्रीय संयोजक, आइपीएफ द्वारा
जंतर मंतर पर 07 फरवरी 2014 से उपवास


साथियो,
चंदौली, सोनभद्र और मिर्जापुर का हमारा यह क्षेत्र उ0 प्र0 सरकार के खजाने में सबसे ज्यादा राजस्व देने और प्राकृतिक संसाधनों, कल कारखानों से समृद्ध होने के बाबजूद बेहद पिछड़ा हुआ है। यहां की खेती तबाह है किसानों के खेतों को पानी नहीं मिल रहा है और धान से लेकर गेहूं तक की सरकारी खरीद नहीं हो रही और जो थोड़ा बहुत खरीदा गया उसके पैसे का भी भुगतान नहीं किया गया। मधुपुर से लेकर राजगढ तक पैदा होने वाला किसानों का टमाटर बिना संरक्षण के खेतों में ही सड़ जाता है। हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि वनाधिकार कानून के तहत गांवों से स्वीकृत दावों को स्वीकार कर जमीन पर मालिकाना अधिकार दिया जाए, जिसे भी लागू नहीं किया गया। जिस इलाके की पैदा की हुई बिजली से दिल्ली और लखनऊ जगमगाता है उसके गांवों में बिजली नहीं है। अनपरा और ओबरा की बिजली पैदा करने वाली परियोजनाएं भ्रष्टाचार और ठेकेदारी प्रथा के कारण अपनी पूरी क्षमता से उत्पादन नहीं कर पा रही है। हाई कोर्ट के आदेश के बाबजूद यहां दसियों वर्षो से कार्यरत ठेका मजदूरों को नियमित नहीं किया गया। लाखों की संख्या में काम करने वाले ठेका मजदूरों के ईपीएफ, मजदूरी और बोनस तक को लूट लिया गया है और कमरतोड़ महंगाई में भी 10000 रू0 न्यूनतम मजदूरी देने की मांग पूरा करने को सरकार तैयार नहीं है। गांव में मनरेगा में काम नहीं मिल रहा परिणामतः मजदूरों को पलायन करना पड़ रहा है। हालत इतनी बुरी है कि आज भी लोग बरसाती चुओं, कच्चे कुओं से पानी पीने और चकवड़ का साग और गेठी कंदा जैसी जहरीली जड़ खाने के लिए मजबूर है। अवैध खनन कर इस क्षेत्र की नदी, पहाड़, जंगल, जमीन को माफियाओं द्वारा लूट लिया गया और पर्यावरण के लिए गहरा खतरा पैदा कर दिया गया है। पूरे इलाके की सड़कों के निर्माण में करोड़ो की लूट हुई है वाराणसी शक्तिनगर मार्ग जैसी लाइफलाइन सडक तक की हालत बेहद खराब है। अहरौरा के लकड़ी के खिलौने जैसे छोटे मझौले उद्योग बर्बाद हो रहे है, बार-बार सरकार और प्रशासन को लिखित देने के बाबजूद इसके इस उद्योग को वन निगम द्वारा कोरैया की लकड़ी नहीं उपलब्ध करायी गयी। यहां के आदिवासियों, अतिपिछड़ों, पिछड़े मुसलमानों को सामाजिक न्याय तक हासिल नहीं हुआ आदिवासी होने के बाबजूद कोल को आदिवासी का दर्जा नहीं मिला। अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले सैकड़ों नौजवान आज भी जेलों में बंद है।
इस क्षेत्र के विकास के लिए विशेष पैकेज, जंगल की जमीनों पर बसे लोगों के मालिकाना अधिकार, कृषि के विकास, ठेका मजदूरों के नियमितिकरण, हर मजदूर को दस हजार रूपए न्यूनतम मजदूरी, कोल को आदिवासी के दर्जे और यहां के लोगों के इंसाफ व सामाजिक न्याय के अधिकार के सवालों पर आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह आगामी 7 फरवरी से जंतर-मंतर पर उपवास और धरने पर बैठने जा रहे है। हमारी आप सब से अपील है कि अपनी जिदंगी की इस लड़ाई में बड़े पैमाने पर हिस्सा ले और हर सम्भव सहयोग करें।

निवेदक
एस0 आर0 दारापुरी, पूर्व आई0जी0 व राष्ट्रीय प्रवक्ता आइपीएफ

दिनकर कपूर, संगठन प्रभारी, आइपीएफ, चैधरी यशवंत सिंह, अध्यक्ष, सामाजिक न्याय मोर्चा, रामकृष्ण पाठक, संरक्षक, सामाजिक न्याय मोर्चा, शम्भूनाथ कौशिक जिला संयोजक, सोनभद्र, अखिलेश दूबे, जिला संयोजक चंदौली, मनोज भारती, मिर्जापुर, राजेश सचान, अजय राय, जोखू सिद्दीकी, राम नारायण, सुरेन्द्र पाल, प्रमोद चैबे, रमेश खरवार, शिव प्रसाद खरवार पूर्व प्रधान, मटर कोल पूर्व प्रधान, डा0 गीता शुक्ला, डा0 चंद्र देव गोड़, श्याम सुदंर खरवार, महेन्द्र प्रताप सिंह, राममूरत पासवान, कमला प्रसाद, रहमुद्दीन, राजेन्द्र गोड, सत्यम विश्वकर्मा, बचनू विश्वकर्मा, सीताराम कोल, कन्हैया लाल गुप्ता, श्रीकांत सिंह, अनंत बैगा, विनोद बैगा, तौलन कोल, श्यामाचरण कोल, केशव यादव, शाबिर हुसैन, रामदुलारे प्रजापति, इंद्रदेव खरवार, मणिशंकर पाठक, सुनील कुमार, मोहन प्रसाद, राजेन्द्र गोड़, रामदेव गोड़, देव कुमार विश्वकर्मा, राम दुलारे खरवार, भरत राम व आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) द्वारा जारी।
कार्यालय पताः जालान भवन, राबर्ट्सगंज, सोनभद्र मो0 09450153307

Monday, 13 January 2014

कानून के राज के लिए!
इंसाफ और हिफाजत के लिए!
कारपोरेट को लोकपाल के दायरे में लाने के लिए!
रोजगार के अधिकार के लिए!
खेती को कारपोरेट के हवाले नहीं-सहकारी खेती को प्रोत्साहन के लिए!
दिल्ली चलो
दस दिवसीय घरना व उपवास
07 फरवरी 2014 से जंतर मंतर पर
साथियो,
देश में एक बार फिर बदलाव के पक्ष में जनता का विश्वास बढ़ा है। जिन लोगों ने अवाम की जिदंगी को तबाह कर रखा है उनकी शिनाख्त अब जनता करने लगी है। आने वाले दिनों में ऐसी ताकतों के बारे में जनता की समझ और भी साफ हो जायेगी। लोकपाल कानून देश में पारित हो गया। कौन नहीं जानता कि कारपोरेट घरानों यानी बड़े पूंजीपतियों ने पूरे राजनीतिक तंत्र को भ्रष्ट कर दिया है, सरकारी परियोजनाओं में ठेके, टेण्डर या पीपीपी प्रोजेक्ट हासिल कर प्राकृतिक संसाधनों व जनता की सम्पत्ति को औने-पौने दाम पर सरकारों से खरीद लिया है, अपने मुनाफे के लिए देश को तबाह कर दिया है। लेकिन कारपोरेट को लोकपाल के दायरे में नहीं रखा गया है। इस सवाल पर देश में अभी और लड़ाई होनी बाकी है।
आए दिन पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस के दाम तेल कम्पनियों को फायदा पहुंचाने और सरकारी तामझाम पर खर्च करने के लिए बढ़ाए जा रहे हंै। यहां तक कि खाने की चीजों व सब्जियों में भी सट्टेबाजी हो रही है और जिसके कारण दाम बढ रहे हैं लेकिन इस पर रोक नहीं लग रही है। प्रधानमंत्री महोदय ने यह स्वीकार किया है कि वह महंगाई नहीं रोक पाए पर वह यह नहीं बता रहे है कि महंगाई की प्रमुख वजह सट्टेबाजी पर रोक क्यो नहीं लगा पाए ? प्रधानमंत्री कहते हैं कि हम रोजगार नहीं दे पाए, महोदय जब आप खेती-बाड़ी, कल-कारखानों को विदेशी कम्पनियों और कारपोरेट घरानों के हवाले करने की रोजगारविहीन आर्थिक नीतियों को लागू करने में लगे रहे तब रोजगार पैदा ही कहां से होगा। देश आजाद हो रहा था, गांधी जी देश के विभाजन से हताश और निराश थे, बन रहे संविधान में रोजगार को मौलिक अधिकार नहीं बनाया गया, उनके दबाब में इसे संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में डाला गया। वीपी सिंह की सरकार बनी, सरकार और राष्ट्रपति ने घोषणा भी की कि रोजगार के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल किया जायेगा लेकिन आज तक यह नहीं हुआ। नौजवान ही नहीं प्रधानमंत्री जी आपकी नीतियों, जिसके पैरोकार मोदी से लेकर मुलायम तक है, ने किसानों और हमारे कुटीर उद्योगों में लगे लोगों की जिदंगी को तबाह कर दिया। लाखों किसान और गरीब आत्महत्या कर चुके है और रोज ब रोज हो रही आत्महत्याओं का कोई आकंडा नहीं है। हालत यह हो गयी है कि किसानों के लाभकारी मूल्य की बात तो छोड़ दीजिए जो उन्होंने पैदा किया है वह भी खरीदा नहीं जा रहा है और जो कुछ खरीदा गया है उसका न्यायालयों के आदेश के बाद भी भुगतान नहीं किया गया। कानून व्यवस्था की हालत यह है कि आए दिन तमाम विराधों के बाबजूद महिलाओं को अपमान और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ रहा है। समाज के उत्पीडि़त तबके चैतरफा हमले के शिकार है। हमारे देश में जो लोग दंगाईयों द्वारा घरों से बेदखल किए जा रहे है और कब्रगाहों तक में शरण लिए है उनके रैनबसेरों पर बुलडोजर चलाया जा रहा है।
साथियो,
जब तक लोकतंत्र के नाम पर कारपोरेट राज चलेगा तब तक देश में तबाही, बर्बादी, दंगा-फसाद जारी रहेगा। इसलिए कारपोरेट राज के खिलाफ जनता के राज के लिए निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी, बीच का कोई रास्ता नहीं है। आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) अपने जन्मकाल से ही जनपक्षीय नीतियों और जनराजनीति के लिए लड़ाई जारी रखे हुए है। रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने, कारपोरेट घरानों को लोकपाल कानून के दायरे में ले आने व उन पर टैक्स बढ़ाने, राष्ट्रीय वेतन नीति बनाने, शिक्षा-स्वास्थ्य-कृषि समेत जनहित के मदों पर खर्च बढ़ाने, अल्पसंख्यकों व महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी और पूरे देश में कानून का राज स्थापित करने जैसे महत्वपूर्ण सवालों पर 07 फरवरी से जंतर-मंतर पर दस दिवसीय घरना व उपवास किया जायेगा। आपसे अपील है कि इस आंदोलन में हिस्सेदार बने और हर सम्भव सहयोग करें।



आंदोलन के मुद्दे
रोजगार के सम्बन्ध में -
1. रोजगार के अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकार घोषित किया जाए।
2. देश के बड़े पूंजीपतियों यानी कारपोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर में भारी बढ़ोतरी की जाए तथा तमाम छूटों एवं इसके कानूनों व नियमों में मौजूद कमियों का अंत कर इसके दायरे को व्यापक बनाया जाए। उत्तराधिकार कर को लागू किया जाए।
3. एक राष्ट्रीय वेतन और आय नीति बनायी जाए जो विभिन्न क्षेत्रों व वर्गों के बीच असमानता में भारी कमी करे।
4. विभिन्न विभागों/उद्योगों में स्थायी काम में कार्यरत दिहाड़ी व ठेका मजदूरों को विनियमित किया जाए।
5. आंगनबाड़ी, आशा, शिक्षा मित्रों व रसोइयों समेत सभी स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए।
6. न्यूनतम मजदूरी 10,000 रुपये निर्धारित की जाए।
7. सार्वजनिक क्षेत्रों, सरकारी सेवाओं व सभी स्तर के शिक्षा संस्थाओं में रिक्त पदों को तुरन्त भरा जाए।
8. मनरेगा में हर हाल में 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया जाए, रोजगार न देने की स्थिति में बेकारी भत्ता दिया जाय और बकाया मजदूरी का तुरन्त भुगतान किया जाए। मनरेगा जैसी योजना को शहरों में भी लागू किया जाए।
किसानों के हित में -
1. तत्काल प्रभाव से कृषि लागत मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जाए।
2. कृषि के कारपोरेटीकरण की प्रत्यक्ष व परोक्ष पहल पर रोक लगे और इसके स्थान पर सहकारी कृषि को आर्थिक एवं प्रशासनिक मदद दी जाए। ़
3. बंद पड़ी अथवा बंदी के कगार पर खड़ी निजी चीनी मिलों को किसान सहकारी समितियों को सौपा जाए तथा इनके संचालन के लिए राज्य सरकार द्वारा पूरी मदद दी जाए।
4. कृषि योग्य उपजाऊ भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगें और किसानों व भूमिहीनों के हितों की रक्षा करने वाली भूमि अधिग्रहण व भूमि उपयोग नीति बनायी जाए।
5. वनाधिकार कानून को लागू किया जाए।
6. किसानों को सस्ते दर पर खाद, बीज, डीजल, बिजली आदि की व्यवस्था की जाए।
7. ठेका खेती और जेनेटिक सीड के इस्तेमाल पर रोक लगायी जाए।
भ्रष्टाचार व महंगाई के खिलाफ -
1. कारपोरेट घराने जो सरकारी परियोजनाओं में ठेके, टेण्डर या पीपीपी प्रोजेक्ट हासिल करते है, उन्हें लोकपाल के दायरे में लाया जाए।
2. बढ़ती महंगाई रोकने के लिए सट्टेबाजी, कालाबाजारी व जमाखोरी के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए और वायदा कारोबार पर रोक लगायी जाए।
3. मूलभूत जरूरतों की आपूर्ति में बिचैलियों के संगठनों की भूमिका को नियंत्रित किया जाए और महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को मजबूत किया जाए तथा उसका विस्तार किया जाए।
4. प्राकृतिक संसाधनों की लूट अवैध खनन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगायी जाये और उत्तर प्रदेश में जारी अवैध खनन की सीबीआई जांच करायी जाए।
उद्योग व मजदूरों के लिए -
1. बिजली दरों को बढ़ाना बंद किया जाए। बिजली क्षेत्र के निजीकरण पर रोक लगायी जाए और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयांे को पूरी क्षमता से चलाया जाए। बिजली क्षेत्र के भ्रष्टाचार की सीबीआई से जांच करायी जाए।
2. बुनकरों के कर्ज माफ किये जाए और उन्हें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की तरह अन्य सभी सुविधायें मुहैया करायी जाए। बुनकरी समेत लधु व कुटीर उद्योगों को मुफ्त में बिजली दी जाए।
3. बुनकरों, धरेलू कामगार महिलाओं समेत असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के बने केन्द्रीय कानून 2008 को लागू किया जाए।
साम्प्रदायिकता के खिलाफ -
1. साम्प्रदायिकता पर रोक लगाने के लिए कड़ा कानून बनाकर कड़ी कार्रवाई की जाए।
2. साम्प्रदायिकता के मामलों की सुनवाई फास्ट टैªक कोर्ट द्वारा की जाए।
3. मुजफ्फरनगर के साथ ही सपा सरकार के शासनकाल में हुए दंगों की न्यायिक जांच करायी जाए और इसके लिए जवाबदेह नेताओं, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को दंडित किया जाए।
4. आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार बेकसूर अल्पसंख्यक युवकों के मुकदमों के निस्तारण के लिए विशेष अदालतों का गठन हो और जितनी जल्दी हो सके जो निर्दोष हो, उनकी रिहाई हो और जो लोग अदालत द्वारा निर्दोष करार देकर छूट गये हैं, उन सबके पुनर्वास की गारंटी की जाए और उन्हें क्षतिपूर्ति दी जाए।
5. उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक आयोग का तत्काल गठन किया जाए।
सामाजिक न्याय के सम्बन्ध में-
1. पिछड़े मुसलमानों का कोटा अन्य पिछड़े वर्ग से अलग किया जाए। धारा 341 में संशोधन कर दलित मुसलमानों व ईसाइयों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाए। सच्चर कमेटी व रंगनाथ मिश्रा कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाय।
2. अति पिछड़ी जातियों को अन्य पिछड़े वर्ग में से अलग आरक्षण कोटा दिया जाए।
3. एससी/एसटी के कोटे के रिक्त सरकारी पदों को भरा जाए।
4. निजी क्षेत्र में भी दलितों, आदिवासियों, अन्य पिछड़ा वर्ग व अति पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया जाए।
5. उ0 प्र0 की कोल जैसी आदिवासी जातियों को जनजाति का दर्जा दिया जाए।
जनहित के सम्बन्ध में-
1. कृषि, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत जनहित के मदों में खर्च को बढ़ाया जाए।
2. शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा का बाजारीकरण बंद किया जाए और अनिवार्य तौर पर समान पड़ोस विद्यालय व्यवस्था (छमपहीइवनतीववक ब्वउउवद ैबीववस ैलेजमउ) लागू की जाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का विस्तार किया जाए।
महिलाओं के सम्बन्ध में-
1. महिला आरक्षण बिल संसद द्वारा पारित किया जाए।
2. महिलाओं की हर हाल में सुरक्षा की गारंटी की जाये और उन पर जारी हिंसा के प्रति पुलिस को जवाबदेह बनाया जाये। उनके खिलाफ हुई हिंसा की तत्काल एफ0आई0आर0 दर्ज हो और महिला हिंसा व बलात्कार जैसे संवेदनशील सवालों की फास्ट टैªक कोर्ट द्वारा सुनवाई की जाए।
3. महिलाओं को पुरूषों के बराबर वेतन का कड़ाई से अनुपालन कराया जाए।
4. माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार सभी विभागों में ‘वूमेन सेल’ का तत्काल गठन किया जाए।
निवेदक
अखिलेन्द्र प्रताप सिंह, राष्ट्रीय संयोजक, आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ), प्रो0 निहालुद्दीन अहमद, उत्तरा विश्वविद्यालय, मलेशिया, एस. आर. दारापुरी, पूर्व आईजी व राष्ट्रीय प्रवक्ता, आइपीएफ।

सम्पर्क पताः दिनकर कपूर संगठन प्रभारी, आइपीएफ, 4 माल एवेन्यू, निकट सत्संग भवन, लखनऊ, मो0 09450153307 द्वारा जारी।