This blog has been devised to represent the activities of All India Peoples Front(R), a political party aiming at forging a political alternative comprising of progressive, secular and radical parties.
Saturday, 29 June 2013
Friday, 28 June 2013
पूर्वाचंल में इंसेफ्लाइटिस से हो रही मौतें राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा घोषित हो - आइपीएफ
पूर्वाचंल में इंसेफ्लाइटिस से हो रही मौतें राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा घोषित हो - आइपीएफ
सरकार चलाएं युद्धस्तर पर अभियान -दारापुरी
लखनऊ 29 जून 2013, पूर्वाचंल में फैली दिमागी बुखार की बीमारी जापानी इंसेफ्लाइटिस को राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा घोषित किया जाना चाहिए एवं स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और जल प्रबंधन विभाग की संयुक्त टीम बनाकर इसकी रोकथाम और इसके रोधी टीकों को लगाने के लिए सरकार को टीकाकरण के लिए युद्धस्तर पर अभियान चलाना चाहिए। यह मांग आज प्रेस को जारी अपनी विज्ञिप्ति में आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व आई.जी. एस0 आर0 दारापुरी ने उठायी। उन्होनें बताया कि पूर्वाचंल में राष्ट्रीय आपदा की तरह आने वाली इस बीमारी में हर वर्ष हजारों बच्चे मरते है और विकलांग होते है। इस वर्ष भी अब तक पूर्वाचंल में 118 बच्चों की मौत हो चुकी है और मानसून के बाद तक यह संख्या 1000 को भी पार कर जायेगी। सरकारी आकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष भी इस बीमारी ने 1256 बच्चों की जान ली थी और गैरसरकारी आकंडों के अनुसार यह संख्या 1500 के ऊपर है। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज की रिर्पोट के मुताबिक अब तक 35000 बच्चों की जान इस बीमारी की वजह से जा चुकी है और 20000 के लगभग बच्चे विकलांग हो चुके है। इस बीमारी के संदर्भ को स्वतः संज्ञान में लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी 2006 में सरकार को फटकार लगायी थी और इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा धोषित करने व इससे निपटने के लिए ठोस योजना बनाने का आदेष दिया था। इसके दबाब में आयी केन्द्र व राज्य सरकार ने इसे महामारी मानते हुए इसके रोकथाम के लिए कई धोषणाएं भी की थी पर आज तक वह जमीनीस्तर पर कहीं लागू नहीं की गयी और बच्चों की मौतें बदस्तूर जारी है। उन्होनें कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बड़ी-बड़ी सुविधाओं की धोषणाएं करने वाली और लोहिया के नारे दवा इलाज मुफ्त देने की बात करने वाली इस सपा सरकार में हालात और भी बुरे है। इस बीमारी के लिए गोरखपुर के बीआरडी कालेज में बनाया गया 100 बिस्तरों वाला विषेष वार्ड आज तक बनकर तैयार नहीं हुआ और न ही इससे प्रभावित होने वालों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू हो सका है। सरकार की यह लापरवाही आपराधिक है। उन्होनें कहा कि आष्चर्य की बात है कि केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के द्वारा इसकी निगरानी की जाती है और मच्छरों के काटने से होने वाले इस रोग के इलाज और रोकथाम के लिए टीकाकरण भी उपलब्ध है बाबजूद इसके सरकार द्वारा ध्यान न देने के कारण हर साल हजारों बच्चों का जीवन दांव पर लगता है। इस वर्ष मानसून की स्थिति को देखते हुए इसका प्रकोप ज्यादा होने की सम्भावना है। दारापुरी ने बताया कि महामारी के रूप में हर साल आने वाली इस जापानी इंसेफ्लाइटिस से पूर्वाचंल की जनता के जीवन को बचाने के लिए आइपीएफ महामहिम राज्यपाल को पत्र भेजेगा और उनसे इस मामले में शीध्र कार्रवाही के लिए राज्य सरकार को निर्देष देने के लिए हस्तक्षेप की अपील करेगा।
सरकार चलाएं युद्धस्तर पर अभियान -दारापुरी
लखनऊ 29 जून 2013, पूर्वाचंल में फैली दिमागी बुखार की बीमारी जापानी इंसेफ्लाइटिस को राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा घोषित किया जाना चाहिए एवं स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास और जल प्रबंधन विभाग की संयुक्त टीम बनाकर इसकी रोकथाम और इसके रोधी टीकों को लगाने के लिए सरकार को टीकाकरण के लिए युद्धस्तर पर अभियान चलाना चाहिए। यह मांग आज प्रेस को जारी अपनी विज्ञिप्ति में आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व आई.जी. एस0 आर0 दारापुरी ने उठायी। उन्होनें बताया कि पूर्वाचंल में राष्ट्रीय आपदा की तरह आने वाली इस बीमारी में हर वर्ष हजारों बच्चे मरते है और विकलांग होते है। इस वर्ष भी अब तक पूर्वाचंल में 118 बच्चों की मौत हो चुकी है और मानसून के बाद तक यह संख्या 1000 को भी पार कर जायेगी। सरकारी आकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष भी इस बीमारी ने 1256 बच्चों की जान ली थी और गैरसरकारी आकंडों के अनुसार यह संख्या 1500 के ऊपर है। गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज की रिर्पोट के मुताबिक अब तक 35000 बच्चों की जान इस बीमारी की वजह से जा चुकी है और 20000 के लगभग बच्चे विकलांग हो चुके है। इस बीमारी के संदर्भ को स्वतः संज्ञान में लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी 2006 में सरकार को फटकार लगायी थी और इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा धोषित करने व इससे निपटने के लिए ठोस योजना बनाने का आदेष दिया था। इसके दबाब में आयी केन्द्र व राज्य सरकार ने इसे महामारी मानते हुए इसके रोकथाम के लिए कई धोषणाएं भी की थी पर आज तक वह जमीनीस्तर पर कहीं लागू नहीं की गयी और बच्चों की मौतें बदस्तूर जारी है। उन्होनें कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बड़ी-बड़ी सुविधाओं की धोषणाएं करने वाली और लोहिया के नारे दवा इलाज मुफ्त देने की बात करने वाली इस सपा सरकार में हालात और भी बुरे है। इस बीमारी के लिए गोरखपुर के बीआरडी कालेज में बनाया गया 100 बिस्तरों वाला विषेष वार्ड आज तक बनकर तैयार नहीं हुआ और न ही इससे प्रभावित होने वालों के लिए टीकाकरण अभियान शुरू हो सका है। सरकार की यह लापरवाही आपराधिक है। उन्होनें कहा कि आष्चर्य की बात है कि केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के द्वारा इसकी निगरानी की जाती है और मच्छरों के काटने से होने वाले इस रोग के इलाज और रोकथाम के लिए टीकाकरण भी उपलब्ध है बाबजूद इसके सरकार द्वारा ध्यान न देने के कारण हर साल हजारों बच्चों का जीवन दांव पर लगता है। इस वर्ष मानसून की स्थिति को देखते हुए इसका प्रकोप ज्यादा होने की सम्भावना है। दारापुरी ने बताया कि महामारी के रूप में हर साल आने वाली इस जापानी इंसेफ्लाइटिस से पूर्वाचंल की जनता के जीवन को बचाने के लिए आइपीएफ महामहिम राज्यपाल को पत्र भेजेगा और उनसे इस मामले में शीध्र कार्रवाही के लिए राज्य सरकार को निर्देष देने के लिए हस्तक्षेप की अपील करेगा।
Thursday, 27 June 2013
मोदी को है जनता से ज्यादा मंदिर की चिंता - अखिलेन्द्र
मोदी को है जनता से ज्यादा मंदिर की चिंता - अखिलेन्द्र
उत्तराखण्ड़ आपदा के लिए जबाबदेह नीतियों पर मौन है कांग्रेस-भाजपा
लखनऊ 27 जून 2013, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उत्तराखण्ड़ और हिमाचल के निवासियों और यात्रियों पर आई आपदा के समय वहां केदारनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण करने की घोषणा यह दिखती है कि वह जनता के प्रति संवेदनहीन है यह प्रतिक्रिया आज जारी अपने बयान में आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने दी। उन्होनें कहा कि इतनी बड़ी त्रासदी के वक्त वहां की पीडि़त जनता के प्रति संवेदना दिखाने और इस आपदा में अभी भी फंसे हुए हजारों देशवासियों के जीवन की रक्षा और उनके पुर्नवास के लिए सभी संसाधनों का उपयोग करने की जगह मोदी मंदिर के पुर्ननिर्माण की बात उठा रहे है जो उनकी जनता के प्रति संवेदनहीनता को दिखाता है। उन्होनें कहा कि जहां तक सवाल केदारनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण का है उसके लिए मोदी जैसों की कोई आवष्यकता नहीं है यह काम तो वहां के आस्थावान तीर्थयात्रियों के द्वारा आए चढ़ावे के बदौलत ही हो जायेगा। उन्होनें कहा कि वहां बुनियादी सवाल है कि भूमफिया, बिल्ड़रों, कारपोरेट, ठेकेदारों और राजनेताओं व नौकरशाहों के गठजोड़ द्वारा बिना किसी पर्यावरण और सुरक्षा मानकों की चिंता किए पचहत्तर प्रतिषत इलाको में हाइड्रो पावर प्लांट बना दिए गए, लगातार नदियों के पेटे से बालू का अवैध खनन किया गया और नदियों के किनारे होटल और आरामगृहों का निर्माण किया गया है। प्रकृति के आक्रोश की दिल दहला देने वाली यह त्रासदी पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचाने वाली कारपोरेट विकास की इसी नीति का ही परिणाम है और इस नीति पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही नेतागण मौन धारण किए हुए है। इतना ही नहीें ऐसी त्रासदी को रोकने की तैयारी में कमी के सम्बंध में दो माह पूर्व ही सीएजी ने भी अपनी रिर्पोट में चेतावनी दी थी पर आपराधिक लापरवाही करते हुए उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी यहीं नही दिसम्बर 2007 के बाद आज तक राज्य दैवी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक तक नहीं की गयी, जबकि इस दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें वहां रही है। उन्होनें ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवेहलना कर जिन लोगों ने पर्यावरण और आम आदमी की जिदंगी के लिए खतरा और इस प्रकार की त्रासदी को पैदा किया है उन लोगों की षिनाख्त कर दण्डि़त किया जाना चाहिए और जेल भेजा जाना चाहिए। उन्होनें केन्द्र सरकार से तत्काल इस
त्रासदी की व्याप्कता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा धोषित करने और जनहितकारी, पर्यावरणपक्षीय नयी खनन व पर्यावरण नीति की धोषणा करने की मांग की है।
(दिनकर कपूर)
संगठन प्रभारी
आइपीएफ,उ0 प्र0।
उत्तराखण्ड़ आपदा के लिए जबाबदेह नीतियों पर मौन है कांग्रेस-भाजपा
लखनऊ 27 जून 2013, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उत्तराखण्ड़ और हिमाचल के निवासियों और यात्रियों पर आई आपदा के समय वहां केदारनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण करने की घोषणा यह दिखती है कि वह जनता के प्रति संवेदनहीन है यह प्रतिक्रिया आज जारी अपने बयान में आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने दी। उन्होनें कहा कि इतनी बड़ी त्रासदी के वक्त वहां की पीडि़त जनता के प्रति संवेदना दिखाने और इस आपदा में अभी भी फंसे हुए हजारों देशवासियों के जीवन की रक्षा और उनके पुर्नवास के लिए सभी संसाधनों का उपयोग करने की जगह मोदी मंदिर के पुर्ननिर्माण की बात उठा रहे है जो उनकी जनता के प्रति संवेदनहीनता को दिखाता है। उन्होनें कहा कि जहां तक सवाल केदारनाथ मंदिर के पुर्ननिर्माण का है उसके लिए मोदी जैसों की कोई आवष्यकता नहीं है यह काम तो वहां के आस्थावान तीर्थयात्रियों के द्वारा आए चढ़ावे के बदौलत ही हो जायेगा। उन्होनें कहा कि वहां बुनियादी सवाल है कि भूमफिया, बिल्ड़रों, कारपोरेट, ठेकेदारों और राजनेताओं व नौकरशाहों के गठजोड़ द्वारा बिना किसी पर्यावरण और सुरक्षा मानकों की चिंता किए पचहत्तर प्रतिषत इलाको में हाइड्रो पावर प्लांट बना दिए गए, लगातार नदियों के पेटे से बालू का अवैध खनन किया गया और नदियों के किनारे होटल और आरामगृहों का निर्माण किया गया है। प्रकृति के आक्रोश की दिल दहला देने वाली यह त्रासदी पर्यावरण को लगातार नुकसान पहुंचाने वाली कारपोरेट विकास की इसी नीति का ही परिणाम है और इस नीति पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही नेतागण मौन धारण किए हुए है। इतना ही नहीें ऐसी त्रासदी को रोकने की तैयारी में कमी के सम्बंध में दो माह पूर्व ही सीएजी ने भी अपनी रिर्पोट में चेतावनी दी थी पर आपराधिक लापरवाही करते हुए उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी यहीं नही दिसम्बर 2007 के बाद आज तक राज्य दैवी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की बैठक तक नहीं की गयी, जबकि इस दौरान भाजपा और कांग्रेस दोनों की ही सरकारें वहां रही है। उन्होनें ने जोर देकर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवेहलना कर जिन लोगों ने पर्यावरण और आम आदमी की जिदंगी के लिए खतरा और इस प्रकार की त्रासदी को पैदा किया है उन लोगों की षिनाख्त कर दण्डि़त किया जाना चाहिए और जेल भेजा जाना चाहिए। उन्होनें केन्द्र सरकार से तत्काल इस
त्रासदी की व्याप्कता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा धोषित करने और जनहितकारी, पर्यावरणपक्षीय नयी खनन व पर्यावरण नीति की धोषणा करने की मांग की है।
(दिनकर कपूर)
संगठन प्रभारी
आइपीएफ,उ0 प्र0।
Tuesday, 25 June 2013
सपा की विभाजनकारी राजनीति के विरूद्ध उ0 प्र0 में हुआ दस दिवसीय
सपा की विभाजनकारी राजनीति के विरूद्ध उ0 प्र0 में हुआ दस दिवसीय अनशन और धरना
(रिपोर्ट)
‘हम देष के लिए भाजपा को एक बड़े खतरे के रूप में मानते है और इसके खिलाफ लड़ाई को भी सर्वोच्च स्थान देते है साथ ही भाजपा और कांग्रेस व सपा-बसपा जैसे दलों के बीच के फर्क को भी करते है लेकिन पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से उ0 प्र0 में जिस तरह से सपा सुप्रीमों के निर्देशन में चल रही अखिलेश की सरकार द्वारा पहले से ही विभाजन और अलगाव के दौर से गुजर रही प्रदेश की जनता को और भी विभाजित करके भाजपा को बढ़ने का मौका दिया गया उसके विरोध में मै दस दिन के उपवास पर रहा हूं। हमें खुषी है कि कांग्रेस-भाजपा, सपा-बसपा की कारपोरेटपरस्त, अमेरीकापरस्त राजनीति के विरूद्ध प्रदेष की सभी वाम-जनवादी आंदोलन की ताकतें एक साथ आयी है जो प्रदेष में जन राजनीति का केन्द्र बनेगा।‘ यह बातें लखनऊ में विधानसभा के सामने प्रदेश में जन अधिकार अभियान के तहत कानून के राज की स्थापना के लिए 10 जून से जारी दस दिवसीय अपने उपवास को खत्म करने के बाद आयोजित सभा में आल इण्डि़या पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहीं। 19 जून को का0 अखिलेन्द्र ने 1 बजे राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के सीपीआईएम राज्य सचिव का0 एस0 पी0 कश्यप, राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी, और सीपीआई राज्य सचिव का0 डा0 गिरीश के हाथों से जूस पीकर अपने दस दिवसीय उपवास को समाप्त किया। इस दिन सीपीआईएम, राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल, सीपीआई, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), आइपीएफ, राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय किसान यूनियन समेत सभी वाम-जनवादी दलों के हजारों लोग उपवासस्थल पर पहुंचे।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष में सरकार बनने के बाद अखिलेश सरकार ने सबसे पहले पूरे समाज से दलितों को अलगाव में डाल दिया और उनकी इस कार्यवाही को दलितों में ध्रुवीकरण के लिए उनकी विरोधी बनने वाली मायावती ने भी मदद पहुंचाने का काम किया। सभी लोग जानते है कि आरक्षण के संदर्भ में नागराज के मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला था वह पिछड़ी जातियों के पिछड़ेपन के संदर्भ में था जिसकी चपेट में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग भी आ गए, इसे मात्र सुप्रीम कोर्ट में एक पुर्नविचार याचिका दायर कर ठीक कराया जा सकता था पर मायावती ने सत्ता में रहते हुए भी यह काम भी नहीं किया। परशुराम जयंती पर अभियान चलाने वाली सपा सरकार ने यह जानते हुए भी अति पिछड़ी जातियों को दलितों में संवैधानिक रूप से शामिल नहीं किया जा सकता क्योकि वह अछूत नहीं है, 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेजा है। ज्ञात्वय हो कि यही काम मायावती ने भी किया था। दरअसल प्रदेष में अति पिछड़ी जातियों को उनके सामाजिक न्याय के अधिकार से वंचित करने की कोशिश माया-मुलायम दोनों करते रहे है। मुलायम सिंह तो समाजवादी आंदोलन की पैदावार है और लोहिया, जय प्रकाष नारायण, कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते है, यदि उनकी राजनीति में ईमानदारी होती तो वह मण्ड़ल कमीषन के सदस्य एल0 आर0 नायक की संस्तुति और प्रदेष में बने छेदीलाल साथी कमीषन व कर्पूरी ठाकुर फार्मूला के आधार पर अति पिछड़ों का आरक्षण कोटा अन्य पिछड़ा वर्ग से अलग कर देते।
सामाजिक न्याय के सवाल के साथ ही सपा सरकार प्रदेश में हिन्दू और मुस्लिमों के बीच की खाई को भी और बढ़ाने की राजनीति कर रही है। यह जानते हुए भी कि आतंकवाद के मुकदमें में फंसे लोगों का मुकदमा संवैधानिक रूप से सरकार वापस नहीं ले सकती महज मुसलमानों को शिकार बनाने के लिए इस सरकार ने मुकदमा वापसी की बड़ी-बड़ी धोषणाएं की। इससे हिन्दुओं को लगा कि महज वोट के लिए यह सरकार अपराधियों पर से मुकदमा वापस लेने का काम कर रही है और इससे मुसलमानों का भी भला नहीं हुआ वहीं प्रदेष में भाजपा को हिन्दु धुव्रीकरण के जरिए अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को बढ़ाने में मदद मिली। वास्तव में सरकार अपनी धोषणा के प्रति ईमानदार होती तो वह इस सम्बंध में बनी जस्टिस आर.डी. निमेष कमीशन की रिर्पोट को एक्शन टेकन रिर्पोट के साथ विधानसभा में रखने में इतना विलम्ब न करती। अभी भी सरकार ने खालिद की मौत और गिरफ्तारी के लिए दर्ज एफआईआर की विवेचना शुरू नहीं करायी और न ही इस पूरे मामले की सीबीआई जांच के लिए केन्द्र सरकार पर दबाब डाला। यदि सरकार चाहे तो आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद नौजवानों के मामलें में एक कमीशन बना दे जिसकी रिर्पोट के बाद प्रदेश की जनता यह देख लेती कि कौन आतंकवादी है और कौन निर्दोष। यहीं नहीं सरकार के एक वर्ष से ज्यादा के कार्यकाल में 27 दंगें हो चुके है जिनमें प्रषासन के संरक्षण में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए है, जिनमें से फैजाबाद-अयोध्या दंगें के लिए भारतीय प्रेस परिषद ने भी प्रशासन को जिम्मेदार माना है।
यहीं हालत माओवादियों के मामले में भी है। मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली जनपद में जहां आदिवासी, गरीब समाज के लोग, जो व्यवस्था से अलगाव और विक्षोभ की वजह से माओवाद के प्रभाव में चले गए थे, उस क्षेत्र में लगातार चले लोकतांत्रिक आंदोलन की वजह से प्रभावित होकर राजनीति की मुख्यधारा में लौट आए हैं। फिर भी माओवाद से निपटने के नाम पर वहां गरीबों का दमन हो रहा है। एक तरफ समाजवादी पार्टी में शामिल पूर्व माओवादी बासमती कोल को सरकार महिला आयोग का सदस्य बनाती है वहीं माओवादी होने के नाते सैकड़ों लड़के और महिलाएं आज भी जेलों में बंद है इनके गैगस्टर व गुण्ड़ा एक्ट के मुकदमों की वापसी, जमानत और पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। यहीं नहीं आदिवासियों व वनाश्रित लोगों को उनकी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना अधिकार देने के लिए संसद द्वारा बने वनाधिकार
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कानून को सरकार ने विफल कर दिया है। इन तबकों द्वारा मालिकाना हक के लिए दाखिल लाखों दावों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया है, उन दावा फार्मो को तहसील में दीमक चाट रहे है। ग्रामस्तर की वनाधिकार समिति द्वारा स्वीकृत दावों को कानून में अधिकार न हाते हुए भी उपखण्ड़ स्तर की कमेटी द्वारा खारिज कर दिया गया। आदिवासियों को गैरकानूनी तरीके से जमीन से बेदखल किया जा रहा है, उन पर फर्जी मुकदमें कायम किए जा रहे है और लगातार उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। आदिवासियों व वनाश्रित लोगों को वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक दिलाने के लिए आइपीएफ ने माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की है। जिसें स्वीकार कर माननीय उच्च न्यायालय की दो सदस्यी खण्ड़पीठ ने केन्द्र और प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है। आदिवासियों के साथ अन्याय बदस्तूर जारी है, कोल को आदिवासी होने के बाबजूद आदिवासी का दर्जा नहीं दिया गया। गोड़, खरवार जैसी जिन आदिवासी जातियों को आदिवासी का दर्जा भी मिला, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी उनके लिए लोकसभा, विधानसभा से लेकर पंचायत तक सीट ही आरक्षित नहीं की गयी परिणामस्वरूप वह आरक्षित सीटों पर चुनाव ही नहीं लड़ पा रहे है।
प्रदेश में बुदेलखण्ड़ से लेकर सोनभद्र तक सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए सिड़ीकेटों द्वारा अवैध खनन बदस्तूर जारी है। इस अवैध खनन के खिलाफ जो कुछ नौकरशाह कानूनसम्मत काम करने की कोशिश भी करते हैं तो उन्हें पदों से हटा दिया जाता है, उन पर हमले हो रहे है। इलाहाबाद में 4 करोड़ के अवैध सिलका सैण्ड़ के खनन के खिलाफ कार्रवाही करने के कारण एक ही दिन में इलाहाबाद के कमीश्नर को हटा दिया गया और सोनभद्र में अवैध खनन को चालू करने से इंकार करने वाले डीएम व वनविभाग अधिकारियों का एक साथ तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं यह सरकार अवैध खनन में लिप्त लोगों को बचाने में लगी है। मायावती राज में हुए 14 अरब से भी ज्यादा के स्मारक घोटालें, जिसमें मिर्जापुर में अवैध खनन प्रमाणित हुआ है, में लोकायुक्त द्वारा प्रकरण की विवेचना छः माह में सीबीआई या विशेष जांच दल से कराने की संस्तुतियों को आज तक सरकार ने स्वीकार नहीं किया और न ही इस घोटाले में शामिल सम्बंधित मंत्री समेत सभी लोगों के विरूद्ध तत्काल एफआईआर दर्ज करायी। प्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर आम नागरिकों के जीवन, पर्यावरण और पेयजल के लिए गहरा संकट पैदा करने वाले अवैध खनन की सीबीआई से जांच कराने के लिए आइपीएफ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है और यदि अखिलेश सरकार अवैध खनन पर रोक लगाकर इसकी सीबीआई जांच नहीं कराती तो इसका भी हाल कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार की तरह ही होगा।
किसानों के बकाए के भुगतान और कर्ज को माफ करने की धोषणा के साथ सत्ता पर पहुंची सरकार में आज भी किसानों का करीब 6 हजार करोड़ बकाया है। इस सरकार में एक तो आमतौर पर फसलों की सरकारी खरीद हुई नहीं और जो कुछ थोड़ी बहुत सरकारी खरीद हुई उसका भी भुगतान नहीं किया गया। प्रदेश में इतनी शर्मनाक हालत थी कि किसानों की बात करने वाले मुलायम सिंह की पार्टी की सरकार में किसानों की फसल खरीदनें के लिए मुख्यमंत्री बोरा मांगने केन्द्र के पास जाते है और बोरे के अभाव में खरीद नहीं होती है। किसानों के पचास हजार तक के कर्जे को माफ करने के वायदे की हालत यह है कि अभी मात्र भूमि विकास बैंक के द्वारा ही लिए कर्जे के ब्याज की माफी के लिए सरकार जिलों से किसानों की सूची मंगवा रही है। वहीं गांव-गांव कर्ज वसूली के नाम पर किसानों का दमन हो रहा है। किसानों से आज तक लागत मूल्य का पचास प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने और किसान आयोग बनाने का वायदा पूरा नहीं किया गया। नेशनल हाईवे की मौजूदगी में हावड़ा-दिल्ली कारिडोर व लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे और गंगा एक्सप्रेस वे जैसी योजनाओं के लिए सरकार रात दिन एक किए हुए है जबकि इन सड़क योजनाओं का मकसद यातायात के सवाल को हल करना नहीं बल्कि किसानों की उपजाऊ भूमि को छीनकर बिल्डरों, पंूजी घरानों के हवाले करना है जिससे कि वे वहां टाउनशिप और फार्म हाउस बनाकर बेहिसाब मुनाफा कमाएं।
पूरे प्रदेष में मनरेगा को विफल कर दिया गया है। कहीं भी ग्रामीण गरीबों को काम नहीं मिल रहा है और काम न देने की स्थिति में बेकारी भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। जिसके खिलाफ भी आइपीएफ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। आज प्रदेश में लगातार बिजली कटौती और बिजली दरों में वृद्धि का जो बिजली संकट पैदा हुआ है उसकी भी मूल वजह भ्रष्टाचार और बिजली विभाग में मची लूट है। प्रदेष की अनपरा और ओबरा जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की विद्युत उत्पादन करने वाली इकाइया कमीशनखोरी और ठेकेदारी प्रथा के कारण अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं कर पा रही है। बिजली विभाग में बीस-बीस साल से एक ही जगह काम करने वाले मजदूरों को संविदा श्रमिक के बतौर रखा गया है। इन मजदूरों के नियमितिकरण के लिए हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी न तो पूर्ववर्ती मायावती सरकार ने और न ही वर्तमान सरकार ने इन मजदूरों को नियमित किया। प्रदेश में बिजली दरों की बढ़ोत्तरी में भी घोटाला हुआ, बिजली दरों के निर्धारण में राज्य विद्युत नियामक आयोग और पावर कारपोरेशन ने एक ही सलाहकार की नियुक्ति कर बिजली दरों को बढ़ाकर जनता पर बोझ लाद दिया। पावर कारपोरेशन के घाटे की बात भी बेईमानी है क्योकि 25 हजार करोड़ का घाटा दिखाया जा रहा है जबकि 27 हजार करोड़ से भी ज्यादा बकाया है जिसमें से 9 हजार करोड़ सरकार के विभागों पर बकाया है यदि इसकी ही वसूली हो जाएं तो घाटा खत्म हो जायेगा। इतना ही नहीं आज की गयी बिजली दरों में वृद्धि से
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सरकार को मात्र 4 हजार करोड़ रूपए प्राप्त होगें और यदि सरकार अपने बकाए का आधा भी दे दें तो जनता पर लादे दर वृद्धि इस बोझ की कोई जरूरत नहीं रह जायेगी।
यह वह स्थिति थी जिससे प्रदेश को बचाने के लिए और कानून के राज की स्थापना के लिए 18 सूत्री मांगों पर प्रदेष की वाम-जनवादी ताकतों ने जन अधिकार अभियान चलाने का फैसला किया, जिसकी शुरूवात इस दस दिवसीय उपवास से की गयी। इस अभियान की मांगों का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय अभियान समिति के अध्यक्ष व पूर्व वाणिज्य सचिव भारत सरकार श्री एस0 पी0 शुक्ला ने अपने पत्र में लिखा कि इस अभियान में जो सवाल उठाएं गए है वह न सिर्फ उ0 प्र0 के मौजूदा हालात में जरूरी है साथ ही यह देश में वैकल्पिक नीतियों का भी एजेण्ड़ा है। गांधी इंस्टिट्यूट, वाराणसी के निदेषक प्रो0 दीपक मलिक ने अपने संदेष में लिखा कि एक ऐसे समय में जब जन आंदोलन को गम्भीर चुनौती मिल रही है, जन समस्याओं को सुनने का माहौल नही है इस उपवास ने जन प्रतिरोध को एक बार फिर केन्द्र में ला दिया है और जन प्रतिरोध आंदोलन की संस्कृति और कार्रवाही को फिर से पुर्नजीवित किया है।
उपवास के अंतिम दिन हुई सभा में बोलते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि कांग्रेस-भाजपा जिन जनविरोधी नीतियों पर चल रही है उसका विकल्प कोई तीसरा और चैथा मोर्चा नहीं हो सकता क्योंकि इनको बनाने वाले दल भी इन्हीं नीतियों पर अमल कर रहे है। मात्र सरकारों के बदलने से जनता की जिदंगी में बदलाव नहीं आ सकता आज जरूरत है नीतियों को बदलने की। जिन नीतियों से किसानों, मेहनतकशों और आम अवाम का भला हो सकंे। उन्होनें कहा कि यह काम मात्र वामपंथी, सोशलिस्ट और उलेमा कौसिंल जैसी जनपक्षधर आंदोलन की ताकतें ही कर सकती है जो प्रदेश में एक मंच पर आयी है और यह देष के लिए भी एक नजीर बनेगा। सीपीआई (एम) राज्य सचिव का0 एस0 पी0 कश्यप ने कहा कि जो सवाल हम अपने अभियान के माध्यम से उठाए है वह समाजवादी पार्टी द्वारा किए गए वायदों के दायरे में ही है इसलिए सरकार को अपने वायदें पूरे करने चाहिए और प्रदेश की जनता के हित में इन सवालों को हल करना चाहिए। आज देश को वाम जनवादी विकल्प की जरूरत है मात्र पार्टियों का मोर्चा नहीं हमें जनपक्षधर नीतियों पर जनता का मोर्चा बनाना होगा। राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी ने कहा कि प्रदेश में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, दलित आंदोलन और मुस्लिम समाज की जनपक्षधर ताकतों द्वारा शुरू हुआ यह अभियान नए जन विकल्प को पैदा करेगा। सीपीआई राज्य सचिव का0 डा0 गिरीश ने कहा कि उ0 प्र0 को मुलायम-माया की राजनीति से मुक्त करा वाम-जनवादी दिशा देने की जरूरत है और जो प्रयास प्रदेष में शुरू हुआ है उसमें हम पूरी ताकत से रहेगें। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश पाण्डेय ने कहा कि सपा सरकार का डा0 लोहिया की विचारधारा और समाजवाद से कोई वास्ता नहीं रह गया है। इस सरकार ने प्रदेश की जनता को अपने एक वर्ष से ज्यादा के कार्यकाल में मात्र धोखा देने का ही काम किया है। राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव व पूर्वमंत्री का0 कौशल किशोर ने कहा कि प्रदेश में कानूनव्यवस्था ध्वस्त है और गुण्ड़ा-माफिया-पुलिस राज है। प्रदेश में दलितों, अल्पसंख्यकों समेत समाज के गरीब तबकों पर लगातार हमले हो रहे है। उपवास के छठवें दिन भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ऋषिपाल अम्बावता के नेतृत्व में सैकड़ों किसान विधानसभा के सामने उपवासस्थल पर पहुंचे इसके साथ ही प्रत्येक दिन उपवासस्थल पर सैकड़ों की संख्या में लोगों के आने का सिलसिला जारी रहा और हर दिन प्रदेष के विभिन्न ज्वंलत सवालों पर राजनीतिक प्रस्ताव ग्रहण किए गए।
इन सभाओं को पूर्व सासंद इलियास आजमी, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संदीप पाण्डेय, महामंत्री ओकांर सिंह, सीपीएम राज्य कमेटी सदस्य का0 राधेश्याम वर्मा, सीपीएम राज्य सचिव मण्ड़ल सदस्य का0 प्रेमनाथ राय, पूर्व आईजी व आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी, राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के महासचिव मौलाना ताहिर मदनी, मुस्लिम महिला पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद् के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ की अध्यक्ष डा0 किरन सिंह, राष्ट्रीय बहुजन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बनारसी दास, राज्य कर्मचारी महासंध के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह, गांधी संस्थान की रजिस्ट्रार मुनीजा रफीक खान, मुस्लिम फोरम के अध्यक्ष एम के शेरवानी, भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाण्ड़ेय समाजसेवी सुदंरलाल सुमन, वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह, पूर्व अध्यक्ष इ0वि0वि0 लाल बहादुर सिंह ने सम्बोधित किया। सभाओं का संचालन राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के प्रदेश अध्यक्ष परवेज आफताब, आइपीएफ प्रदेश सहसंयोजक गुलाब चंद गोड़ व अजीत सिंह यादव ने किया।
दिनकर कपूर
संगठन प्रभारी, आइपीएफ
4, माल एवेन्यू, लखनऊ
(रिपोर्ट)
‘हम देष के लिए भाजपा को एक बड़े खतरे के रूप में मानते है और इसके खिलाफ लड़ाई को भी सर्वोच्च स्थान देते है साथ ही भाजपा और कांग्रेस व सपा-बसपा जैसे दलों के बीच के फर्क को भी करते है लेकिन पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से उ0 प्र0 में जिस तरह से सपा सुप्रीमों के निर्देशन में चल रही अखिलेश की सरकार द्वारा पहले से ही विभाजन और अलगाव के दौर से गुजर रही प्रदेश की जनता को और भी विभाजित करके भाजपा को बढ़ने का मौका दिया गया उसके विरोध में मै दस दिन के उपवास पर रहा हूं। हमें खुषी है कि कांग्रेस-भाजपा, सपा-बसपा की कारपोरेटपरस्त, अमेरीकापरस्त राजनीति के विरूद्ध प्रदेष की सभी वाम-जनवादी आंदोलन की ताकतें एक साथ आयी है जो प्रदेष में जन राजनीति का केन्द्र बनेगा।‘ यह बातें लखनऊ में विधानसभा के सामने प्रदेश में जन अधिकार अभियान के तहत कानून के राज की स्थापना के लिए 10 जून से जारी दस दिवसीय अपने उपवास को खत्म करने के बाद आयोजित सभा में आल इण्डि़या पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहीं। 19 जून को का0 अखिलेन्द्र ने 1 बजे राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के सीपीआईएम राज्य सचिव का0 एस0 पी0 कश्यप, राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी, और सीपीआई राज्य सचिव का0 डा0 गिरीश के हाथों से जूस पीकर अपने दस दिवसीय उपवास को समाप्त किया। इस दिन सीपीआईएम, राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल, सीपीआई, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), आइपीएफ, राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय किसान यूनियन समेत सभी वाम-जनवादी दलों के हजारों लोग उपवासस्थल पर पहुंचे।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेष में सरकार बनने के बाद अखिलेश सरकार ने सबसे पहले पूरे समाज से दलितों को अलगाव में डाल दिया और उनकी इस कार्यवाही को दलितों में ध्रुवीकरण के लिए उनकी विरोधी बनने वाली मायावती ने भी मदद पहुंचाने का काम किया। सभी लोग जानते है कि आरक्षण के संदर्भ में नागराज के मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला था वह पिछड़ी जातियों के पिछड़ेपन के संदर्भ में था जिसकी चपेट में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग भी आ गए, इसे मात्र सुप्रीम कोर्ट में एक पुर्नविचार याचिका दायर कर ठीक कराया जा सकता था पर मायावती ने सत्ता में रहते हुए भी यह काम भी नहीं किया। परशुराम जयंती पर अभियान चलाने वाली सपा सरकार ने यह जानते हुए भी अति पिछड़ी जातियों को दलितों में संवैधानिक रूप से शामिल नहीं किया जा सकता क्योकि वह अछूत नहीं है, 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने के लिए कैबिनेट से प्रस्ताव पास कर केन्द्र सरकार को भेजा है। ज्ञात्वय हो कि यही काम मायावती ने भी किया था। दरअसल प्रदेष में अति पिछड़ी जातियों को उनके सामाजिक न्याय के अधिकार से वंचित करने की कोशिश माया-मुलायम दोनों करते रहे है। मुलायम सिंह तो समाजवादी आंदोलन की पैदावार है और लोहिया, जय प्रकाष नारायण, कर्पूरी ठाकुर का नाम लेते रहते है, यदि उनकी राजनीति में ईमानदारी होती तो वह मण्ड़ल कमीषन के सदस्य एल0 आर0 नायक की संस्तुति और प्रदेष में बने छेदीलाल साथी कमीषन व कर्पूरी ठाकुर फार्मूला के आधार पर अति पिछड़ों का आरक्षण कोटा अन्य पिछड़ा वर्ग से अलग कर देते।
सामाजिक न्याय के सवाल के साथ ही सपा सरकार प्रदेश में हिन्दू और मुस्लिमों के बीच की खाई को भी और बढ़ाने की राजनीति कर रही है। यह जानते हुए भी कि आतंकवाद के मुकदमें में फंसे लोगों का मुकदमा संवैधानिक रूप से सरकार वापस नहीं ले सकती महज मुसलमानों को शिकार बनाने के लिए इस सरकार ने मुकदमा वापसी की बड़ी-बड़ी धोषणाएं की। इससे हिन्दुओं को लगा कि महज वोट के लिए यह सरकार अपराधियों पर से मुकदमा वापस लेने का काम कर रही है और इससे मुसलमानों का भी भला नहीं हुआ वहीं प्रदेष में भाजपा को हिन्दु धुव्रीकरण के जरिए अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को बढ़ाने में मदद मिली। वास्तव में सरकार अपनी धोषणा के प्रति ईमानदार होती तो वह इस सम्बंध में बनी जस्टिस आर.डी. निमेष कमीशन की रिर्पोट को एक्शन टेकन रिर्पोट के साथ विधानसभा में रखने में इतना विलम्ब न करती। अभी भी सरकार ने खालिद की मौत और गिरफ्तारी के लिए दर्ज एफआईआर की विवेचना शुरू नहीं करायी और न ही इस पूरे मामले की सीबीआई जांच के लिए केन्द्र सरकार पर दबाब डाला। यदि सरकार चाहे तो आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद नौजवानों के मामलें में एक कमीशन बना दे जिसकी रिर्पोट के बाद प्रदेश की जनता यह देख लेती कि कौन आतंकवादी है और कौन निर्दोष। यहीं नहीं सरकार के एक वर्ष से ज्यादा के कार्यकाल में 27 दंगें हो चुके है जिनमें प्रषासन के संरक्षण में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए है, जिनमें से फैजाबाद-अयोध्या दंगें के लिए भारतीय प्रेस परिषद ने भी प्रशासन को जिम्मेदार माना है।
यहीं हालत माओवादियों के मामले में भी है। मिर्जापुर, सोनभद्र और चंदौली जनपद में जहां आदिवासी, गरीब समाज के लोग, जो व्यवस्था से अलगाव और विक्षोभ की वजह से माओवाद के प्रभाव में चले गए थे, उस क्षेत्र में लगातार चले लोकतांत्रिक आंदोलन की वजह से प्रभावित होकर राजनीति की मुख्यधारा में लौट आए हैं। फिर भी माओवाद से निपटने के नाम पर वहां गरीबों का दमन हो रहा है। एक तरफ समाजवादी पार्टी में शामिल पूर्व माओवादी बासमती कोल को सरकार महिला आयोग का सदस्य बनाती है वहीं माओवादी होने के नाते सैकड़ों लड़के और महिलाएं आज भी जेलों में बंद है इनके गैगस्टर व गुण्ड़ा एक्ट के मुकदमों की वापसी, जमानत और पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। यहीं नहीं आदिवासियों व वनाश्रित लोगों को उनकी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना अधिकार देने के लिए संसद द्वारा बने वनाधिकार
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कानून को सरकार ने विफल कर दिया है। इन तबकों द्वारा मालिकाना हक के लिए दाखिल लाखों दावों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया गया है, उन दावा फार्मो को तहसील में दीमक चाट रहे है। ग्रामस्तर की वनाधिकार समिति द्वारा स्वीकृत दावों को कानून में अधिकार न हाते हुए भी उपखण्ड़ स्तर की कमेटी द्वारा खारिज कर दिया गया। आदिवासियों को गैरकानूनी तरीके से जमीन से बेदखल किया जा रहा है, उन पर फर्जी मुकदमें कायम किए जा रहे है और लगातार उनका उत्पीड़न किया जा रहा है। आदिवासियों व वनाश्रित लोगों को वनाधिकार कानून के तहत मालिकाना हक दिलाने के लिए आइपीएफ ने माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की है। जिसें स्वीकार कर माननीय उच्च न्यायालय की दो सदस्यी खण्ड़पीठ ने केन्द्र और प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी किया है। आदिवासियों के साथ अन्याय बदस्तूर जारी है, कोल को आदिवासी होने के बाबजूद आदिवासी का दर्जा नहीं दिया गया। गोड़, खरवार जैसी जिन आदिवासी जातियों को आदिवासी का दर्जा भी मिला, सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी उनके लिए लोकसभा, विधानसभा से लेकर पंचायत तक सीट ही आरक्षित नहीं की गयी परिणामस्वरूप वह आरक्षित सीटों पर चुनाव ही नहीं लड़ पा रहे है।
प्रदेश में बुदेलखण्ड़ से लेकर सोनभद्र तक सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए सिड़ीकेटों द्वारा अवैध खनन बदस्तूर जारी है। इस अवैध खनन के खिलाफ जो कुछ नौकरशाह कानूनसम्मत काम करने की कोशिश भी करते हैं तो उन्हें पदों से हटा दिया जाता है, उन पर हमले हो रहे है। इलाहाबाद में 4 करोड़ के अवैध सिलका सैण्ड़ के खनन के खिलाफ कार्रवाही करने के कारण एक ही दिन में इलाहाबाद के कमीश्नर को हटा दिया गया और सोनभद्र में अवैध खनन को चालू करने से इंकार करने वाले डीएम व वनविभाग अधिकारियों का एक साथ तबादला कर दिया गया। इतना ही नहीं यह सरकार अवैध खनन में लिप्त लोगों को बचाने में लगी है। मायावती राज में हुए 14 अरब से भी ज्यादा के स्मारक घोटालें, जिसमें मिर्जापुर में अवैध खनन प्रमाणित हुआ है, में लोकायुक्त द्वारा प्रकरण की विवेचना छः माह में सीबीआई या विशेष जांच दल से कराने की संस्तुतियों को आज तक सरकार ने स्वीकार नहीं किया और न ही इस घोटाले में शामिल सम्बंधित मंत्री समेत सभी लोगों के विरूद्ध तत्काल एफआईआर दर्ज करायी। प्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर आम नागरिकों के जीवन, पर्यावरण और पेयजल के लिए गहरा संकट पैदा करने वाले अवैध खनन की सीबीआई से जांच कराने के लिए आइपीएफ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है और यदि अखिलेश सरकार अवैध खनन पर रोक लगाकर इसकी सीबीआई जांच नहीं कराती तो इसका भी हाल कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार की तरह ही होगा।
किसानों के बकाए के भुगतान और कर्ज को माफ करने की धोषणा के साथ सत्ता पर पहुंची सरकार में आज भी किसानों का करीब 6 हजार करोड़ बकाया है। इस सरकार में एक तो आमतौर पर फसलों की सरकारी खरीद हुई नहीं और जो कुछ थोड़ी बहुत सरकारी खरीद हुई उसका भी भुगतान नहीं किया गया। प्रदेश में इतनी शर्मनाक हालत थी कि किसानों की बात करने वाले मुलायम सिंह की पार्टी की सरकार में किसानों की फसल खरीदनें के लिए मुख्यमंत्री बोरा मांगने केन्द्र के पास जाते है और बोरे के अभाव में खरीद नहीं होती है। किसानों के पचास हजार तक के कर्जे को माफ करने के वायदे की हालत यह है कि अभी मात्र भूमि विकास बैंक के द्वारा ही लिए कर्जे के ब्याज की माफी के लिए सरकार जिलों से किसानों की सूची मंगवा रही है। वहीं गांव-गांव कर्ज वसूली के नाम पर किसानों का दमन हो रहा है। किसानों से आज तक लागत मूल्य का पचास प्रतिशत जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने और किसान आयोग बनाने का वायदा पूरा नहीं किया गया। नेशनल हाईवे की मौजूदगी में हावड़ा-दिल्ली कारिडोर व लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस वे और गंगा एक्सप्रेस वे जैसी योजनाओं के लिए सरकार रात दिन एक किए हुए है जबकि इन सड़क योजनाओं का मकसद यातायात के सवाल को हल करना नहीं बल्कि किसानों की उपजाऊ भूमि को छीनकर बिल्डरों, पंूजी घरानों के हवाले करना है जिससे कि वे वहां टाउनशिप और फार्म हाउस बनाकर बेहिसाब मुनाफा कमाएं।
पूरे प्रदेष में मनरेगा को विफल कर दिया गया है। कहीं भी ग्रामीण गरीबों को काम नहीं मिल रहा है और काम न देने की स्थिति में बेकारी भत्ता भी नहीं दिया जा रहा है। जिसके खिलाफ भी आइपीएफ ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। आज प्रदेश में लगातार बिजली कटौती और बिजली दरों में वृद्धि का जो बिजली संकट पैदा हुआ है उसकी भी मूल वजह भ्रष्टाचार और बिजली विभाग में मची लूट है। प्रदेष की अनपरा और ओबरा जैसी सार्वजनिक क्षेत्र की विद्युत उत्पादन करने वाली इकाइया कमीशनखोरी और ठेकेदारी प्रथा के कारण अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं कर पा रही है। बिजली विभाग में बीस-बीस साल से एक ही जगह काम करने वाले मजदूरों को संविदा श्रमिक के बतौर रखा गया है। इन मजदूरों के नियमितिकरण के लिए हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी न तो पूर्ववर्ती मायावती सरकार ने और न ही वर्तमान सरकार ने इन मजदूरों को नियमित किया। प्रदेश में बिजली दरों की बढ़ोत्तरी में भी घोटाला हुआ, बिजली दरों के निर्धारण में राज्य विद्युत नियामक आयोग और पावर कारपोरेशन ने एक ही सलाहकार की नियुक्ति कर बिजली दरों को बढ़ाकर जनता पर बोझ लाद दिया। पावर कारपोरेशन के घाटे की बात भी बेईमानी है क्योकि 25 हजार करोड़ का घाटा दिखाया जा रहा है जबकि 27 हजार करोड़ से भी ज्यादा बकाया है जिसमें से 9 हजार करोड़ सरकार के विभागों पर बकाया है यदि इसकी ही वसूली हो जाएं तो घाटा खत्म हो जायेगा। इतना ही नहीं आज की गयी बिजली दरों में वृद्धि से
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सरकार को मात्र 4 हजार करोड़ रूपए प्राप्त होगें और यदि सरकार अपने बकाए का आधा भी दे दें तो जनता पर लादे दर वृद्धि इस बोझ की कोई जरूरत नहीं रह जायेगी।
यह वह स्थिति थी जिससे प्रदेश को बचाने के लिए और कानून के राज की स्थापना के लिए 18 सूत्री मांगों पर प्रदेष की वाम-जनवादी ताकतों ने जन अधिकार अभियान चलाने का फैसला किया, जिसकी शुरूवात इस दस दिवसीय उपवास से की गयी। इस अभियान की मांगों का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय अभियान समिति के अध्यक्ष व पूर्व वाणिज्य सचिव भारत सरकार श्री एस0 पी0 शुक्ला ने अपने पत्र में लिखा कि इस अभियान में जो सवाल उठाएं गए है वह न सिर्फ उ0 प्र0 के मौजूदा हालात में जरूरी है साथ ही यह देश में वैकल्पिक नीतियों का भी एजेण्ड़ा है। गांधी इंस्टिट्यूट, वाराणसी के निदेषक प्रो0 दीपक मलिक ने अपने संदेष में लिखा कि एक ऐसे समय में जब जन आंदोलन को गम्भीर चुनौती मिल रही है, जन समस्याओं को सुनने का माहौल नही है इस उपवास ने जन प्रतिरोध को एक बार फिर केन्द्र में ला दिया है और जन प्रतिरोध आंदोलन की संस्कृति और कार्रवाही को फिर से पुर्नजीवित किया है।
उपवास के अंतिम दिन हुई सभा में बोलते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि कांग्रेस-भाजपा जिन जनविरोधी नीतियों पर चल रही है उसका विकल्प कोई तीसरा और चैथा मोर्चा नहीं हो सकता क्योंकि इनको बनाने वाले दल भी इन्हीं नीतियों पर अमल कर रहे है। मात्र सरकारों के बदलने से जनता की जिदंगी में बदलाव नहीं आ सकता आज जरूरत है नीतियों को बदलने की। जिन नीतियों से किसानों, मेहनतकशों और आम अवाम का भला हो सकंे। उन्होनें कहा कि यह काम मात्र वामपंथी, सोशलिस्ट और उलेमा कौसिंल जैसी जनपक्षधर आंदोलन की ताकतें ही कर सकती है जो प्रदेश में एक मंच पर आयी है और यह देष के लिए भी एक नजीर बनेगा। सीपीआई (एम) राज्य सचिव का0 एस0 पी0 कश्यप ने कहा कि जो सवाल हम अपने अभियान के माध्यम से उठाए है वह समाजवादी पार्टी द्वारा किए गए वायदों के दायरे में ही है इसलिए सरकार को अपने वायदें पूरे करने चाहिए और प्रदेश की जनता के हित में इन सवालों को हल करना चाहिए। आज देश को वाम जनवादी विकल्प की जरूरत है मात्र पार्टियों का मोर्चा नहीं हमें जनपक्षधर नीतियों पर जनता का मोर्चा बनाना होगा। राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी मदनी ने कहा कि प्रदेश में कम्युनिस्ट, सोशलिस्ट, दलित आंदोलन और मुस्लिम समाज की जनपक्षधर ताकतों द्वारा शुरू हुआ यह अभियान नए जन विकल्प को पैदा करेगा। सीपीआई राज्य सचिव का0 डा0 गिरीश ने कहा कि उ0 प्र0 को मुलायम-माया की राजनीति से मुक्त करा वाम-जनवादी दिशा देने की जरूरत है और जो प्रयास प्रदेष में शुरू हुआ है उसमें हम पूरी ताकत से रहेगें। सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के प्रदेश अध्यक्ष गिरीश पाण्डेय ने कहा कि सपा सरकार का डा0 लोहिया की विचारधारा और समाजवाद से कोई वास्ता नहीं रह गया है। इस सरकार ने प्रदेश की जनता को अपने एक वर्ष से ज्यादा के कार्यकाल में मात्र धोखा देने का ही काम किया है। राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव व पूर्वमंत्री का0 कौशल किशोर ने कहा कि प्रदेश में कानूनव्यवस्था ध्वस्त है और गुण्ड़ा-माफिया-पुलिस राज है। प्रदेश में दलितों, अल्पसंख्यकों समेत समाज के गरीब तबकों पर लगातार हमले हो रहे है। उपवास के छठवें दिन भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ऋषिपाल अम्बावता के नेतृत्व में सैकड़ों किसान विधानसभा के सामने उपवासस्थल पर पहुंचे इसके साथ ही प्रत्येक दिन उपवासस्थल पर सैकड़ों की संख्या में लोगों के आने का सिलसिला जारी रहा और हर दिन प्रदेष के विभिन्न ज्वंलत सवालों पर राजनीतिक प्रस्ताव ग्रहण किए गए।
इन सभाओं को पूर्व सासंद इलियास आजमी, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संदीप पाण्डेय, महामंत्री ओकांर सिंह, सीपीएम राज्य कमेटी सदस्य का0 राधेश्याम वर्मा, सीपीएम राज्य सचिव मण्ड़ल सदस्य का0 प्रेमनाथ राय, पूर्व आईजी व आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी, राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के महासचिव मौलाना ताहिर मदनी, मुस्लिम महिला पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद् के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा, प्रगतिशील लेखक संघ की अध्यक्ष डा0 किरन सिंह, राष्ट्रीय बहुजन समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बनारसी दास, राज्य कर्मचारी महासंध के प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह, गांधी संस्थान की रजिस्ट्रार मुनीजा रफीक खान, मुस्लिम फोरम के अध्यक्ष एम के शेरवानी, भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाण्ड़ेय समाजसेवी सुदंरलाल सुमन, वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह, पूर्व अध्यक्ष इ0वि0वि0 लाल बहादुर सिंह ने सम्बोधित किया। सभाओं का संचालन राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के प्रदेश अध्यक्ष परवेज आफताब, आइपीएफ प्रदेश सहसंयोजक गुलाब चंद गोड़ व अजीत सिंह यादव ने किया।
दिनकर कपूर
संगठन प्रभारी, आइपीएफ
4, माल एवेन्यू, लखनऊ
सपा सरकार की आतंक के मुकदमें वापस लेने या साप्रदायिक राजनीती को उभारने की कोशिश
सपा सरकार की आतंक के
मुकदमें वापस लेने या साप्रदायिक राजनीती को उभारने की कोशिश
-एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया
पीपुल्स फ्रंट
आज एक समाचार पत्र में यह समाचार छपा है कि उत्तर प्रदेश कि समाजवादी सरकार ने
गोरखपुर की एक अदालत में सरकारी वकील के माध्यम से गोरखपुर बम विस्फोट के आरोपी
तारिक कासमी के मुक़दमे को यह कह कर वापस लेने का अनुरोध किया है कि इस में इस
आरोपी में विरुद्ध सज़ा दिलाने के लिए पर्याप्त साक्ष्य नहीं है. इस पार्थना पत्र
में इस मुकदमे को वापस लेने के निम्नलिखित पांच आधार दिए गए है:
1.
अगर अपर्याप्त साक्ष्य के
होते हुए भी आरोपी को जेल में रखा जाता है और वह बाद में दोष मुक्त हो जाता है, तो
इस से समाज में एक गलत सन्देश जायेगा जिस का जनहित पर बुरा असर पड़ेगा.
2.
यह जनहित में महत्वपूर्ण है कि कमज़ोर लोगों का
दुर्भावना से उत्पीड़न नहीं होना चाहिए.
3.
शांति तथा सामाजिक समरसता
बनाये रखने के लिए.
4.
इस मामले में अपर्याप्त
साक्ष्य है और इस कि कड़ी अधूरी है. अतः इस
में आरोपी के छूटने की सम्भावना है. यह जनहित और न्याय के हित में नहीं होगा कि
उसके विरुद्ध मुकदमा चलाया जाये. मुकदमे को चालू रखना सरकारी कोष पर एक अनावश्यक
बोझ है और जनता के धन की बर्बादी है.
इस प्रार्थना पत्र में निमेश कमीशन की रिपोर्ट
का भी उल्लेख किया गया है जिस में तारिक और खालिद की गिरफतारी और उन से असलों और
विस्फोटों की दिखाई गयी बरामदगी को संदिग्ध बताया गया है और असली मुजरिमों को पकड़ने
और इन लोगों को फर्जी तरके से गिरफ्तार करने और बरामदगी दिखने वाले पुलिस
अधिकारियों को चिन्हित कर दण्डित करने की सिफारिश भी की गयी है. यह भी उल्लेखनीय
है कि इस से पहले इसी प्रकार का प्रार्थना पत्र बाराबंकी के न्यायलय द्वारा निरस्त
किया जा चुका है जिस में जनहित और साम्प्रदायिक
सदभावना के आधार पर तारिक और खालिद
के विरुद्ध लखनऊ और फैजाबाद कचेहरी परिसर में विस्फोटों के मुकदमे वापस लेने का
अनुरोध किया गया था.
अब अगर बाराबंकी और गोरखपुर के न्यायालयों में
तारिक और खालिद के मुकदमों को वापस लेने के लिए दिए गए आधार को कानूनी तौर पर देखा
जाये तो यह बिलकुल अस्वीकार्य है. जनहित , सामाजिक समरस्ता और अपर्याप्त साक्ष्य
मुकदमा वापस लेने का उचित आधार नहीं हो सकता और इस के अदालत द्वारा अस्वीकार किये
जाने की बहुत बड़ी सम्भावना है. इस से स्पष्ट है कि अखिलेश सरकार मुकदमों को वापस
लेने के ठोस आधार के स्थान पर केवल सरसरी आधार देकर रस्म अदायगी कर रही है. इस से
जहाँ वह एक ओर मुसलमानों को यह कह कर खुश करने का प्रयास कर रही है कि वह तो
मुक़दमे वापस लेना चाहती है पर इस में अदालतें बाधक बन रही हैं. वहीँ वह मुकदमों की
वापसी के लिए कोई भी ठोस और उचित कार्रवाई न करके कट्टरवादी हिन्दुओं की नाराज़गी
से भी बच रही है. सरकार की इस आधी अधूरी कार्रवाई से मुसलमानों का कोई भला नहीं हो
पा रहा है परन्तु इस से हिन्दुओं में यह सन्देश ज़रूर जा रहा है कि मुलायम सिंह
मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रहे हैं और उनके प्रति एक अनावश्यक आक्रोश बढ़ रहा है.
दरअसल यह रणनीति अपना कर मुलायम सिंह उत्तर प्रदेश में मुसलमानों और हिन्दुओं के
वोट का ध्रुविकरण करना चाहते हैं जो कि उन की और भाजपा की साम्प्रदायिक राजनीति के लिए लाभकारी है.
अब अगर देखा जाये कि क्या मुलायम सरकार के पास
तारिक कासमी, खालिद मुजाहिद या अन्य आतंकी मामलो में फंसाए गए निर्दोष लोगों के
मुक़दमे वापस लेने का कोई ठोस और कानूनी
आधार उपलब्ध नहीं है. सच्चाई यह है कि इन मामलों को वापस लेने के लिए उसके पास
बहुत ठोस और कानूनी आधार उपलब्ध हैं परन्तु वह उसे जानबूझ कर पेश नहीं कर रही है.
अखलेश सरकार के पास तारिक और खालिद जिन्हें यूपी पुलिस ने हुजी के
सदस्य होना कहा है, के मामले में निमेश कमीशन की रिपोर्ट है जिस के आधार पर वह इन
के विरुद्ध मुकदमों की पुनर विवेचना और असली दोषी मुजरिमों को पकड़ने की बात कह
सकती है. इस के इलावा इन की बेगुनाही का सब से बड़ा सबूत यूपी एटीएस के पास है जो
कि 2008 में पकडे गए तथाकथित इंडियन
मुजाहिदीन के सदस्यों की पूछताछ रिपोर्टें (इन्टेरोगेशन रिपोर्ट) हैं जिस में
उन्होंने कचेहरी विस्फोटों के साथ साथ गोरखपुर, वाराणसी, फैजाबाद और श्रमजीवी
ट्रेन में हुए विस्फोटों की जिम्मेदारी सवीकार की है. यह रिपोर्ट अन्य राज्यों की
पुलिस के पास भी उपलब्ध हैं क्योंकि इन व्यक्तिओं से उन्होंने भी पूछताछ कि थी. यूपी
एटीएस ने पूछताछ रिपोर्टों को गोपनीय करार देकर छुपाया है और इसे अदालत के सामने
जानबूझ कर नहीं रखा है. एटीएस के पास यह रिपोर्टें 2008 से ही हैं परन्तु इस तथ्य
को पहले पकडे गए और चालान किये गए तथाकथित हुजी सदस्यों की बेगुनाही के सबूत के
तौर पर अदालत में पेश नहीं किया गया. यदि एटीएस इन रिपोर्टों को इमानदारी बरतते
हुए समय से अदालत में पेश कर देती तो हुजी के नाम पर जेलों में सड़ रहे बहुत से
व्यक्ति छूट जाते और असली मुजरिम पकडे जाते. परन्तु एटीएस ने ऐसा न करके न केवल
अदालत को धोखा दिया है बल्कि बहुत से निर्दोष व्यक्तियों को झूठे गंभीर मामलों
में फंसाने का अपराध भी किया है. मुलायम
सरकार चाहे तो अभी भी अदालत के सामने इन सबूतों को आधार बना कर औ पुनर विवेचना कि मांग रख कर मुकदमे वापस ले
सकती है परन्तु वह जानबूझ कर ऐसा न करके केवल सरसरी आधार पर मुक़दमे वापस लेने का
नाटक कर रही है जो कि उसकी साम्प्रदायिक राजनीति का हिस्सा है.
जहाँ तक इन मामलों में साक्ष्य के अपर्याप्त
होने का प्रशन है वह न केवल अपर्याप्त है बल्कि बिलकुल तुच्छ भी है. इस का अंदाज़ा
इस से लगाया जा सकता है कि कचेहरी बम विस्फोट में खुफिया एजंसी अर्थात आई बी कि रिपोर्ट को एफ. आई. आर का आधार बनाया गया है
और शस्त्र और विस्फोटक कि बरामदगी दिखाई गयी है. इस के इलावा विवेचना में मुजरिमों
के इकबालिया बयान आरोप सिद्ध करने का आधार है. सब से हास्यस्पद साक्ष्य तो यह है
कि इस में इन्टरनेट से “इंस्टीटयूट आफ डिफेन्स स्टडीज एंड एनाल्सिज़” की वेबसाइट से “हुजी आफ्टर दी डेथ ऑफ़
इट्स इंडिया चीफ’ शीर्षक का लेख डाउनलोड करके साक्ष्य के रूप में पेश किया गया है
क्योंकि इस में लिखा हुआ है कि हुजी के
लोगों ने देश के अन्य हिस्सों के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी आतंकी घटनाएँ की थीं.
अतः पुलिस ने उस समय पकडे गए इन निर्दोष लोगों को हुजी के सदस्य करार दे कर इन
मामलों में फिट कर दिया जबकि पुलिस की अपनी पूछताछ रिपोर्ट के अनुसार 2008 में
पकडे गए तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन के लोगों ने इन घटनाओं को करने की बात स्वीकार
की थी. इस से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि पुलिस ने इन मामलों में किस तरह हलके
फुल्के तरीके से विवेचनाएँ की और हलके फुल्के साक्ष्य के आधार पर चार्ज शीट लगा
दी.
इसी महीने की 13 तारीख को आशीष खेतान , एक
ख्याति-प्राप्त पत्रकार, ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की है
जिस में उस ने ऊतर प्रदेश के आतंक से सम्बन्धित सात मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस
द्वारा विवेचना में की गयी जालसाजी और धोखाधड़ी के परिपेक्ष्य में इन सब मामलों की
पुनर विवेचना करने, दोषी पुलिस अधिकारियों को दण्डित करने, निर्दोष व्यक्तियों को
छोड़ने और पुनर्वासित करने का अनुरोध किया है. उस ने अपनी याचिका के साथ यूपी एटीएस
की गोपनीय कह कर छुपायी गयी पूछताछ रिपोर्टें भी संलग्न की हैं जिन से यह सिद्ध
होता है कि पुलिस ने आतंक के जिन सात मामलों में जिन लोगों को हुजी के सदस्य कह कर
फंसाया है और वे 6 से 8 साल से अधिक समय
से जेलों में सड़ रहे हैं और जिन में खालिद की न्यायायिक हिरासत में मौत हो गयी और श्रमजीवी विस्फोट के एक आरोपी वसिउर्रह्मान
को दस साल की सजा भी हो गयी है निर्दोष
हैं. हो सकता है कि इसी प्रकार की सजा दूसरे
आरोपियों को भी हो जाये.
अब अगर माननीय उच्च न्यायालय ने आशीष खेतान की
जनहित याचिका को स्वीकार कर इन सभी मामलों की पुनर विवेचना का अनुरोध सवीकार कर लिया
तो इस से यूपी पुलिस की इन विवेचनाओं में की गयी धोखाधड़ी और जालसाजी सामने आ जाएगी
जिस के फलस्वरूप इसे करने वाले पुलिस अधिकारियों को सजा भी मिल सकती है. लगता है
कि अखिलेश सरकार इन पुलिस अधिकारियों दण्डित
होने और असली मुजरिमों को पकड़ने से डरती है और वह मुक़दमे वापस लेने के ठोस आधार
पेश न करके केवल सरसरी आधार देकर रस्म अदायगी कर रही है. इस में उसकी साम्प्रदायिक
राजनीति भी शामिल है जिस के तहत वह एक तीर
से दो निशाने बना कर उत्तर प्रदेश में सम्प्रदायिक राजनीति को तेज करना चाहती है.
इस लिए प्रदेश में सभी धर्मनिरपेक्ष और जनवादी ताकतों को एक जुट हो कर मुलायम सिंह
और भाजपा की आतंकवाद के नाम पर सम्प्रदायिक राजनीती का विरोध करना चाहिए और
निर्दोषों को न्याय दिलाने के लिए आगे आना चाहिए. हाल में आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट
ने “कानून का राज के लिए जन अभियान” के अंतर्गत दस दिन के उपवास और धरने के माध्यम
से इस दिशा में पहलकदमी ली है. इस में उसे वाम जनवादी और धर्म निरपेक्ष ताकतों का
भारी समर्थन भी मिला है. Sunday, 23 June 2013
क्या आई बी कानून से उपर है?
क्या आई बी कानून से उपर है?
-एस. आर.दारापुरी आई. पी. एस. (से. नि.)
आज कल आईबी (इंटेलिजेंस ब्यूरो) ख़बरों में है. इस का संद्धर्भ आईबी के एक अधिकारी राजिंदर कुमार की गुजरात पुलिस द्वारा इशरत जहाँ की फर्जी मुठभेड़ में मारने की साजिश में शामिल होने का है. वर्तमान में इस मामले की विवेचना सीबीआई द्वारा की जा रही है और उस ने इस साजिश में राजिंदर कुमार के शामिल होने के बारे में पुख्ता सबूत इकठ्ठा किये हैं. अब तक की विवेचना से यह पाया गया है कि राजिंदर कुमार ने इशारत जहाँ और उस के साथी जावेद शेख उर्फ़ प्रणेश पिल्ले सहित दो पाकिस्तानियों के लश्करे-तैयबा के सदस्य होने और गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को मारने के लिए गुजरात में आने की जूठी सूचना दी थी. इतना ही नहीं यह भी पाया गया है कि वह इन को मारने की साजिश में शामिल भी था और उस ने इन तथाकथित आतंकवादियों से बरामद दिखाई गयी एके-47 रायफल भी गुजरात पुलिस के अधिकारियों को उपलब्ध करायी थी. वह गुजरात पुलिस द्वारा फार्ज़ी मुठ-भेड़ को अंजाम देने के तुरंत बाद घटना स्थल पर भी गया था.
उक्त साक्ष्य के साथ सीबीआई ने उसे विवेचनाकर्ता टीम के सामने इस साजिश में शामिल होने या न होने के बारे में अपना ब्यान देने के लिए बुलाया था. वे इस से बहुत दिनों तक बचता रह और तब ही पेश हुआ जब उसे गिरफतार करने की धमकी दी गयी. आईबी के अधिकारीयों ने यह बहाना बनाया कि उस की भूमिका गुजरात पुलिस को सूचना देने कि ही थी न कि उसे मारन देने की. निदेशक आईबी ने यह भी वास्ता दिया कि यदि राजिंदर कुमार को इस मामले में गिरफतार किया गया तो इस से आईबी के अधिकारीयों का मनोबल टूट जायेगा और वे अपने आतंकवादियों के बारे में सूचना एकत्र करने और उसे राज्य पुलिस को देने के कर्तव्य को करने से डरने लगेंगे. उसने गृह मंत्रालय के माध्यम से भी सीबीआई पर दबाव डलवाने की कोशिश की. आईबी ने इशरत जहाँ के आतंवादी होने की बात को सिद्ध करने के लिए उसकी लश्करे-तैयबा के संचालकों से बातचीत की एक सीडी भी एक चैनल पर चलवाई जिस के सही होने का कोई प्रमाण नहीं है. यह भी उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय सरकार द्वारा गुजरात हाई कोर्ट में दाखिल किये गए हलफनामे में इशरत जहाँ के बारे में ऐसी कोई बात नहीं कही गयी है. इस से यह स्पष्ट हो जाता है कि आईबी द्वारा राजिंदर कुमार को बचाने के लिए ये किये गए सभी दावे झूठे और बेबुनियाद हैं. उस के इस साजिश में शामिल होने की पुष्टि गुजरात पुलिस के उन अधिकारियों द्वारा भी की गयी है जो इस साजिश में स्वयं शामिल थे. इस से राजिंदर कुमार के इस साजिश में शामिल होने की पूरी तरह से पुष्टि होती है.
अब प्रशन यह पैदा होता है कि आईबी द्वारा एक गुप्तचर संस्था होने और अपराध करने पर पकडे जाने से मनोबल के गिरने का बहाना लेकर कानून से बचने का दावा करने का मतलब क्या है? हमारे देश में कानून के सामने समानता और कानून की प्रक्रिया अपनाने का सिद्धांत लागू है. क्या इस प्रकरण में राजिंदर कुमार केवल खुफिया संस्था के अधिकारी होने के नाते कानून से ऊपर होने का दावा कर सकता है? मेरे विचार में इस का उत्तर किसी भी हालत में हाँ में नहीं हो सकता. वह एक हत्या के अपराध की साजिश में लिप्त है और उससे कानूनी तौर पर पूछताछ की जानी चाहिए. जहाँ तक इस से आईबी के अधिकारियों का मनोबल गिरने का प्रशन है यह बहाना सभी पुलिस एजंसियों द्वारा गलती पर पकडे जाने पर बनाया जाता है और इस द्वारा अपने आकायों से संरक्षण प्राप्त किया जाता है. इस के विपरीत मेरे विचार में इस से सही काम करने वाले अधिकारियों का मनोबल बढ़ेगा क्योंकि प्राय: गलत काम करने वाले अधिकारी इस प्रकार के फर्जी काम करके वाहवाही लूटते रहते हैं और सही काम करने वाले अधिकारी नज़रंदाज़ कर दिए जाते हैं. इस से सही काम करने वाले अधिकारीयों का मनोबल गिरता है और गलत काम करने वाले अधिकारी मज़े लूटते हैं. पुलिस द्वारा फर्जी और गैर कानूनी काम करने से पुलिस से जनता का विश्वास भी उठता है जैसा कि वर्तमान में है. इस विश्वास को पुनर्स्थापित करने के लिए पुलिस का कानूनी, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण ढंग से काम करना ज़रूरी है.
जहाँ तक इशरत जहाँ और उस के साथियों के लश्करे-तैयबा से सम्बन्ध का प्रशन है, इस का अभी तक कोई पुख्ता सबूत नहीं है. आईबी पेशबंदी में इस बारे में तरह तरह की कहानियां घड रही है. अब यदि इस आरोप को सही भी मान लिया जाये तो क्या इस से पुलिस को उन्हें मारने का अधिकार मिल जाता है. वास्तव में यह आईबी के कुछ अधिकारियों की साम्प्रदायिक मानसिकता का परिणाम है जो उन द्वारा पुलिस से मिलकर मुस्लिम नौजवानों को शिकार बनाये जाने के लिए ज़िम्मेदार है. इन अधिकारियों ने कई बेकसूर मुस्लिम नौजवानों के बारे में आतंकवादी होने की झूठी सूचनायें पुलिस को देकर उन्हें फर्जी मुठभेड़ों में मरवाया है या झूठे केसों में फंसवाया है. आईबी के कुछ अधिकारीयों की मुस्लिम विरोधी मानसिकता इस से भी झलकती है कि अब तक वह मुसलमान आतंकवादी संगठनों के बारे में तो झूठी सच्ची सूचनाये देती रही है परन्तु उस ने आज तक किसी भी हिन्दुत्व आतंकवादी संगठन के बारे में कोई सूचना नहीं दी है. नेहरु ने ऐसे साम्प्रदायिक तत्वों के पुलिस संगठनों में होने की बात गाँधी जी की हत्या के तुरंत बाद 1948 में कही थी और कुछ साल पहले इस का उल्लेख तत्कालीन केन्द्रीय गृह मंत्री श्री चिन्द्रम ने भी किया था. परन्तु अब तक इस प्रकार के तत्वों को पहचानने और उनके विरुद्ध कार्रवाई करने की दिशा में कुछ भी नहीं किया गया है.
आईबी द्वारा इस प्रकार की भूमिका उत्तर प्रदेश में भी निभाई गयी है. वर्ष 2007 के आतंकवाद के तीन मामले , वाराणसी, लखनऊ और फैजाबाद में कचेहरी बम्ब विस्फोट की प्रथम सूचना रिपोर्ट में आईबी द्वारा कुछ व्यक्तियों के इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य होने की सूचना देने की बात दर्ज है. फैजाबाद और लखनऊ के मामलों में तारिक कासमी और खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी को निमेश कमीशन ने गलत ठहराया है. इस में से खालिद की न्यायायिक हिरासत में मौत भी हो चुकी है जिस के सम्बन्ध में आईबी सहित 42 पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध अभियोग भी दर्ज हुआ है. हाल में आशीष खेतान, एक ख्याति प्राप्त पत्रकार द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी है जिस में यह आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2005 से 2007 के दौरान के 7 आतंकवाद के मामलों में पुलिस ने गलत लोगों को हुजी के सदस्य कह कर फंसाया है जबकि यूपी पुलिस के पास बाद में पकडे गए तथाकथित इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों ने अपनी पूछताछ रिपोर्टों के अनुसार इन घटनायों को करने की बात स्वीकार की थी परन्तु पुलिस द्वारा बाद में प्रकाश में इन तथ्यों को अदालत के सामने नहीं रखा गया. इस प्रकार इन मामलों में अब तक फंसाए गए सभी अहियुक्त बेकसूर हैं. इन में से एक अभियुक्त वलीउल्लाह को दस वर्ष कि सजा भी हो चुकी है. आशीष खेतान ने पुलिस द्वारा गोपनीय करार दी गयी पूछताछ रिपोर्टों की प्रतिलिपियां हाई कोर्ट को उपलब्ध करायी गयी हैं. इन में से तीन मामलों में आईबी द्वारा ही सूचना दी गयी थी. अब अगर हाई कोर्ट द्वारा यह जनहित याचिका स्वीकार कर ली जाति है और इन मामलों की पुनर विवेचना किये गए अनुरोध के अनुसार मान ली जाती है तो इस से आईबी और पुलिस का सारा फरेब और झूठ सामने आ जायेगा.
जैसा कि हम जानते हैं कि आईबी इस देश में इस प्रकार का संदिग्ध कार्य करती रही है. सबसे पहले तो यह एक ऐसा संगठन है जिस का कोई वैधानिक आधार ही नहीं है और यह संस्था किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं है. इस के कर्तव्य और जिम्मेवारियों का कहीं भी निर्धारण नहीं किया गया है. इस के बजट पर कोई चर्चा नहीं होती है. आईबी के एक रिटायर्ड अधिकारी ने आईबी के वैधानिक आधार को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर रखी है जो अभी विचाराधीन है. अब तक आईबी बड़े मज़े से काम करती रही है. परन्तु जब यह गैर क़ानूनी काम करने के मामले में फंस गयी है तो इस के अधिकारी अब अपने काम और उत्तरदायित्व के निर्धारण की बात करने लगे है.
उपलब्ध जानकारी के अनुसार आईबी का मुख्य काम देश की आन्तरिक सुरक्षा के बारे में गोपनीय सूचनाएं एकत्र करके सरकार को उपलब्ध कराना है परन्तु इस का शासक पार्टी द्वारा अपने राजनीतिक हितों को बढावा अथवा संरक्षण देने तथा अपने विरोधियों की जासूसी करने के लिए खुला दुरूपयोग किया जाता रहा है. इस का इस्तेमाल चुनाव के समय शासक पार्टी द्वारा अपने प्रत्याशियों की जीत/हार का आंकलन करने के लिए किया जाता रहा है. आईबी को ऐसे कार्यों को करने के लिए भारी मात्रा में फंड भी मिलता है. इस प्रकार आईबी अपने सत्ताधारी मालिक के लिए निष्ठापूर्वक काम करती है और इस में जनता के धन का पार्टी हित में दुरूपयोग होता है.
इशरत जहाँ के मामले में आईबी द्वारा एक गोपनीय संगठन होने तथा उस के सदस्यों के अपराधिक कार्यों के लिए पकडे जाने और दण्डित किये जाने से अपने अधिकारियों का मनोबल गिरने की दुहाई दी गयी है. इस सम्बन्ध में हमारे देश में “कानून का राज” का सिद्धांत लागू है. किसी भी अधिकारी को अपने निर्धारित कर्तव्य से इतर गैर कानूनी कार्य करने की छूट नहीं है. अतः आईबी को कानून से ऊपर नहीं रखा जा सकता. आईबी का एक “पवित्र गाय” होने के दावे को नहीं माना जा सकता. हमारी अपराधिक-न्याययिक प्रणाली किसी के भी साथ कोई भेद भाव करने की अनुमति नहीं देती है. दोषी व्यक्तियों को अपने अपराधिक कृत्यों का परिणाम भुगतान ही होगा. अतः इस के साथ यह भी आवश्यक है कि आईबी को एक वैधानिक आधार दिया जाये और इसे अन्य देशों की ख़ुफ़िया एजंसियों की तरह पार्लियामेंट के प्रति जवाबदेह बनाया जाये. इस के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का सपष्ट निर्धारण भी किया जाना चाहिए ताकि इस के सत्ताधारी पार्टी द्वारा दुरुपयोग कि सम्भावना को रोका जा सके.
Saturday, 22 June 2013
प्रदेश में लगें अवैध खनन पर रोक-आइपीएफ
प्रदेश में लगें अवैध खनन पर रोक-आइपीएफ
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश स्वागत योग्य
लखनऊ 22 जून 2013, आल इण्डि़या पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) ने आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद के शंकरगढ़ में कराएं जा रहे सिलिका सैण्ड़ के अवैध खनन पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत किया है। इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने जारी अपने बयान में कहा कि आम नागरिकों के जीवन, पर्यावरण और पेयजल के लिए गहरा संकट पैदा करने वाला अवैध खनन प्रदेश में बुदेलखण्ड़ से लेकर सोनभद्र तक बड़े पैमाने पर आज भी जारी है। पर्यावरण अनुमति लेने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना हो रही है। देश में राजशाही खत्म होने के बाबजूद इलाहाबाद के शंकरगढ़ के 46 गांवों क्रमशः शंकरागढ़, तालापुर, कपारी, बेरूई, खानसेमरा, बेमरा, रैपटना, मतरवार, गोरखा, घोंद, चकराजी गढ़वा, गाढ़ा कटरा, बेनीपुर, लेदर, बिहरिया, अभयपुर, लखनपुर, कैथी, शिवराजपुर, ओसा, अतरी कपसो, चरीहारी, गोबरा सोनौरी, पगवार, मझियारी बहेलिया, गोबरा हेबार, बरहईया, भोड़ी, घोघर, बकुलिया, मवइया रक्सोल, मवइया पहलवान, लोहगरा, गदामार, चन्दरा, ललई, भैसहाई, लौंद खुर्द, बघला, पण्डुआ, परवेजाबाद, बसहरा तरहार, लालापुर, मदुरी, प्रतापपुर, सुरवल में सरकार के संरक्षण में गैरकानूनी तरीके से स्थायी लीज लेकर रानी राजेन्द्र कुमारी बा द्वारा सिलीका सैण्ड़ का खनन कराया जा रहा है। मजदूरों के फेफड़ों में सिलकौसिस जैसे असाध्य रोगों को पैदा करने वाले इस खनन में किसी भी नियम कानून का पालन नहीं किया जाता रहा है। हमारे द्वारा करायी गयी जांच में खान सुरक्षा निदेशक ने खुद निरीक्षण करने के बाद दो वर्ष पूर्व ही जारी अपने पत्र में इस खनन को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया था। खान सुरक्षा निदेशक ने निरीक्षण में पाया था कि इन माइन्स में माइन्स एक्ट 1952 व उसके अधीनस्थ बने रूल्स व रेगूलेशन का धोर उल्लंधन किया गया है। भारत सरकार के श्रम विभाग द्वारा करायी जांच में भी मजदूरों के ईपीएफ की लूट और उन्हें कोई भी सुरक्षा उपकरण न देने की बात प्रमाणित हुई थी। बाबजूद इसके न तो तात्कालीन बसपा सरकार द्वारा इस अवैध खनन पर रोक लगाया गया और न ही वर्तमान अखिलेश सरकार द्वारा इसें रोका गया। हद तो यह हो गयी कि जिस कमीशनर ने एडीएम की रिर्पोट के आधार पर आम जनता की जिदंगी और पर्यावरण के लिए गम्भाीर खतरा बने इस खनन की जांच करने का आदेश दिया उसे अखिलेश सरकार ने एक ही दिन में हटा दिया और प्रतीक्षारत कर दिया।
उन्होनें बताया कि हम लम्बे समय से प्रदेश में जारी इस अवैध खनन के खिलाफ आंदोलनरत है और प्रदेश में कानून के राज के लिए किए गए दस दिवसीय उपवास में भी हमने इसे प्रमुख सवाल बनाया था। हाईकोर्ट में हमने जनहित याचिका संख्या 30303 भी दायर की है जिसमें हमने प्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर सरकार के संरक्षण में हो रहे अवैध खनन की सीबीआई से जांच कराने की अपील की है और हमें उम्मीद है कि अखिलेश सरकार का हाल भी कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार की तरह ही होगा। उन्होनें कहा कि उ0 प्र0 सरकार को उत्तराखण्ड़ और हिमाचल में आयी त्रासदी से सबक लेना चाहिए यदि वहां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान करते हुए भूमफिया, बिल्ड़रों, कारपोरेट, ठेकेदारों और राजनेताओं व नौकरशाहों के हितों की पूर्ति के लिए अवैध खनन और अवैध निर्माण न किया जाता तो वहां आयी इस भयंकर त्रासदी से बचा जा सकता था। उन्होनें सरकार से मांग की है कि उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए और सोनभद्र से लेकर बुदेलखण्ड़ तक बिना पर्यावरण अनुमति के जारी अवैध खनन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश स्वागत योग्य
लखनऊ 22 जून 2013, आल इण्डि़या पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) ने आज इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा इलाहाबाद के शंकरगढ़ में कराएं जा रहे सिलिका सैण्ड़ के अवैध खनन पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत किया है। इस फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने जारी अपने बयान में कहा कि आम नागरिकों के जीवन, पर्यावरण और पेयजल के लिए गहरा संकट पैदा करने वाला अवैध खनन प्रदेश में बुदेलखण्ड़ से लेकर सोनभद्र तक बड़े पैमाने पर आज भी जारी है। पर्यावरण अनुमति लेने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना हो रही है। देश में राजशाही खत्म होने के बाबजूद इलाहाबाद के शंकरगढ़ के 46 गांवों क्रमशः शंकरागढ़, तालापुर, कपारी, बेरूई, खानसेमरा, बेमरा, रैपटना, मतरवार, गोरखा, घोंद, चकराजी गढ़वा, गाढ़ा कटरा, बेनीपुर, लेदर, बिहरिया, अभयपुर, लखनपुर, कैथी, शिवराजपुर, ओसा, अतरी कपसो, चरीहारी, गोबरा सोनौरी, पगवार, मझियारी बहेलिया, गोबरा हेबार, बरहईया, भोड़ी, घोघर, बकुलिया, मवइया रक्सोल, मवइया पहलवान, लोहगरा, गदामार, चन्दरा, ललई, भैसहाई, लौंद खुर्द, बघला, पण्डुआ, परवेजाबाद, बसहरा तरहार, लालापुर, मदुरी, प्रतापपुर, सुरवल में सरकार के संरक्षण में गैरकानूनी तरीके से स्थायी लीज लेकर रानी राजेन्द्र कुमारी बा द्वारा सिलीका सैण्ड़ का खनन कराया जा रहा है। मजदूरों के फेफड़ों में सिलकौसिस जैसे असाध्य रोगों को पैदा करने वाले इस खनन में किसी भी नियम कानून का पालन नहीं किया जाता रहा है। हमारे द्वारा करायी गयी जांच में खान सुरक्षा निदेशक ने खुद निरीक्षण करने के बाद दो वर्ष पूर्व ही जारी अपने पत्र में इस खनन को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया था। खान सुरक्षा निदेशक ने निरीक्षण में पाया था कि इन माइन्स में माइन्स एक्ट 1952 व उसके अधीनस्थ बने रूल्स व रेगूलेशन का धोर उल्लंधन किया गया है। भारत सरकार के श्रम विभाग द्वारा करायी जांच में भी मजदूरों के ईपीएफ की लूट और उन्हें कोई भी सुरक्षा उपकरण न देने की बात प्रमाणित हुई थी। बाबजूद इसके न तो तात्कालीन बसपा सरकार द्वारा इस अवैध खनन पर रोक लगाया गया और न ही वर्तमान अखिलेश सरकार द्वारा इसें रोका गया। हद तो यह हो गयी कि जिस कमीशनर ने एडीएम की रिर्पोट के आधार पर आम जनता की जिदंगी और पर्यावरण के लिए गम्भाीर खतरा बने इस खनन की जांच करने का आदेश दिया उसे अखिलेश सरकार ने एक ही दिन में हटा दिया और प्रतीक्षारत कर दिया।
उन्होनें बताया कि हम लम्बे समय से प्रदेश में जारी इस अवैध खनन के खिलाफ आंदोलनरत है और प्रदेश में कानून के राज के लिए किए गए दस दिवसीय उपवास में भी हमने इसे प्रमुख सवाल बनाया था। हाईकोर्ट में हमने जनहित याचिका संख्या 30303 भी दायर की है जिसमें हमने प्रदेश में सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना कर सरकार के संरक्षण में हो रहे अवैध खनन की सीबीआई से जांच कराने की अपील की है और हमें उम्मीद है कि अखिलेश सरकार का हाल भी कर्नाटक की येदुरप्पा सरकार की तरह ही होगा। उन्होनें कहा कि उ0 प्र0 सरकार को उत्तराखण्ड़ और हिमाचल में आयी त्रासदी से सबक लेना चाहिए यदि वहां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का सम्मान करते हुए भूमफिया, बिल्ड़रों, कारपोरेट, ठेकेदारों और राजनेताओं व नौकरशाहों के हितों की पूर्ति के लिए अवैध खनन और अवैध निर्माण न किया जाता तो वहां आयी इस भयंकर त्रासदी से बचा जा सकता था। उन्होनें सरकार से मांग की है कि उसे इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का सम्मान करना चाहिए और सोनभद्र से लेकर बुदेलखण्ड़ तक बिना पर्यावरण अनुमति के जारी अवैध खनन पर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए।
Friday, 21 June 2013
Declare Uttrakhand Tragedy a National Disaster - Akhilendra Pratap Singh
Declare Uttrakhand Tragedy a National Disaster - Akhilendra Pratap Singh
Lucknow: 21 June, 2013
All India Peoples Front grieves the unprecedented tragedy that has hit the residents as well as the tourists visiting Uttrakhand and extends its heart-felt sympathies to them in this hour of trial.
The tragedy is heart- rending because of the terrifying fury of the Nature. It is infuriating because it has been aggravated hugely by the rapacious, mindless, myopic pursuit of “growth” which has become the religion of the ruling classes. The inherent and deadly contradiction between such a pursuit and the survival of people in their natural environment is surfacing as never before in a state where ecology is rich but fragile, people are poor and vulnerable and the rulers of different political hues are unanimously pursuing the disastrous path of unbridled capitalist “development”. The ruling nexus of land speculators, builders, contractors, big corporate interests, corrupt politicians and bureaucrats is literally following “ after me the deluge” policy. River courses are being dammed, hotels and luxury resorts are multiplying without regard to safety or environment, tourism of the rich is growing fast and the pilgrimages are promoted in unsustainable numbers.
What has compounded the disaster is the total unpreparedness of the government as disclosed in the CAG report released only two months ago on 23. 04.2013. It is nothing short of criminal negligence that the State Disaster Management Authority which was formed in December 2007 has not met even once till date.
Akhilendra Pratap Singh, National Convener, AIPF has demanded that in view of the huge dimensions of the tragedy, it must be declared national calamity and all resources at our command must be pooled to meet the challenge of rescuing thousands upon thousands of our countrymen still stranded in the state and then rehabilitating the families of all the victims. He also demanded to fix the accountability for this great human tragedy and punish all those responsible. He said that in absence of environmental clearance, not a single construction or mining be allowed. It is high time that an enlightened debate must start on the immense human cost of the mindless, profit-oriented, environment- destroying capitalist development path and a powerful mass political movement must be built for pro-people, eco-friendly and sustainable development path.
Is I.B. A Holy Cow?
Is I.B. A Holy Cow?
S.R.Darapuri I.P.S.(Retd)
IB
(Intelligence Bureau) is very much in the news these
days. The context is the involvement of Mr. Rajinder Kumar, its Special
Director, in Ishrat Jahan fake encounter case of Gujarat. At present CBI
is
investigating this case and have found sufficient evidence about the
involvememnt of Rajinder Kumar in this conspiracy. According to the
available
evidence Rajinder Kumar has been found to be responsible for giving a
false
input to Gujrat police that Ishrat Jahan along with Javed Sheikh alias
Parnesh
Pillai and two alleged Pakisstani nationals were coming to Gujrat to
kill
Narender Modi, Chief Munster of Gujarat. Not only resting with it he has
been
found to be involved in hatching a conspiracy to kill them and he is
also
alleged to have supplied one AK-47 rifle which has been shown as a
recovery
from the so called terrorists. He also visited the spot of encounter
immediacy
after its execution by Gujrat police officers.
Armed with this evidence CBI had asked Rajinder Kumar to
appear before the investigaation team to answer the questions relating to his
role in this conspiracy. He avoided it for a long time and appeared before it only when he was threatened with
his arrest. In the meantime IB tried its level best to ward off his interrogation by CBI. They put forth the
plea that his role was limited to giving the intelligence input only and he did
not motivate Gujrat police to kill the alleged terrorists who are said to be
members of Laskar-E-Toeba , a Pakistan based terrorist organisation. Director
IB also claimed that if Rajinder Kumar is arrested or questioned it is bound to
demoralise the officers of IB who are responsible for monitoring terrorist
activities and informing the state police organisations about the developments thereof. IB also played a
dirty trick
by getting broadcast a so called audio CD, without any authenticity thereof, in
which Ishrat Jahan is alleged to be in conversation with Lashkar-E-Toeba operatives. They
also put forth the plea that Headley, a teorrorist based in America and who
masterminded 26/11 attack on Bombay, had also told that Ishrat Jahan was a
member of Lashkar-E-Taeba. It is surprising that
Central Government which filed an affidavit in Gujrat High Court has not
mentioned anything about Ishrat Jahan being a member of Laskar-E-Taeba. It clearly shows that all
these are fake pleas to shield the wrong doings of Rajinder Kumar. His
involvement in this murder conspiracy has been testified beofre the court by
Mr. Singhal, a Gujrat police officer who was directly involved in this fake
encounter. This evidence clearly establishes beyond any doubt the involvement
of Rajinder Kumar in the fake encounter of Ishrat Jahan and three others.
Now the question arises as to what is the sanctity of being an officer
of IB and claiming immunity in the name of national security and the alleged
demoralisation of IB officers if they are prosecuted for their criminal acts. Our
law of the land lays down the dictum of equality before and the due process of law. In the present
case can Rajinder Kumar claim to be above law of the land? I think he cannot.
He is involved in an offense and he should be investigated and prosecuted. As
regards the bogey of IB officers getting demoralized it is a usual plea taken
by all police agencies who
when caught on the wrong foot seek protection from their masters. On the
contrary I think it will give a boost to the moral of all those
officers who work
as per law and rules. The wrong doers get a walk over the right doers as
they
are able to impress their seniors and political bosses with their
machinations,
fabrications and manipulations. This phenomenon actually demoralizes the
right
doers. The people also loose faith in police and as at present police
has totally
lost its credibility. The police can restore it only by working
according to
the dictates of law in an impartial and just manner.
As regards Ishrat jahan being a Laskar-E-Taeba operative so far no conclusive evidence has
come forward to establish this fact. IB is floating various stories about the
same in an effort to forestall the prosecution of its officer. Even if it is
taken as true does it give a license to kill Ishrat Jahan? I think the answer can
be no only. Actually it is the communal mindset of the IB officers which is
responsible for the victimization of Muslim youth. It is alleged that some communally minded IB officers like Rajinder Kumar in collaboration with State
Police indulged in witch hunting of promising Muslim youth. They located such
youth and targeted them. They gave false and fabricated intelligence reports of such youth being
members of terror outfits and got them
bumped off or booked in various terror cases. The result is that a large number
of innocent youth are languishing in jails in terror cases.
A similar role has been played by IB officers in U.P.
also. In three terror cases of Court Bomb blasts in Lucknow, Varanasi and
Faizabad in 2007
it is mentioned in the FIRs that as per the report of
Intelligence agencies these persons are members of HUJI or INDIAN MUJAHIDIN and
they have been booked for the same. In two cases of Faizabad and Lucknow Nimesh
Commission found two persons Tariq and
Khalid as wrongly arrested. In a letter writ petition filed by Ashish Khetan, a journalist , in Allahabad High Court against
arrest and implication of innocent Muslim youths in seven terror cases of U.P. he has demanded
reinvestigation of all these cases. In three cases the input was given by IB.
Mr. Khetan has produced the interrogation reports of the persons later on
arrested by police alleged to belong to Indian Mujahidin who have confessed
their involvement in the cases wherein innocent persons alleged to belong to
HUJI have been booked but this fact has not been disclosed before the court. Now
if the HIgh Court accepts this petition and orders reinvestigation of these
cases the whole falsehood of IB and U.P.Police will be exposed.
As we know IB has been playing a very dubious role in our
country. Firstly it is an organaisation without any statutory sanction and not
answerable to anybody except Home MInister and Prime MInister. Its duties and
responsibilities have not been defined anywhere. Its budget is not discussed in
the Parliament. A retired IB officer has filed a writ in the Supreme Court challenging
the validity of the very existence
of such an organization without any statutory sanction. The writ is still
pending in the Court.
IB has been functioning very pleasurably so far. But now having been cornered in
Ishrit Jahan case its officers have started asking for defining of its duties and responsibilities.
The primary work of IB is said to collect intelligence covertly
about threat to internal security but it
is used by the ruling party, whosoever it may be, to spy over its opponents. Before
election it is used to collect intelligence about the election prospects of the
ruling party and those of its opponents. Many times IB is used to carry out secret operations for frustrating the election prospectus of opposition parties. IB gets a lot of funds to carry out these operations and
enroll paid agents. As such IB serves as a faithful servant of its master and public
funds are misused for the benefit of the
ruling party.
In
Ishrat Jahan case IB is claiming immunity in the name
of being a secret organisation and the possibility of its officers
getting demoralized if punished for their involvement in criminal
activities as in the
case of Ishart Jahan and some other cases likely to come up. The law of
the
land stands for equality before law and due process of law. IB cannot be
treated above law. Hence the claim of IB of being a sacred cow cannot be
accepted in the eyes of criminal justice system and the culprits have to face the consequences of
their illegal deeds. At the same it is necessary that IB must be made to work
under a statutory authority and be made accountable to the Parliament.
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